Sonia Jadhav

Abstract Drama

4.8  

Sonia Jadhav

Abstract Drama

सीधी बात

सीधी बात

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सोचा है आज सीधी बात कर ही लूँ, बहूत हो गया इन बच्चों के इशारों पर चलना। कितना बोलना है, कितना चुप रहना है, अब यह सिखाएंगे हमें। पैदा मैंने किया इन्हें और बाप मेरे ये बन रहे हैं साले।

लक्ष्मी अपने पति नारायण को समझाते हुए।।

हाथ जोड़ती हूं तुम्हारे, चुप रहो । जानती हूँ तुम्हारी सीधी बात करने का तरीका। पहले कुछ बोलते नहीं हो और फिर बाद में सीधा तोप छोड़ देते हो। दो वक़्त की रोटी मिल जाती है सुबह-शाम और क्या चाहिए। अब इस बुढ़ापे में इतना हो-हव्वा करोगे तो दो वक़्त की रोटी से भी जाएंगे।

नारायण: वाह री मेरी पत्नी ! स्वाभिमान नाम की चीज़ है कि नहीं कोई। बस भगवान ने एक पेट दे रखा है, उसी की चिंता में दिन - रात घुलती रहती है।

पता है, परसों बहू फ़ोन पर बतिया रही थी अपनी माँ से। कह रही थी। मम्मी मुझसे तो मुन्ना संभलता नहीं है, इसलिए इसके दादाजी को दे देती हूं। शाम को मुन्ना और सब्जी का थैला थमा देती हूं हाथ में और मैं बेफिक्र हो जाती हूं। मुन्ना फेसबुक तक चेक नहीं करने देता, शोर मचाता रहता है हमेशा। इसके पापा को बोला था पैदा किया है तो संभालो भी, कहते हैं।। मेरे पापा को दे-दे, कुछ तो बुढ़ापे में काम आएंगे। वैसे भी बुढ्ढों की शाम को रोज़ मीटिंग होती है पार्क में। खीं-खीं करते रहते हैं सारे, काम- धंधा तो कोई है नहीं।

मेरे बारे में ही नहीं, तेरे बारे में भी कह रह थी बहू। 

मम्मी । सासू माँ दिन भर खाती रहती है और मै खाऊं तो कहती है पहले ही इतनी मोटी है, ज्यादा खायगी तो और फूल जायगी।

मैंने भी सब्जी काटने के, आटा गूंधने के काम में लगा दिया है। बाज़ार का काम तो कर नहीं सकती वो, कम से कम घर का तो कर ले।

मैं मुन्ना को अपनी जान की तरह संभालता हूं। थक जाता हूँ पार्क में उसके पीछे भाग-भागकर। एक मिनट बैठता नहीं है वो। अब क्या बूढ़ी हड्डियों में इतना दम है दौड़-भाग करने का?

इन्होंने तो नौकर बनाकर रख दिया है।

लक्ष्मी: आंसुओं को साड़ी के पल्लू से पोंछती हुई।

हाँ मुझे मालूम है ये सब, पर क्या करती? बुढ़ापे को देखते हुए चुप हो जाती हूँ बस।

जी! मैंने कभी उसे मोटा नहीं कहा। हाँ, वो सारा दिन बिस्कुट-चॉक्लेट खाती रहती है, इसके लिए कहा था कि इन सबकी जगह फल खायगी तो सेहत के लिए अच्छा रहेगा, बदन छरहरा हो जायेगा। लगता है, कुछ उल्टा ही समझ लिया है उसने।

सच कहूं तो मेरा भी मन उठ गया है यहाँ से। लेकिन करें तो करें क्या।।

नारायण: माहौल को हल्का बनाते हुए।

चल भाग चलें यहाँ से ( हँसते हुए )।

लक्ष्मी: धीरे बोलो बहू ने सुन लिया तो कहेगी बेटे से।।

देखो तुम्हारे मम्मी-पापा मुझ पर हंस रहे है, मेरा मज़ाक उड़ा रहे हैं और फिर हमारा बेटा आ जायेगा हमे समझाने।

नारायण: लक्ष्मी तुम सामान बांधने की तैयारी करो। मुझ पर भरोसा है ना !

लक्ष्मी: नारायण की आंखों में देखते हुए।

खुद से ज्यादा।

रात 10 बजे के बाद।

नारायण: सुनो बेटा, हमें तुमसे कुछ बात करनी है।

बहू: कब आओगे सोने तुम, देखो जल्दी आओ, मुझे नींद आ रही है। (चिल्लाते हुए)

मुन्ना को ले जाओ, बाबूजी को दे दो । उनके पास सोने की जिद कर रहा है।

नारायण: बहू ज़रा तुम भी बाहर आ जाओ।

बेटा नमित। मैं और तेरी माँ कल रात की फ्लाइट से केरल जा रहे हैं।

नमित : केरल किसलिए ? वो भी अचानक !

