मेरे फर्ज़
मेरे फर्ज़


सुबह काम पर जाते समय,
सुनो अच्छे से आँगन बुहार देना
चूल्हे पर हांडी चढ़ा देना
बच्चों को पाठशाला भेजकर
अम्मा को दवाखाने दिखा आना
मंदिर में दिया जलाना मत भूलना
शाम को चाय के साथ पकौड़े तैयार रखना
रात को कुछ अच्छा सा बना देना खाने में
और हाँ आज मन थोड़ा रोमानी है
रात को कमरे में नहाकर आना।
ऐसे कैसे देखती हो ?
ज़रा सा काम है
घर पर सुलाने के लिए
ब्याहकर नहीं लाया
और देखो तबियत का बहाना
तो बिलकुल मत बनाना
औरत हो तुम, तुम्हारा फ़र्ज़ है यह सब
ना जाने मुँह से कैसे निकल गया
आपका फ़र्ज़ ?
तड़ाक से आवाज़ आई
चेहरे के साथ साथ जो दिल पर भी छप गई
काम पर जाता हूँ मैं,
तेरी तरह घर पर खाट नहीं तोड़ता
यही संस्कार दिये हैं तेरे माँ-बाप ने
पति से सवाल करती है।
जा रहा हूँ, तैयार रहियो रात को।
वो चला गया और मैं सोचती रही
माँ तुमने चुप रहकर सब कुछ
सहने का संस्कार क्यों दिया ?
यह तुमने अच्छा नहीं किया माँ
अच्छा नहीं किया।