बाबूजी बड़े ही खुद्दार थे.अपना एक भी खर्चा जो किसी को करने दिया हो!
एक पैर में चलाना सीखगयी थी पर दो पैर लगा के साईकेल नहीं चढ पाती थी ।
रूपया तो सारी उम्र ही कमा सकते हैं लेकिन यह बहुमूल्य समय लौटकर नहीं आने वाला!
और सब सोशल डिस्टेंस और पूरी केयर के साथ गांव के लिए निकल गए ।
जीवन में सुख-दुख का आना जाना लगा रहता है फिर भी जीवन हमारा यूं ही निरंतर चलता रहता है!
मेरा चयन आपके द्वारा बेस्ट अलंकरण अवार्ड के लिए किया गया है।"