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Keyurika gangwar

Children Stories Inspirational

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Keyurika gangwar

Children Stories Inspirational

गली के बच्चे

गली के बच्चे

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गली के बच्चें हू हू हू हू------तेज आवाज करते बच्चों की टोली दौड़ती चली जा रही। एक के पीछे एक, पतंग की डोर हाथ में थामे, एक हाथ से पैंट संभालते , छोटे - बङे बच्चे अपनी ही धुन में दौड़ रहे। आगे कौन आ रहा? कौन डाँट रहा? किसी ने कुछ कहा,पता नहीं , बस अपने खेल में मग्न। पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ अपने खेल पर जैसे जीवन का एकमात्र लक्ष्य हो, और उसे पाने का हर संभव प्रयास ही उनका अंतिम लक्ष्य है। "ओए वो पीली पतंग आ रही है"। "तू ले लेना।" न, न पैर पटकता छोटा भाई बङे के हाथ में पतंग को ही मचल रहा। " नीली पतंग गई "। काटने वाला खुशी से चिल्लाया। कटी पतंग के पीछे फिर चार पाँच बच्चें भागे। ध्यान ही नहीं गिर गये तो चोट कितनी लगेगी। दौड़ लगाते - लगाते कब साइकिल लेकर घूमने लगे। पता नहीं चला। गली के बच्चे संग ही साईकिल से परे गली मोहल्ले के चक्कर लगाते फिरते। जिन्होंने नई -नई साइकिल सीखी वे एक हाथ से चलाने को अपनी हीरोगिरि समझते,पुराने खुद को उस्दात। कोई -कोई ने स्कूटी भी सीख ली। अब माँ- बाप डरे रहते कहीं स्कूटी दीवार में न मार दे। अरे! चिंटू "एक बच्चा पुकारता है क्रिकेट खेलेंगे। फिर एक बार बच्चों का झुंड गलियों में दौड़ता मिलता है। " पकड़ -पकड़ गेंद पकड़ । "चौका "।चिल्लाते मोनू ने कहा। " अब पिंटू की बारी है। " पिंटू पहली बाँल फील्ड से बाहर एक दुकान में जा लगती है। जैसे ही बाँल दुकान के अंदर वैसे ही बच्चे बंदूक की गोली की भाँति फरार। दुकानदार छोटे बच्चे के पीछे लाठी लेकर पड़ता है पर वह भी बच निकलता है। इन बच्चों की गेंद जिसकी भी छत पर जाती है वह गेंद भी नहीं देता, बेचारे फिर गेंद खरीदते हैं। पिटठू मार खेलने के लिए कोई - कोई बच्चा ढेर सारे कपड़े लपेट लेता, किसी को गेंद लगने से दर्द ही नहीं होता। "बन गया, बन गया"- चिल्लाकर चिंटू घूमघूमकर नाचने लगा। मार -मार जल्दी मार मोहल्ले के घर में तेज तूफानी आवाजे गूँजने लगी। चारों तरफ भागम- भाग कोई पकड़ने भाग रहा तो कोई बचने। ऐ! निकलो सब यहाँ से शोर मचा रखा है लेटने भी नहीं देते।" शर्मा जी ने डाँटकर बच्चों को वहाँ से भगा दिया। सब बच्चे घर जाकर बैठ गये। इन बच्चों की उम्र सात से चौदह वर्ष है। घर पहुँचकर भी सामान इधर - उधर करने पर मम्मी डाँटती है। कहाँ जाये सब? जब पतंग छत पर उङाते है तब डाँट। पंद्रह अगस्त पर अलग ही रंग जमा लिया।आज सुबह ही प्रभात फेरी लगाने लगे। " भारत माता की जय "। सुभाषचंद्र बोस की जय"। " झंडा ऊँचा रहे हमारा "। गली- गली में शोरमचा चले जा रहे हैं। पूरी गली गुंजार है, लोग अपने घर से निकलकर देख रहे है, मुस्कुरा रहे हैं। बच्चें अच्छे रिपोर्टर की तरह गली मोहल्ले की एक - एक सूचना अपनी माँ को देते है। चैन तोङ बर्फपानी न जाने कौन - कौन से नये खेल सीख लिए। जरा में नाराज तो तुरंत एक दूसरे को मना भी लेते हैं फिर शुरू हंगामे के लिए। कभी देर तक नाराज नहीं रहते एक -दूसरे से। बङे कोमल हृदय के होते हैं बच्चे तकलीफ में भी नहीं देख सकते। एक दिन हो हल्ला करते क्रिकेट खेल रहे थे कि अचानक सामने के दुकानदार नीचे गिर पड़े । क्रिकेट खेलते सोनू की नजर उस पर पड़ी । वह दौड़ते हुए वहाँ पहुँचा उसके पी छे पूरी टोली पहुँच गई। इतने में चिंटू दौड़कर पास के क्लीनिक से डाँक्टर बुला लाया। सोनू ने उन्हें अपने पैरो पर लिटा रखा था। डाक्टर ने देखा उन्हें हृदयघात हुआ है। फौरन बच्चों की मदद से क्लीनिक ले गये। तब तक कुछ बच्चों ने उनके घर पर सूचना दे दी। जब तक घर वाले क्लीनिक पर पहुँचे डाँक्टर ने इंजेक्शन देकर स्थिति संभाल ली थी। परिवार वाले उन्हें दूसरे अस्पताल ले गये जहाँ उनका आँपरेशन किया गया। कुछ दिनों में स्वस्थ्य होकर वे दुकान पर बैठने लगे। बच्चों की धमाचौकङी मची हुई है। बच्चों को उन्होंने चीज खिलाकर धन्यवाद किया। पर आज भी बच्चे खेल के मोह में किसी न किसी से डाँट खाते रहते हैं।


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