Sonia Jadhav

Tragedy

4.5  

Sonia Jadhav

Tragedy

लाचार माता पिता

लाचार माता पिता

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"सुनीति क्या हुआ? आज चेहरा मुरझाया हुआ लग रहा है तुम्हारा, तबियत ठीक नहीं क्या?"

"हाँ, थोड़ा छाती में दर्द सा महसूस हो रहा है, लगता है एसिडिटी का दर्द सीने तक पहुँच गया है। ज़रा एक ग्लास पानी और एसिडिटी की गोली तो देना मुझे।"

"हाँ अभी देता हूँ, तुम घबराओ नहीं। "

गोली खाकर सुनीति सो गयी , सोचा रसोई में नाश्ते के बर्तन पड़े हैं झूठे, वो साफ़ कर देता हूं और दोपहर के लिये दाल-चावल चढ़ा देता हूँ कुकर में।उसकी तबियत खराब है, आज उसको परेशान नहीं कर सकता। उसे कुछ हो जायेगा तो मैं अकेला कैसे जियूँगा। आजकल यही चिंता सताती रहती है मुझे। 

मेरी उम्र 75 साल की हो गयी है और वो 70 साल की है। जानता हूं, दोनों एक साथ नहीं मरेंगे, एक आगे जायगा तो एक पीछे। लेकिन जो भी पीछे जायगा, वो अकेला रह जायगा। हमेशा यही सोचता हूँ, अगर मैं गया पहले तो वो कैसे रहेगी अकेली मेरे बिना, और वो गयी तो मैं कैसे रहूँगा उसके बिना।

शादी के इतने साल एक-दूसरे के साथ रहने के बाद इतनी आदत हो जाती है एक दूसरे की, दोनों का अस्तित्व एक सा हो जाता है, जैसे अपने ही शरीर का हिस्सा हो। लड़ाई-झगड़े, नोक-झोंक तो चलती रहती है उम्र भर। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि शादी में प्यार नहीं है। मैं उससे बहुत प्यार करता हूं और उसके बिना अकेले जीने की कल्पना मात्र से ही मेरी रूह कांपने लगती है।

हम दोनों अकेले रहते हैं, एक बेटा है , अमेरिका रहता है अपने बीवी- बच्चों के साथ। फ़ोन पर बात होती है रोज । हर महीने पैसे भेजता है वो। कहता है, पापा आप इधर आ जाओ मेरे पास रहने के लिए। पर हम ही नहीं जाते। ऐसा अक्सर मैं लोगों से कहता हूं, जब भी वो मेरे बेटे के बारे में पूछते है।

दरअसल मेरा बेटा इसी शहर में रहता है अपने परिवार के साथ। पहले हम सब साथ रहते थे, पर हम लोगों की आपस में बनी नहीं और हम अलग हो गए। मेरे पास दो घर हैं, एक दो कमरों का और एक तीन कमरों का। मैं सुनीति को लेकर दो कमरों वाले घर में शिफ्ट हो गया। मैं अपने बुढ़ापे के दिन इज़्ज़त और शांति से गुजारना चाहता था, इसलिए अलग हो गया। मैं और सुनीति दोनों की सरकारी नौकरी थी, हमें पेंशन मिलती है जिससे हमारी गुजर-बसर आसानी से हो जाती है। अपनी मर्ज़ी से , आज़ादी से जीते हैं शान से, उसके पैसों पर निर्भर नहीं है हम।

"अरे सुनीति उठ गयी, देखता हूं कैसी है वो।"

"मैं ठीक हूं सुनील अब, चलो खाना बना देती हूं।"

"नहीं रहने दो, मैंने बना दिया है।" सुनीति की आँखों में मुझे नमी दिखी।

"सुनील कितने दिनों से नमन का फोन नहीं आया है, उससे बात करने का मन कर रहा है।'

"मैंने किया था फोन उसे, उसने कहा बिजी है वो बाद में बात करेगा।"

"मैं जानती हूँ उसका बाद कभी नहीं आयेगा। एक महीने से नमन से बात नहीं हुई थी।"

"हमें सिर्फ वक़्त चाहिए था अपने बेटे से, बस दिन मैं एक बार फोन करके हाल-चाल ही पूछ ले, कैसे हो आप दोनों, किसी चीज़ की जरूरत तो नहीं।

कोरोना का समय है, काम वाली ने आना बंद कर दिया है। कैसे तो बुढ़ापे में एक दूसरे को संभाल रहे है। उसे एक बार भी नहीं लगा, हमें उसकी जरूरत होगी। वक़्त ही तो माँगा था, पैसा तो नहीं...."

