मां की ममता उत्कृष्ट मातृत्व
मां की ममता उत्कृष्ट मातृत्व
मातृत्व
ईश्वर ने नारी को इस महान वरदान से नवाज़ा है। मातृत्व किसी के लिए भी हो सकता है—चाहे अमीर हो या गरीब, यह सबके लिए एक समान होता है। मगर मैं तो यह कहूँगी कि कभी-कभी गरीब मज़दूर वर्ग में मातृत्व का अद्भुत रूप देखने को मिलता है। यह मैं अपने निजी अनुभवों के आधार पर कह रही हूँ...
1997 में हमारा घर बन रहा था। उस समय सारी मज़दूर फैमिली वहीं कंस्ट्रक्शन साइट पर रह रही थी। तभी मुझे मंजू को क़रीब से देखने का मौका मिला। जब वे काम करने आए, तब वह गर्भवती थी और उसका पूरा समय चल रहा था। फिर भी वह लगातार काम कर रही थी। कुछ ही दिनों में उसे प्रसव पीड़ा हुई, और हमने उसे अस्पताल ले जाने की व्यवस्था की। वहाँ उसने एक सुंदर, गोल-मटोल बेटे को जन्म दिया। वह चार दिन अस्पताल में रही, फिर उसे छुट्टी मिल गई और वह वापस कंस्ट्रक्शन साइट पर आ गई।
करीब पंद्रह-बीस दिन उसने आराम किया। उस दौरान वह अपने बच्चे का बहुत ध्यान रखती थी—इतना कि वह कभी उसे रोने तक नहीं देती थी। उसकी सेहत और देखभाल को लेकर वह बेहद सतर्क थी। हमारा कंस्ट्रक्शन एक साल तक चला, और उस पूरे समय मैंने देखा कि मंजू अपने बच्चे की परवरिश कितनी संजीदगी से कर रही थी। कई बार लगता था कि हम लोग भी कहीं न कहीं बच्चों की देखभाल में चूक कर जाते हैं, मगर मंजू ने अपने मातृत्व से यह साबित कर दिया कि माँ का प्रेम किसी भी परिस्थिति में कम नहीं होता।
वह काम करते समय बच्चे को पास ही घोड़िए (पालने) में सुलाकर रखती थी। खुद अच्छे कपड़े नहीं पहनती थी, लेकिन बच्चे को हमेशा साफ़-सुथरे और गरम कपड़े पहनाती थी, क्योंकि वह सर्दियों का समय था। मंजू का ध्यान इतना सतर्क था कि जब हमारा सेकंड फ़्लोर का कंस्ट्रक्शन चल रहा था, तब भी वह बच्चे को अपनी आँखों से ओझल नहीं होने देती थी।
वाह रे मातृत्व! यह स्त्री का ऐसा गुण है, जो खोजने से भी कहीं नहीं मिलता। मैं आज तक उस दृश्य को नहीं भूल पाई, जब मंजू ने अपने लिए कुछ न रखते हुए भी अपने बेटे के लिए हर चीज़ जुटाई। उसके लिए तो वह बच्चा मानो उसका राजकुमार ही था।
वह अक्सर एक गीत गाया करती थी—
;तमे मारा देवना दीठेल छो,
तमे मारा हिवडा नी ढेल छो,
आवया हो तो अमर थई ने ;
ऐसी थी मंजू और उसका मातृत्व। वह बच्चा अब काफी बड़ा हो गया है। मैंने उसे एक बार देखा था—वह गाँव में रहकर पढ़ाई कर रहा था और बहुत अच्छा दिख रहा था।
