दुखयारी माँ
दुखयारी माँ
दुखयारी माँ मेरे जीवन में एक वृद्ध महिला न प्रवेश किया । उनके पास ग्यारह वर्षीय पोता रहता । दोनों ही दादी पोते एक कमरे में गुजर -बसर कर रहे है। ऊपर का कमरा उन्होंने किराये प चढ़ा रखा है। इस कमरे के किराया और उनकी वृद्धा पेंशन से ही घर चलता है, मुश्किल से आय का साधन पाँच हजार रूपये होंगे। चलिए जानते हैं उनकी कहानी। कुछ साल पहले सब कुछ और लोगों की तरह ही था । अम्मा के जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ थी। एक बेटा और एक बेटी व अपने पति के साथ बड़ी हँसी-खुशी जीवन व्यतीत कर रहे थे। अम्मा का अपना स्कूल था ।। वे प्रतिदिन स्कूल जाती ,सभी उनसे प्रेम करते उनका व्यवहार ही बहुत सौम्य था। धीरे-धीरे बच्चे बड़े हो गये।।बेेटे व बेटी का विवाह कर दिया पर इन दिनों पति का साया सर से उठ गया। बेटी अपने घर को संभालने में व्यस्त रहने लगी । बेटे के विवाह को वर्ष व्यतीत हो गये और ईश्वर ने उन्हें पुत्र का आशीर्वाद दिया। दुर्भाग्यवश अभी नवजात केवल डेढ़ माह का था कि बच्चे की माँ गुजर गई। अम्मा फिर एक बार माँ बनना पड़ा। उसका मल -मूत्र सब साफ करती,अपने सीने से लगाकर रखती। अम्मा को ध्यान आया कि अगर मैं अपने बेटे की शादी कर दूँ तो मेरे पोते को माँ मिल जायेगी । यह सोच उन्होंनें अपने पुत्र का दूसरा विवाह कर दिया ,लेकिन पोते की जिम्मेदारी आज भी उनकी ही है।धीेरे-धीरे पाँच वर्ष बीत गये बच्चा भी पाँच -छ: साल का हो गया । इन पाँच सालों में केवल दो वर्ष ही सौतेली माँसाथ रही ,दो वर्ष बाद ही वह घर छोड़कर चली गई। उसकी दादी ही उसे सँभालती पर विधाता को न जाने क्या मंजूर था । बच्चे के सिर से पिता का भी साया उठ गया। "अम्मा बताती हैं कि शाम को वे दोनों यानि माँ -बेटे बात कर रहे ,तभी बेटे नेकहा -माँ,आप सो जाओ रात हो गई, मैया बाहर आकर सो गई। सुबह जब बहुत देर तक बेटा बाहर नहीं आया तो अम्मा सोचने लगी कि "आज बहुत देर हो गई,काम पर नहीं जायेगा।।" यह देखने के लिए वे कमरे में पहुँची तो देखती हैं कि बेटा तो कुर्सी पर वैसे ही बैठा है जैसे रात उन्होंनें छोड़ा था और पास ही हीटर जल रहा। माँ का हृदय चीत्कार उठा। बूढ़ी माँ का रो-रो कर बुरा हाल हो गया । बहन अलग बेहाल ,पर वह नन्हा परिंदा इन सारी बातों से अन्जान अपनी दादी की गोद में बैठा पिता को निहार रहा था। जैसे-तैसे पिता का अंतिम संस्कार पुत्र के हाथों करा दिया। बेटी तो अपने घर चली गई ,रह गये तो केवल दादी नाती। पुत्र के देहावसान के बाद भोली अम्मा को उनके साथ वालों ने मीठी-मीठी बातों में फँसा कर स्कूल के कागज अपने पास रख लिये और उसका मुनाफा खुद ही रखने लगे।
कुछ इस तरह कहा उन्होंने-"अम्मा हम स्कूल के लिए आपके कागज देखना चाहते हैं। वैसे ही बनवा लेंगे।"अम्मा सीधी -सादी विश्वास कर लिया और कागज दे दिये ,जब वापस माँगे तो कहा आपके पास है या मेरे पास बात एक ही है।" माताजी कुछ कर और कह न सकी।" अम्मा बच्चे के लालन -पालन में व्यस्त हो गई। बुढ़ापा ऊपर से अपने ही सताने वाले बहुत निकले । अम्मा बताती है कि मेरी बेटी ने कहा-" कि बिजली के पैसे दो दो हम जमा करा देंगें।" माँ ने सोचा अपनी बेटी है उन्होंनें ७०००० हजार रूपये दे दिये पर आज तक धी-दामाद ने न बिल जमा किया और न ही पैसे वापस किये। अम्मा की आँखों में परेशानी आ गई उनकी बेटी ने उनकी आँखों का आपरेशन करवाया जिसका ताना भी उन्हें मिल जाता है कि "आपके बेटे ने तो यह भी नहीं किया।" किससे कहे माँ दुखयारी एक बेटी है जो माँ की देखभाल में कोई रूचि ज्यादा नहीं रखती पर भतीजे पर अतिप्रेम के कारण पिज्जा,बर्गर आदि पर खूब पैैसे खर्च करती है। खैर,वो, माँ है और वोबेटी फिर वे एक होंगें। उधर प्राईवेट स्कूल के नये - नये फैसले अम्मा की कमर तोड़े है। अम्मा अब ज्यादा काम नहीं कर पाती पर करना तो था ही।