नारायण : केरल, मुन्नार में हमारी उम्र के लोगों के लिए रिटायरमेंट होम्स बने हुए हैं। डॉक्टर्स, घर काम के लिए हेल्पर, यहाँ तक की राशन की दुकान भी सोसाइटी के अंदर है। मेरे काफी दोस्त रह रहे है वहाँ और अपनी बाकी की बची हुई जिंदगी आराम से प्रकृति की गोद में गुज़ार रहे है।

मैंने भी दो कमरों का एक छोटा सा कॉटेज लिया है। अब हम दोनों वहीँ रहेंगें।

बहू: हंसने लगी।

वाह बाबूजी ! हरिद्वार जाने की उम्र में केरल जा रहे हैं।

बेटा : पापा आपको इस उम्र में यह सब क्या सूझ रहा है। घर पर रहिये ना। आपकी बहू आपको दो वक़्त का खाना बनाकर देती है ना, फिर आपको किस बात की कमी है। रही झगड़ों की तो वो हर घर में होते हैं।

आप चले गए तो मुन्ना को कौन संभालेगा? इतने भी स्वार्थी मत बनिए। हमारे बारे में कुछ तो सोचें।

और हाँ, आपके पास पैसे कहाँ से आये कॉटेज लेने के लिए? वहां आपके राशन का, दवा-पानी का खर्चा कौन करेगा? 

मुझसे मत उम्मीद रखियेगा।

नारायण : तू भूल गया शायद मेरी एक बेटी भी है, उसने ही अमेरिका में रहते हुए ये सब प्लान किया और मेरे जन्मदिन पर यह उपहार दिया। वही हमारा सब खर्चा उठाएगी। तुझे तो याद भी नहीं, तेरे बाप का जन्मदिन कब आता है?

 तेरी बहन रश्मि ने कहा। पापा आपने अपनी सारी जिंदगी हमारे लिए जी, हमें सब कुछ दिया।

अब मम्मी और आप सिर्फ अपने लिए जियो।

बहू और बेटा दोनों सकते में थे, समझ नहीं पा रहे थे क्या बोले ?

लक्ष्मी ने मेरा हाथ पकड़ा और बहू की तरफ देखकर बोली।

भगवान का नाम जपने के लिए हरिद्वार जाना जरूरी नहीं है। केरल में भी भगवान बसते हैं।

उम्र भर हमने बेटे को संभाला, पोते को भी सम्भालने में हमें गुरेज़ नहीं, लेकिन दादा-दादी की तरह, नौकर की तरह नहीं।

मरने से पहले फोन करेंगे, समय हो तो चिता को अग्नि देने आ जाना, नहीं तो रिटायरमेंट होम वाले खुद दे देंगे, ठीक है।।

नारायण और लक्ष्मी दोनों कमरे में चले गए और रोने लगे। माँ-बाप कितने भी कठोर हो जाये, रहते तो माँ-बाप ही हैं।

बहू: तुम अपने माँ-बाप को समझाते क्यों नहीं, बुढ़ापे में आशिकी सूझ रही है और ना जाने क्या क्या बड़बड़ाने लगी।

नमित गुस्से से चिल्लाया, बस करो अब। 

मैं समझ गया हूँ उनका दर्द। इस घर में उन्हें दादा-दादी का सम्मान मिलना चाहिए था और हमने उन्हें मुन्ने का केयरटेकर बना दिया।

तुम तो पराया खून हो, तुमसे क्या उम्मीद रखूं कि तुम समझोगी उन्हें।

गलती मेरी है, मैं तो उनका बेटा था, मुझे तो समझना चाहिए था।

अगली रात 7 बजे ही नमित ऑफिस से घर जल्दी आ गया था।

हम जाने के लिए तैयार ही खड़े थे, नमित बोला। पापा ! मैं भी चल रहा हूँ आपको एयरपोर्ट छोड़ने। ये कुछ सामान और दवाइयां हैं, रख लीजिए।

अचानक ही लक्ष्मी के मोबाइल पर बीप हुई, देखा तो नमित ने 20,000 रूपए ट्रांसफर किये थे लक्ष्मी के एकाउंट में। 

मैं और लक्ष्मी हैरान थे।

जैसे ही नमित ने सॉरी पापा कहा और मेरे गले से लगकर फूट-फूटकर रोने लगा तो हमारा सारा गुस्सा पल भर में पिघल गया।

हमने मुन्ना को ढेर सारा प्यार किया और बहू को आशीर्वाद देकर नमित के साथ एयरपोर्ट के लिए निकल गए।

फ्लाइट में बैठे हुए लक्ष्मी ने कहा।

कभी-कभी सीधी बात टेड़े से टेड़े रिश्तों को भी सीधा कर देती है।

धन्यवाद। ( उसकी आँखों में ढेर सारा प्यार दिख रहा था मेरे लिए )


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