हैप्पी होली
हैप्पी होली


मैं खूबसूरत हूँ। ऐसा मेरा नहीं बल्कि मेरे आसपास के सभी लोगों का भी यही कहना है। अक्सर मेरी माँ को लोग कहते हैं….. किस्मतवाली है तू, तेरे घर चाँद जैसी लड़की हुई है। चाँद में तो फिर भी दाग है, लेकिन तेरी लड़की की सुंदरता में कोई दाग नहीं। माना ईश्वर ने गरीब बनाया है तुझे, लेकिन तुझे सुंदर लड़की देकर भगवान ने वो कमी भी पूरी कर दी।
जब लोगों की यह बातें सुनती थी अपने बारे में तो चेहरे का रंग और भी सफ़ेद हो जाता था। मुझे खूबसूरत होने पर गर्व था। बड़ी-बड़ी आंखें थी मेरी, तीखी नाक और गुलाबी होंठ। बुरी नज़र से बचाने के लिए एक काला तिल भी था मेरे गाल पर, जो मेरी सुंदरता पर चार चाँद लगा दिया करता था।
मैं अपने चेहरे का बहुत ध्यान रखती थी। धूप में बहुत कम जाती थी, कभी गलती से जाना भी पड़े तो चेहरा ढककर जाती थी।
हर साल होली आती और हर साल मैं घर में अंदर से ताला लगाकर बैठ जाती। एक बार बचपन में पड़ोस की लड़की ने ना जाने कैसा केमिकल वाला रंग लगा दिया था चेहरे पर कि कितने दिनों तक निशान नहीं गया था, दाने भी निकल आये थे। मैंने रो-रोकर माँ-पापा की जान खा ली थी। पापा ने बड़ी मुश्किल से पैसे का इंतज़ाम किया था, मुझे स्किन स्पेशलिस्ट डॉक्टर के पास ले जाने के लिए।
मैं भी क्या करती अपने इतने गोरे रंग पर दाग कैसे देखती रोज-रोज। लेकिन डॉक्टर की दी गई क्रीम लगाने से और दानों की दवाई खाने से मेरा चेहरा एकदम पहले जैसा सुंदर हो गया था।
माँ-पापा को मेरा यह बर्ताव अच्छा नहीं लगता था, हमेशा डाँटते थे……. सूरत हमेशा नहीं रहती, इतना अपने चेहरे से लगाव होना अच्छी बात नहीं। सीरत अच्छी होनी चाहिए, सूरत का क्या है ना जाने कब बिगड़ जाए।
उनकी ये बातें सुनकर मुझे गुस्सा आ जाता था और मैं उनसे बात नहीं करती थी।
इकलौती बेटी थी तो मुझे जैसे तैसे मना ही लेते थे माँ-पापा।
मेरे पापा क्लर्क थे एक प्राइवेट कंपनी में, जो घर के पास ही थी। कभी-कभी मैं उनको खाना देने चली जाती थी ऑफिस में, जब कभी वो खाना ले जाना भूल जाया करते थे।
एक दिन पापा बड़े खुश-खुश घर आये और माँ को पुकारने लगे…. उर्वशी की माँ कहाँ हो?
जल्दी से इधर आओ एक खुशखबरी है। उर्वशी के लिए रिश्ता आया है।
क्या कहा सच? …..किसके यहाँ से आया है?
