Keyurika gangwar

Abstract Fantasy Inspirational

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Keyurika gangwar

Abstract Fantasy Inspirational

रात फिर आई थी

रात फिर आई थी

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रात फिर आई थी 

चाँद स्वच्छ धवल और चाँदनी अभी -अभी आई थी थोड़ी सी शरमाई थी।

देख दोनों को तारे भी मुस्काये थे, हाँ थोड़ा अलसाये थे।

रात फिर घिर आई थी।

दिनकर दूर कहीं, जाकर कर रहा विश्राम था 

अपने अग्रज की स्थान पर अनुज आया था।

प्रेम में उसके सारा जग नहाया था।

रात फिर घिर आई थी।


चौदह कलाओं का दृश्य था

चहुँ ओर मौन ,नीरवता का दृश्य था।

हँसती मुस्कुराती गणिकाएँ आई थी।

रात फिर आई थी।

स्पष्ट प्रकृति का स्वर आ रहा था

कल-कल झरने की जल आ रहा था

शांति का यह एहसास लाई थी रात फिर घिर आई थी।

बहन निद्रा मुस्कुराकर चल दी भागते जीवन को विश्राम दिलाने 

उसकी मुस्कान जग  में चुप्पी लाई थी 

रात फिर आई थी


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