पचपन की उम्र
पचपन की उम्र


अभी अभी पचपन का हुआ हूँ। मुझे नहीं लगता मैं बूढ़ा हो गया हूं। वक़्त की रफ़्तार धीमी ज़रूर हुई है, पहले जैसी ऊर्जा अब नहीं है। मन की चपलता ख़त्म हो गयी गई है, जीवन में आये स्थायित्व से मैं थोड़ा ठहर सा गया हूँ।
पहले जोश अधिक था, जीने का नजरिया अलग था। अब हर विषय पर विचार करता हूं और अपने निर्णय की जिम्मेदारी स्वयं लेने का साहस रखता हूँ।
सपने अभी भी देखता हूँ, प्रेम अभी भी करता हूँ। फर्क नहीं पड़ता अब तुम कैसी दिखती हो, तुम साथ हो मेरे, यही काफी है जिंदगी जीने के लिए।
सच कहूँ तो अब जौहरी बन गया हूँ, हर चीज़ की सही कीमत जानता हूँ। जान गया हूं कि जान है तो जहान है, स्वस्थ शरीर ही असली भगवान है। प्रेम वो संजीवनी है जो तन और मन के सारे रोग दूर करने में सक्षम है। धन है तो जीवन में सुविधाएं है, आराम है। आपके साथ दुआएं हैं लोगों की तो आप सुरक्षित है। परिवार का साथ और प्यार से बड़ा कोई सुख नहीं है।
जी हां मैं पचपन का जरूर हुआ हूँ लेकिन बूढ़ा बिलकुल भी नहीं हुआ हूँ। बस उम्र के साथ पहले से ज़्यादा अनुभवी और परिपक्व हुआ हूँ।