Vimla Jain

Others

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बचपन का घर

बचपन का घर

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वो प्यारा बचपन में मायके का घर।

जो कभी भुलाए ना भूले।


जो एक पत्थर का बंगला था।

उसे घर बनाया हमारे मां बाप ने प्यार से सजाया।

एक प्यारा सा घरौंदा उसको बनाया।

जिसमें बीता हमारा बचपन सारा।


क्या बड़े-बड़े पेड़ लग रहे थे।

क्या बड़ा-बड़ा गार्डन था।

वह नीम का पेड़ भुलाए नहीं भूलता

जिसके नीचे हम कंचे खेलते थे।


अमरूद का पेड़ भुलाए नहीं भूलता

जिस पर बैठ कर हम पढ़ाई करते थे।

जहां से बोर तोड़कर डांट खाते थे,

वे बोर के पेड़ बहुत याद आते हैं


वो करौंदा, फॉलसा, शहतूत का पेड़

जिसके नीचे हमारी टोली बैठकर

मस्ती किया करते थी बहुत याद आते हैं।


वह पपीते, सीताफल का पेड़ जिसके नीचे

दीवार के एक तरफ हम एक तरफ

हमारी सहेली में खड़े होकर दुनिया जहान की बातें ,

पढ़ाई की बातें सब कुछ कर लिया करते थे,

और साथ में पेड़ों के फल भी खा लिया करते थे।

अपनी चाय भी शेयर कर लिया करते।


बहुत याद आते हैं ।

वह अपना कमरा जहां हम पढ़ाई किया करते थे

दिन भर रहते थे पढ़ते थे और कोई दोस्त देख जाता

तो चि चिढ़ाता कि हां यह बहुत पढ़ाकू है।


वह घर की छत जहां हमने अपना पूरा बचपन बिताया,

सोने में, पढ़ने में मस्ती करने में।

घर का एक-एक कमरा रसोई 1,1 चौक, चौकी, बरामदा

और घर में सब की रौनक भुलाए नहीं भूलती है।

अब कहां से लाए वह घर ।

क्योंकि वहां कुछ फ्लैट्स बन गया और कुछ भाइयों के मकान बन गए।

मां-बाप का बसेरा था तब तक घर-घर लगता था।

ईट पत्थर के मकान तो बहुत होते हैं। मगर उनको प्यार से घर बनाने वाला चाहिए ।

अगर वही घर में ना हो तो घर घर नहीं रहता मकान ही बन जाता है।


जिंदगी के इस पड़ाव पर आते-आते हमने बहुत कुछ अपनों को खो दिया।

हमारी जिंदगी में मायके में बहुत अपनों का साथ छूट गया,

जो है बहुत प्यारे हैं ।

उन्हीं से महका हमारा मायका है।

मगर वह बचपन का घर अब नहीं है। जो हमारी यादों में बसा है।

अब तो बस हमारा मायका है।


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