ठंड के दिन तो और मुश्किल भरें होते। धीरे-धीरे समय गुजरता गया। उल्टा- सीधा करते -करते कब नन्हा परिंदा १६ वर्ष का हो गया पता ही नहीं चला। वह अब छोटी -छोटी कोंचिंग कर अपना खर्चा निकालने लगा। माँ अब कम चल फिर पाती पर उनका पोता उनका पूरा ध्यान रखता । उनका खाने-पीने से लेकर कपड़े तक धुलता। पोता निरंतर अपनी पढ़ाई और करियर पर फोकस करता । जब समय मिलता अपनी किताबे खोल लेता । उसके प्रयासों से प्रसन्न हो ईश्वर ने आखिर उसकी सुन ली और पोस्ट अॉफिस में पोस्ट मास्टर की नियुक्ति मिल गई। सभी कष्टों को पार कर आज उनके पोते का विवाह होने जा रहा है ।अम्मा बहुत खुश हैं , चारपाई पर बैठे -बैठे ही वे अपने पोते को दूल्हा बनते देखती हैं। पुरानी यादों से उनकी आँखें पनीली हो जाती हैं। जयमाल, फेरों व विदाई की रस्मों के बाद वर-वधू घर आते हैं । अम्मा खूब -खूब आशीर्वाद देती है। बहू भी अम्मा की बहुत देखभाल करती है। अम्मा -"बहू आज पेट में दर्द हो रहा है,ज़रा अजवाइन का पानी देना।" बहू फटाफट पानी लाकर देती है। अम्मा को कुछ राहत मिली। अम्मा सो जाती है। इतनी देर में बहू खिचड़़ी बना लेती है। अम्मा के उठनें पर बहू उन्हें खिचड़ी देती है ,अम्मा फिर बहू को आशीर्वाद देती। धीरे-धीरे अम्मा और भी वृद्ध हो जाती हैं। उन्हें अब कुछ याद भी नहीं रहता ।वे यह भी भूल जाती हैं कि ये लोग उनके अपने बेटे बहू हैं। करीब पोते-बहू की शादी को आठ माह हो जाते हैं और उनके घर नन्हें मेहमान की आहट होती है। बहू अम्मा के साथ अपना भी ध्यान रखती है। अम्मा का पोता अब उन दोंनों का बहुत ध्यान रखता है। कभी-कभी वह अम्मा के बालों को सुलझाकर चोटी करता तो कभी थपकी देकर सुला देता। वही अपनी पत्नी के लिए भी अत्यंत सजग है । वह उसकी छोटी -छोटी चीजों का ध्यान रखता है। आज बहू को प्रसव पीड़ा हो रही है, वह जल्दी से उसे अस्पताल ले जाता है। अम्मा हालाँकि भूल जाती है फिर भी पूछ बैठती है कि" बहू ठीक है क्या?" हाँ ,अम्मा आप परेशान न हो।" घर पक काम वाली बाई को निर्देश देकर वह अस्पताल में रहता है। थोड़ी देर में खुशखबरी मिली कि पुत्र हुआ है। सात दिन बाद पोता बहू के साथ घर आ जाता है। आज अम्मा के पड़पोते का नामकरण संस्कार है ,अम्मा बैठी-बैठी सब देख रहीं है। खाने की खुशबू पूरे घर में समा रहीं है। नामकरण के बाद बहू पुत्र को अम्मा के पास लेकर जाती है ,अम्मा खूब-खूब आशीर्वाद देती हैं फिर सभी खाने का आनन्द लेते है । बहू और पोते पहले अपनी अम्मा को खिलाते है फिर खुद खाते हैं। सभी मेहमान चले जाते हैं ।रात को दोनों अम्मा के पास बैठते हैं और अम्मा के सोने के बाद अपने कमरे में सो जाते हैं। आज नामकरण के चौथे दिन घर में फिर लोगों का तांता लगा है पर आज अम्मा सभी को छोड़ ईश्वर के पास चली गई और वहीं से अपने पोते -बहू और पड़पोते को आशीर्वाद देते बहुत खुश हैं।