"सुनीति रो मत, तबियत खराब हो जायेगी, चल खाना खाते हैं।"

रात को अचानक सुनितिं की छाती में दर्द हुआ और और उसकी साँसे उखड़ने लगी, इस बार एसिडिटी का दर्द नहीं था। मैंने नमन को फ़ोन मिलाया, उसने उठाया नहीं। पड़ोसियों का दरवाज़ा खटखटाया तो उन्होंने खोला नहीं। 

मेरे घबराहट के मारे पसीने छूट रहे थे और आँखों से आंसू बह रहे थे। ज्यादा सोचने का वक़्त नहीं था, मैंने मास्क पहना, सैनिटाइजर लिया और जैसे तैसे सुनीति को कार में बैठाया और हॉस्पिटल ले गया। कोरोना के कारण वैसे ही हॉस्पिटल्स का बुरा हाल था। बहुत हाथ जोड़े तब जाकर उसका इलाज शुरू हुआ। वो आई सी यू में थी, उसे दिल का दौरा पड़ा था। डॉ आशिमा ने बताया। बड़ी भली लड़की थी उसी ने सब मदद की। मुझे चाय तक लाकर दी। 

मैंने बेटे को फिर फ़ोन लगाया, इस बार उसने फ़ोन उठा लिया। 

"तुम्हारी माँ को दिल का दौरा पड़ा है, जल्दी हॉस्पिटल आ जाओ, वो icu में है।" 

"पापा, मैं अमेरिका में हूं अपने परिवार के साथ। एक महीना हो गया हैं मुझे यहाँ आये हुए। कोरोना के शुरू होने से पहले ही मैं यहाँ आ गया था, अच्छा जॉब ऑफर था, छोड़ नहीं सकता था।" 

"क्या?......... तूने जाने से पहले बताना, हमे मिलना जरुरी नहीं समझा। ऐसे कैसे चला गया तू बिन बताये, माँ-बाप हैं हम तेरे। शर्म आनी चाहिए तुझे, नहीं शायद हमें कि हमने ऐसी संतान को जन्म दिया।"

"सॉरी पापा, सब कुछ बहुत जल्दी में हुआ, नए देश में सेटल होना, सब तैयारी करने में वक़्त ही नहीं मिला।माँ का ख्याल रखना। मैं पैसे नहीं भेज पाउँगा, कोरोना के कारण अमेरिका में हालात खराब है। ये वाला नंबर बंद करने वाला हूं, नए नंबर से कॉल करूँगा, सेव कर लेना। " यह कहकर उसने फोन रख दिया। 

पैसे के लिए फ़ोन नहीं किया था। मैंने तो अपना बेटा समझकर फोन किया था। इस वक़्त मैं अपने बेटे के सीने से लगकर रोना चाहता था, पर मैं अकेला था, कोई कहीँ अपना नहीं था मेरा। पहली बार खुद को इतना अकेला और लाचार महसूस किया था। मेरी आँखों से आंसू बह रहे थे। आज दो दिन हो गए थे सुनीति को icu में , वो खतरे से बाहर थी। लेकिन दवाइयों के असर के कारण नींद में थी। बात करने की स्थिति में नहीं थी। बार-बार हॉस्पिटल के चक्कर काटने के कारण मुझे बुखार आ गया तेज और मैं icu के बाहर ही चक्कर खाकर गिर पड़ा। मुझे कोरोना हो गया था , मुझे कोरोना वार्ड में भर्ती कर दिया गया।

क्या हालत थी मेरी , आप समझ नहीं सकते। एक तरफ सुनीति icu मे और एक तरफ मैं कोरोना वार्ड में। ना मैं उससे मिल सकता था, ना वो मुझसे। बस मुँह से एक ही बात निकल रही थी भगवान कभी किसी को बूढ़ा, लाचार ना बनाए। बीमारी बुढ़ापे की कमर तोड़ देती है और सहारा देने वाला कोई नहीं होता।