मेरे बॉस के बेटे का….. आज बॉस ने केबिन में बुलाकर कहा कि उन्होंने कई बार उर्वशी को ऑफिस में आते देखा है। वो अपने बेटे आदित्य की शादी उर्वशी से करना चाहते हैं।
मैंने तो झट से हाँ कर दी। वैसे भी आदित्य बाबू बहुत अच्छे हैं दिल के, सबकी बड़ी मदद करते हैं, छोटा हो या बड़ा सबसे आदर से बात करते हैं।
माँ बोली…. ये तो बहुत अच्छी बात है।
पापा बोले…. लेकिन एक बात है उनका रंग थोड़ा काला है।
मैं अंदर कमरे से सब सुन रही थी, जैसे ही काले रंग के बारे में सुना तो मुझसे रहा नहीं गया। मैं एकदम गुस्से से बिफर पड़ी और पापा के पास पहुंच गयी……. मैं यह शादी हरगिज़ नहीं करूँगी। कहाँ मैं इतनी गोरी और वो काला, लोग मज़ाक उड़ाएंगे हमारा।
पापा ने कहा….. सूरत ही सब कुछ नहीं होती, सीरत भी कोई चीज होती है। तुझे उस घर में हर आराम मिलेगा, रानी बनकर रहेगी तू।
मैं मर जाऊंगी पापा, लेकिन आदित्य से शादी नहीं करूंगी।
ठीक है उर्वशी….. मरना है तो मर जा। मैं सोचूंगा मेरी कोई औलाद हुई ही नहीं।
मैं धक सी रह गयी ये जवाब सुनकर, आज तक कभी पापा ने ऐसी बात नहीं की थी।
माँ और पापा ने मेरी एक नहीं सुनी और जबरदस्ती मेरी शादी कर दी आदित्य से।
मैं माँ-पापा से इतना गुस्सा था कि मैंने भी ठान लिया था मैं कभी मायके में पाँव नहीं रखूंगी।
शादी के बाद ससुराल में मेरा भव्य स्वागत हुआ। हर कोई मेरी सुंदरता का दीवाना था। मैं सिर्फ बाहर से खुश रहने का दिखावा कर रही थी, अंदर से मैं बहुत दुखी थी। क्या करती, मेरे पास यहाँ रहने के सिवा कोई चारा भी कहाँ था।
आखिर वो रात भी आ गयी जिसका हर नवविवाहित जोड़े को इंतज़ार रहता है, लेकिन मुझे नहीं था। आदित्य आए कमरे में, कहने लगे इतने भारी कपड़े और गहने पहने हैं तुमने, इन्हें तुम उतार दो और नाईट सूट पहन लो। मैं कपड़े बदलकर आयी तो मेरे हाथ को अपने हाथों में लेकर कहने लगे….. तुम बहुत सुंदर हो और करीब आने के कोशिश करने लगे। मैंने एकदम से बहाना कर दिया कि मेरे सिर में बहुत दर्द है और थकान भी है मुझे सोने दो। आदित्य ने प्यार से माफ़ी मांगी और सोने दिया। कई दिनों तक मैं कुछ ना कुछ बहाना बनाती रही और नजदीकियां टालती रही।
फिर होली आ गयी, ससुराल में मेरी पहली होली। मैंने आदित्य को पहले ही कह दिया था कि मुझे रंग मत लगाना, मुझे रंगों से चिढ़ है। लेकिन आदित्य कहाँ मानने वाला था, वो जबरदस्ती मेरे गालों पर रंग लगाया जा रहा था, मेरी बालों में, कपड़ों पर हर जगह रंग ही रंग था। मुझे गले से लगाकर जोर से बोला कानों में….. हैप्पी होली उर्वशी।
मेरे सब्र का बांध टूट चुका था। मैंने आदित्य को जोर से धक्का दिया पीछे की तरफ और कहा….. दूर हटो मुझसे, मुझे रंगों से नफरत है। मेरा सारा चेहरा ख़राब कर दिया। मुझे नफरत है तुमसे, तुम्हारे रंग से, तुम्हारी छुअन से। आगे से कभी मेरे नजदीक आने की कोशिश मत करना। मैं अपना हाथ छुड़ाकर उससे दूर जाने लगी तो उसने जोर से मेरा हाथ पकड़ लिया और गुस्से से कहने लगा…… अगर मैं पसंद नहीं था तो तुमने मुझसे शादी क्यों की? क्या तुम्हें तुम्हारे माता पिता ने मजबूर किया था?
मैंने कहा…..हाँ ये शादी मैंने मजबूरी में की है तुमसे।
इतना सुनते ही उसने मेरा हाथ छोड़ दिया और मैं गुसलखाने में चली गयी नहाने। रंग तो उतर गया शरीर से लेकिन मन भारी-भारी महसूस करने लगा।
मुझे अंदर ही अंदर लगने लगा….. मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था आदित्य को, मैंने गलत किया।
उस दिन के बाद से आदित्य ने मुझसे बात करना छोड़ दिया। एक ही कमरे में दो अजनबियों की तरह रहते थे हम, वो मेरी तरफ देखता भी नहीं था। ना जाने क्यों उसके इस बर्ताव से मुझे बड़ी तकलीफ होती थी।
