Sonia Jadhav

Romance

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Sonia Jadhav

Romance

सोनूदीप

सोनूदीप

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अस्पताल में भर्ती है मेरी सोनू, थोड़ी साँस की तकलीफ है उसे। पैंसठ वर्ष की है वो, मुझसे चार साल छोटी। वो हमेशा मुझसे कहती थी, "देख लेना, मैं तुमसे पहले जाऊँगी और मैं उसे डाँटता था कि हमेशा मरने की बातें क्यों करती हो। वो कहती थी, मैं तुम्हारे बिना अकेले नहीं जी सकती, स्वार्थी हूँ थोड़ी। इसलिए तुमसे पहले जाना चाहती हूँ।"

सोनू को कभी मरने से डर नहीं लगता, लेकिन उसे अकेलेपन से बहुत डर लगता है। दिन तो वो मज़े से काट लेती है, पर शाम होते ही सन्नाटा उसे काटने को दौड़ता है।

मैं सोनू के पास बैठा हूँ, उसका हाथ अपने हाथों में लिए। सो रही है वो। अभी भी कितनी अच्छी लग रही है। मुझे उसकी सादगी पसंद है। "मेरे लिए सब कुछ हो तुम", लेकिन कभी कहा नहीं। ऐसे ही, प्यार जताना मुझे ज्यादा पसंद नहीं, पर सोनू को पसंद है सदा मेरे इर्दगिर्द रहना, मेरे सीने से लगे रहना। मैं उसे प्यार से चिपकू कहकर बुलाता हूँ, जिससे वो अक्सर गुस्सा हो जाती है और मुझसे अलग होकर चुपचाप बैठ जाती है, लेकिन सिर्फ थोड़ी देर के लिए। हा-हा....( बात करने का इतना शौक जो है उसे)

सोनू शांत है काफी दिनों से अपनी ख़राब तबियत के कारण, नहीं तो वो इतना बोलती है कि मेरा आधा दिमाग खाली कर देती है। हा-हा........(हँसी आ गयी सोचते-सोचते)

मेरे ऑफिस से आते ही वो शुरू हो जाती थी, अपने पूरे दिन की कहानी बताना। कभी-कभी तो वो यह भी नहीं देखती कि मैं सुन भी रहा हूँ कि नहीं, जवाब भी दे रहा हूं कि नहीं, बस बोलती रहती थी। एक दिन मेरे पास आकर बोली, मुझे मालूम है तुम कई बार मेरी बातें ध्यान से नहीं सुनते, लेकिन मैं क्या करूँ? जब तक तुम्हें दिन भर का हाल बता नहीं दूँ, मुझे खाना हज़म ही नहीं होता और फिर हँसने लग जाती है।

हमारी शादी को बत्तीस साल हो गए हैं और हमें एक दूसरे के साथ की इतनी आदत पड़ चुकी है कि हम बिन बोले एक दूसरे के मन की बात समझ जाया करते हैं। सोनू अक्सर मुझसे पूछती है, अगर मैं पहले चली गयी तुमसे, तो तुम मेरे बगैर कैसे जियोगे? मैं हँसकर कहता हूँ , मैं किसी आश्रम में चला जाऊँगा और भगवान का ध्यान करूँगा। सच कहूँ, यह अक्सर मैं झूठ कहता हूँ। मैं नहीं सोचना चाहता था किसी भी ऐसे पल के बारे में, जो उसके बिना जीना पड़े मुझे। मुझे वो हमेशा मेरे आसपास चाहिए होती है, चाहे हम बात करे या ना करे। बस जिंदगी के बीते हुए लम्हों को याद करके आँखे नम हो गई और एक आंसू की बूँद शायद उसके हाथ पर छलक गयी, कि तभी सोनू की आंख खुल गयी। मैंने अपना हाथ उसके हाथों से हटा लिया और मुँह घुमाकर दूसरी तरफ आंसू पोंछने लगा।

"दीप तुम रो रहे थे क्या, मेरा हाथ अपने हाथों में लेकर शायद कुछ कह भी रहे थे? ये तो नहीं कह रहे थे ना कि सोनू मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, तुम जल्दी ठीक हो जाओ?"

"सठिया गयी हो क्या बुढ़ापे में, जो ऐसी बातें कर रही हो। ज़रूर कोई सपना देख रही होंगी तुम। जवानी में नहीं की कभी ऐसी बातें तो बुढ़ापे में क्या करूँगा?"

दीप कभी नहीं कहेंगे, मैं जानती हूँ। एक बार ऐसे ही मैं नींद में थी, दीप मेरा सिर सहला रहे थे, मुझे थपकी देकर बच्चों की तरह सुला रहे थे, मेरी नींद खुल चुकी थी, फिर भी मैं चुपचाप सोने का नाटक करती रही। क्या करती, इतना खूबसूरत लम्हा हाथों से कैसे जाने देती। सुबह उठते ही पूछा, दीप तुम कल रात मुझे थपकी देकर सुला रहे थे क्या? 