हम दोनों को सहारे की जरूरत थी, पर कोई सहारा देने वाला नहीं था। कोरोना से मैं ठीक हो गया था, सुनीति भी वार्ड में शिफ्ट हो गयी थी, मगर मैं अभी उससे मिल नहीं सकता था। कुछ दिन मुझे और आइसोलेशन में रहना था, उसको मुझसे इन्फेक्शन हो सकता था।डॉ आशिमा मेरी सारी कहानी फोन पर सुन चुकी थी। वो जान गयी थी हम अकेले है। 

वो मेरे पास आई, "चलिये अंकल आप मेरे घर चलिये कुछ दिन रहने के लिए, आपको केअर की जरूरत है।" 

"नहीं बेटा, तुमने कहा यही बहुत है। मैं कर लूंगा अपनी देखभाल कैसे भी, तुम परेशान मत हो।"

"परेशानी कैसी, मैं अकेली रहती हूं मेरे माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं है। ना जाने क्यों, मुझे आप में अपने पापा की झलक दिखी। प्लीज, आप ना मत करिए।"

डॉ आशिमा मुझे और सुनीति को घर ले गई, घर पर हमारा ख्याल रखने के लिए एक नर्स रख दी।

सुनीति अब ठीक हो गयी थी, बार-बार पूछती नमन को फोन मिला दो, आपने उसको बताया नहीं होगा हमारी तबियत के बारे में। उसे पता होता तो वो हमसे मिलने जरूर आता।मैं हँसने लगा........

"क्या हुआ , ऐसे क्यों हँस रहे हो, अपना खून है वो हमारा। देख लो, उसे पता चलेगा कि हमने उससे अपनी बीमारी की इतनी बड़ी बात छुपाई है तो वो कितना नाराज़ होगा हमसे"।

सुनीति मेरे मना करने पर भी खुद फोन लगाने लगी। नमन ने फोन उठाया और कहने लगा , माँ अभी रात हो रही है, सोया हूं मैं। सुबह उठकर बात करूँगा और फ़ोन काट दिया।सुनीति, सुबह ही तो है, फिर उसने ये क्यों कहा रात हो रखी है, सोया हुआ हूँ मैं। पागल हो गया है क्या यह लड़का। शायद सुनीति ने देखा नहीं, ये बाहर का नंबर था।वो अमेरिका चला गया है अपने परिवार के साथ, एक महीना हो चुका है। मैंने फोन किया था जब तुम icu में थी।

सुनीति हैरान थी, रो भी नहीं पा रही थी। वो मेरे गले से आकर लग गयी और रोने लगी। 

"आपने कैसे किया होगा सब कुछ अकेले, मेरी बीमारी, आपकी अपनी तबियत। यह सोचकर ही मेरा जी घबराता है।"

"सुनीति तुम परेशान मत हो।मैंने भी उस वक़्त बहुत लाचार, अकेला महसूस किया था खुद को। पर तुम्हारे लिए खुद को कैसे तो संभाल लिया। जब तक तुम हो मेरे साथ , तब तक मैं बूढ़ा जरूर हूं, पर लाचार और अकेला नहीं।

डॉ आशिमा के कमरे में गयी सुनीति , कहने के लिए कि अब हम जाना चाहते है अपने घर। देखा तो आशिमा बुखार से तप रही थी। सुनील और सुनीति आशिमा को हॉस्पिटल लेकर गए फटाफट। आशिमा को कोरोना हुआ था।घर में ही आइसोलेशन में रहने के लिए बोला गया था, साथ में कुछ दवाइयां देकर घर भेज दिया था।सुनीति और सुनील ने उसका बहुत ख्याल रखा। आशिमा के ठीक होने के बाद सुनील ने कहा अब वो जाना चाहते है अपने घर। 

"बहुत तकलीफ दी तुम्हे बेटा, शुक्रिया कहकर जो तुमने हमारे लिये किया, मैं उसका अपमान नहीं करना चाहता।"भगवान् तुम्हें हमेशा खुश रखे, सुनीति ने आशिमा को गले से लगाया और रोने लगी।

आशिमा ने कस कर सुनीति को प्यार किया और मेरी तरफ देखकर बोली, " मैं अपने माँ-पापा से फिर से अलग नहीं होना चाहती, प्लीज रुक जाइये।

पापा प्लीज्......"

यह सुनते ही हमारी आँखे भर आयी और हम अपनी बेटी के घर रुक गए हमेशा के लिए।



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