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Soniya Jadhav

Drama Tragedy

3  

Soniya Jadhav

Drama Tragedy

मकड़जाल

मकड़जाल

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उठने बैठने की तमीज, हंसने बोलने की तमीज, सब कुछ मुझे ही क्यों सिखाती हो मां ? क्यों हर वक्त रोना लगाए रहती हो ? सिलाई सीख ले, खाना बनाना सीख ले, घर का काम सीख ले, कल ससुराल में काम आएगा, थोड़ा भैया को भी सिखा लेती।

जिन संस्कारों की शिक्षा तुम मुझे रोज देती हो वही संस्कार थोड़े से भैया को भी दे देती, तो क्या जाता तुम्हारा। हर वक्त मेरे सर पर ही क्यों बोझ डाला जाता है संस्कारों का, हर वक्त मुझे ही क्यों तमीज सिखाई जाती है?

मोहल्ले की लड़कियों को ताकता है दिन भर, हर बार कक्षा में फेल हो जाता है। कोई उसे कुछ कहता नहीं, रोज उसे गिलास भर के दूध पिलाया जाता है, मक्खन खिलाया जाता है और मुझे संस्कारी होने का पाठ पढ़ाया जाता है।

 कुछ कहूं तो मुझे विद्रोही समझा जाता है। मेरी सोच को दबाने के लिए " इसका जल्दी ही ब्याह करा दो वरना लड़की हाथ से निकल जाएगी " का नारा लगाया जाता है।

 मां तुम औरत होकर औरत का ही दमन करने निकली हो। पर कभी-कभी लगता है तुम्हारा भी कसूर कहां है ? तुम्हें समझने का मौका ही नहीं मिला खुद को कि तुम एक औरत हो, तुम्हारी अपनी एक सोच है, अपनी भावनाएं हैं। तेरह वर्ष की उम्र में तुम्हारा ब्याह करा दिया गया तीस साल के आदमी से। ना तुम ठीक से बचपन जी पाई, ना तुम तुम किशोर मन की भावनाओं को समझ पाई। तुम्हें एक ऐसी औरत बना दिया गया, जिसका मकसद चूल्हा जलाने, गोबर उठाने और रात को पति का बिस्तर सजाने के अलावा कुछ नहीं है। तुम्हारे दो बच्चे हैं और तुम नहीं जानती प्रेम क्या होता है। पैंतीस वर्ष की हो तुम और तुम्हारी अपनी कोई राय नहीं है, पिता की सोच ही तुम्हारी सोच है।

 जिन्हें तुम संस्कार कहती हो वो पुरुषों का बनाया मायाजाल है औरतों को फंसाने के लिए। पुरुष नहीं चाहता कि औरत कभी भी उसके मायाजाल से मुक्त हो, कभी भी अपनी कोई अलग राय रखे। उसकी मर्जी के बिना अपनी सांसे तक ले।

 अगर औरत जीना सीख गई, अपने विचार व्यक्त करना सीख गई, अपने आप को खुलकर महसूस करना सीख गई, तो पुरुषों की सत्ता खतरे में पड़ जाएगी।

समझो माँ, इस मकड़जाल से बाहर निकलो, मुझे पढ़ने दो। कल मेरा पेपर है विज्ञान का। सब्जी भाई को बोल दो काटने के लिए, आज झाड़ू उसे मारने दो। मुझे तुम पढ़ने दो।

माँ ने किताब छीन ली और थप्पड़ लगा दिया मुंह पर। इन्हीं किताबों को पढ़- पढ़ कर बकवास करना सीख गयी है। आने दे तेरे बापू को, सर्दियों में तेरा लगन नहीं कराया तो मैं भी तेरी माँ नहीं।

बाबू जा तू दूध पीकर खेलने जा बाहर।

बाबू दूध पीते पीते तिरछी नज़रों से देखने लगा और मुस्कराने लगा। मानो कह रहा हो, बड़ी आयी मकड़जाल से बाहर निकलने वाली, पुरुषों की सत्ता को चुनौती देने वाली।

हमने औरत के खिलाफ औरत को ही खड़ा किया है। अब लड़ो, मरो, कटो, हमें इससे क्या?


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