Keyurika gangwar

Abstract Tragedy Inspirational

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Keyurika gangwar

Abstract Tragedy Inspirational

सौत भाग १३

सौत भाग १३

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सौत भाग १३


मन-अपने किये कर्म की वजह से इसकी यह दुर्गति है, पर क्या हमारा कर्तव्य नहीं की मृत्यु के द्वार पर खड़े व्यक्ति से घृणा न करें। जो इसने किया इसने भोगा फिर क्यों तुम अपने दायित्व से मुँह फेर रही हो।

तुम जीवन भर दूसरों की भलाई करती आई हो पुण्य ही पुण्य किया फिर इसे मुँह मोड़ कर पाप की भागी क्यों बन रही हो। जैसे सदैव रहती आई हो ,इसके साथ सदैव वैसे ही रहो। अपना कर्तव्य निभाओ।

आखिर मन ने अवचेतन मन पर विजय पाई। सोहना के पास जाकर उसके सिर को सहलाने लगती है। इतना प्रेम भरा स्पर्श पाकर सोहना आँखें खोलती है। उसकी आँखों में आश्चर्य ही आश्चर्य है। वह उठकर बैठने की कोशिश करती है ।

रहने दो सोहना ,लेटी रहो , कैसी है तुम्हारी तबीयत।

तुम यहाँ कैसे आई।

मुस्कुराते हुए तुम्हारा इलाज मेरी बेटी कर रही है।

क्या वो तुम्हारी बेटी है?

हाँ, कल बता रही थी अकेली स्त्री के स्थिति बारे में तो मुझसे रुका नहीं गया।

देखा तो यहाँ ,तुम्हें पाया।

तुम्हें क्रोध नहीं आया।

किस बात पर क्रोध करूँ, जब अपना ही नैया डुबाने वाला हो तो दूसरों को क्यों दोष देने लगे।

 सोहना यह बात जानती थी कि उसके बेटे की परवरिश मीनल ने की है अत: वह मीनल का हाथ पकड़कर अपने बेटे से मिलाने की प्रार्थना करने लगी।

वह फफक-फफक कर रो पड़ी।

मीनल धैर्य बाँधते हुए उसे उसके बेटे से मिलाने का वचन दे देती है।

दोनों एक दूसरे का हाथ थामें ही थे कि मीनल की बेटी आ जाती है।

मम्मा आप इन्हें जानती हैं। आश्चर्य से वह पूछती है।

हाँ , यह तुम्हारे भैया की माँ हैं।

क्या, आश्चर्य से वह चीख पड़ती है और घृणित दृष्टि से उस स्त्री की ओर देखती है।


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