कुछ समय बाद अचानक से मुझे चिकनपॉक्स निकल आया। तेज़ बुखार और सारे शरीर पर मोटे-मोटे दाने निकल गए। डॉक्टर ने सबको घर में मुझसे दूर रहने के लिए कहा, लेकिन आदित्य नहीं माने। वो मेरे साथ कमरे में ही रहे। मुझे समय से दवाई देते, फल काटकर खिलाते। मैं रोती रहती थी सारा दिन यह सोचकर कि अब मेरा चेहरा ख़राब हो जाएगा। मेरे गोरे रंग पर दाग पड़ जायेंगे।
आदित्य ने मुझे रोता हुआ देखते हुए कहा….. चिंता मत करो तुम्हारा चेहरा ख़राब नहीं होगा। मैं अच्छे से अच्छे डॉक्टर से तुम्हारा इलाज करवाऊंगा।
आदित्य की बातें सुनकर मैं शर्मिंदा सी हो गयी। मुझे आत्मग्लानि होती थी आदित्य की तरफ मेरे व्यवहार को देखकर, लेकिन मैं उसे स्वीकार नहीं करती थी।
धीरे-धीरे मैं ठीक हो गयी, पर काफी इलाज के बाद भी चेहरे पर हलके दाग रह ही गए।
मैं ठीक हुई तो आदित्य को चिकन पॉक्स निकल आया मेरे साथ एक ही कमरे में रहने के कारण। पहली बार मुझे उससे घिन्न नहीं आयी। मैंने उसकी पूरी तन मन से सेवा की। उसे बुखार में तड़पता देखती तो मुझे तकलीफ होती। मैं अपने इस बदले रूप को समझ नहीं पा रही थी। मुझे लगाव होने लगा था आदित्य से। कुछ दिनों बाद आदित्य भी ठीक हो गए लेकिन कुछ ठीक नहीं हुआ तो वो हमारे बीच का रिश्ता। आदित्य अभी भी बात नहीं करते थे मुझसे और अब इस बात से मुझे कोफ़्त होने लगी थी। गलती मैंने की थी, माफ़ी तो मुझे मांगनी ही चाहिए थी।
एक रात सोते समय….. आदित्य मुझे माफ़ कर दीजिये मेरी गलतियों के लिए। मैं बहुत शर्मिंदा हूँ।
उर्वशी मेरे मन में तुम्हारे लिए कोई बैर नहीं, इसलिए माफ़ी मांगने की जरूरत नहीं। हर किसी की अपनी पसंद-नापसन्द है और मैं इसकी इज़्जत करता हूं।
तुम सो जाओ, मुझे भी नींद आ रही है।
मैंने कहा….. आदित्य आप चाहें तो मेरे साथ बेड पर सो सकते हैं।
नहीं उर्वशी मैं सोफे पर ही ठीक हूँ।
मुझे बहुत गुस्सा आ गया था यह बात सुनकर, कैसे कहती कि आदित्य को कि मुझे उससे प्यार हो गया है।
रात भर मैं बिस्तर पर करवटें बदलती रही। नींद नहीं आयी तो मैं आदित्य के पास जाकर जमीन पर सो गयी।
सुबह होने पर… अरे उर्वशी तुम यहाँ क्यों सोयी हो नीचे, बेड पर क्यों नहीं सोयी?
मैंने कहा…..जवाब अपने आप से पूछ लो।
आदित्य सब समझ रहे थे पर मुझसे कहलवाना चाहते थे।
धीरे-धीरे मैंने सासु माँ से उनकी पसन्द-नापसन्द के बारे में जानना शुरू कर दिया। रोज़ उनका मनपसन्द खाना बनाती, उनकी पसन्द से कमरा सजाती पर वो टस से मस नहीं हो रहे थे।
उधर आदित्य बड़ा खुश था मन ही मन उर्वशी में यह बदलाव देखकर, उसके मन में अपने लिए प्यार देखकर। लेकिन वो देखना चाहता था कि इस प्यार का रंग कितना गहरा है। इसलिये सब समझते हुए भी वो तवज्जो नहीं देता था उर्वशी की कोशिशों को।
इधर उर्वशी से आदित्य का यह बर्ताव बरदाश्त नहीं हो रहा था। वो आदित्य का प्यार चाहती थी अब जिसे वो अपनी बेवकूफ़ी के कारण ठुकरा चुकी थी।
एक दिन जब उससे आदित्य की बेरुखी बरदाश्त नहीं हुई तो उसने रविवार के दिन जब आदित्य सोफे पर सोया हुआ था तो उसके चेहरे पर गुलाल लगा दिया और उसके होंठों को चूम लिया। इतने में आदित्य की आँख खुल गयी…. रंग क्यों लगा रही हो मेरे चेहरे पर और तुमने मेरे होंठों को……
मैंने एक हाथ से कान पकड़कर माफ़ी मांगी और दूसरे हाथ से रंग लगाकर आदित्य के चेहरे पर कहा…. हैप्पी होली आदित्य और उसके होंठों को फिर से चूम लिया। आदित्य ने भी मेरे चेहरे पर रंग लगा दिया और मुझे गले से लगा लिया।
मैंने आदित्य के कानों में कहा …. आई लव यू आदित्य, अब ये प्यार का रंग कभी मेरे चेहरे से नहीं उतरेगा।