दीप का वही जवाब, "सपना देख रही होंगी तुम।" मैं मन ही मन मुस्कुरा उठी और बोली, "अगर यह सपना था तो बहुत खूबसूरत था।"

आज मेरा डिस्चार्ज था अस्पताल से, दीप वही सब देखने चले गए। और मैं आँखे बंद करके दीप के साथ बिताय हुए पल याद करने लगी। कभी-कभी यादों को भी याद करने का अपना ही एक अलग मज़ा है। हम लड़ते भी हैं तो जी भर कर और प्यार भी करते हैं तो जी भर कर। हमारी लड़ाई कभी भी आधे-एक घंटे से ज़्यादा नहीं चली। चाहे हम कितना भी लड़े, लेकिन अंत में दीप को सोनू और सोनू को दीप चाहिए ही चाहिए। यूँ तो सारे ही पल खूबसूरत हैं लेकिन एक पल ऐसा भी है, जिसने मेरे अंतर्मन को बहुत गहरा छुआ था। वो पल प्यार का पहला पल था।

मैं शादी के वक़्त काफी बीमार पड़ गयी थी। स्लीपर कोच से हम केरल जा रहे थे घूमने के लिये। मैं दवाई खाकर सोयी हुई थी दीप की गोद में सर रखकर। धूप के कारण मेरा शरीर तप रहा था। दीप अचानक से उठे और रुमाल ठन्डे पानी में भिगाकर लाये और मेरे चेहरे और हाथों को गीले रुमाल से साफ़ करने लगे। मेरी आँख खुल गयी और मेरे लिए दीप की यह चिंता, प्यार मुझे भीतर तक छू गया। यह वो पहला पल था, जो मुझे दीप के करीब ले आया।

हमारे प्यार में वैलेंटाइन डे, चॉकलेट, फूल देना, कैंडल लाइट डिनर जैसा कभी कुछ रोमानी नहीं हुआ। पर ऐसा बहुत कुछ हुआ जिसने मेरे लिये प्यार की परिभाषा ही बदल दी। दीप हमेशा मेरा हाथ थामकर चलते हैं, मेरे खाने का ख्याल रखते हैं। सुबह उठते ही कई बार कहते हैं, तुम सुबह बहुत सुंदर दिखती हो, कभी-कभी तो दिन में कई बार आई लव यू भी कहते हैं। उन्होंने मेरी क्षमताओं को सदा सराहा है। मेरे हर रूप को उन्होंने सदा स्वीकारा है। उनका यह कहना, " मैं हूँ ना सोनू, तू चिंता क्यों करती है", मुझे एक अलग तरह का सुकून महसूस करवाता है।

हाँ हमारा प्यार थोड़ा सा अलग है, कुछ खट्टा, कुछ मीठा सा है और फ़िल्मी तो बिलकुल भी नहीं है। इस उम्र में भी मुझे दीप के इर्दगिर्द रहना अच्छा लगता है, वो आँखों से थोड़ी देर के लिये भी ओझल हो जाए तो भीतर खाली-खाली सा लगता है। अपना कहने को उसके सिवा है ही कौन मेरा ? दीप है तो घर, घर सा लगता है वरना तो वीरान खंडहर सा लगता है।

मैं आज भी दीप से मज़ाक करती हूँ, उन्हें छेड़ती हूँ और वो हँसकर कहते हैं, सठिया गयी है मेरी बुढ़िया......

उम्र से प्यार का क्या लेना-देना। जितनी जिंदगी बाकी है, उतनी मैं हँसी-ख़ुशी गुजारना चाहती हूँ। अपनी शेष बची जिंदगी में और खूबसूरत पल जोड़ना चाहती हूँ। हाँ बस एक ही प्रार्थना है ईश्वर से , जब भी दुनिया से जाने का मौका आये, तो दीप से पहले मैं जाऊँ। क्या करूँ? स्वार्थी हूँ, उनके बिना जीने के ख्याल से ही मेरी रूह कांप जाती है। 

"सोनू उठ, अस्पताल से जाने का वक़्त आ गया है।" दीप ने सिर पर हाथ रखकर प्यार से उठाया तो मैं मुस्कुरा उठी।

"क्या हुआ? इसमें मुस्कुराने की क्या बात है? घर नहीं जाना क्या? बैग वार्डबॉय ले गया है नीचे। " दीप ने मेरा हाथ लिया अपने हाथों में हमेशा की तरह और हम चल दिए अपने घर, हमारे घर........

"तेरे होने से मेरी साँसों में खनक है, तू नहीं तो मेरा घर सूना है।

तेरे सिर्फ होने के एहसास से ही घर खुशियों से भर जाता है।

तू है तो घर, घर लगता है।

तेरे साथ जिया हर पल खूबसूरत लगता है।"



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