बिखरा बचपन जिसको एक सात साल के बच्चे ने संवारा
बिखरा बचपन जिसको एक सात साल के बच्चे ने संवारा
एक बिखरा बचपन जिसको एक 7 साल के भाई की जिसने एक हादसे में अपने मां-बाप को खो दिया
उसकी कहानी मेरी जबानी
एक था बचपन एक था बचपन बचपन के प्यारे मां बापूजी थे बहुत प्यार वह करते थे ।
बहुत गरीबी में भी हमारा बहुत ध्यान रखते थे। हम सब बहुत खुश थे।
मगर हायरी किस्मत समय बिता थोड़े दिन बाद ही कुदरत ने हमको ऐसा तमाचा दिया कि हमारे मां-बाप को भी छीन लिया और रिश्तेदारों ने भी नाता तोड़ दिया। हमारी धन संपत्ति थोड़ी बहुत थी उसे पर भी कब्जा कर लिया।
हमको सड़क पर छोड़ दिया।
पेट पालने के लिए छोटे भाई बहनों को पालने के लिए बहुत मेहनत मजूरी करनी पड़ी।
इसी सब में छोटे भाई बहनों को पालने के लिए हम तो बड़े हो गए ,7 साल की उम्र में 27 के हो गए
दोनों की परवरिश करते-करते बचपन बीत गया उन दोनों का बचपन भी बेसहारा बेबस बीत गया हम सब का बचपन बिखर गया
मगर उस सब में भी हमने हिम्मत ना हारी।
बहुत काम किया छोटे भाई बहनों को थोड़ा-थोड़ा पढाया कभी उनको भीख मांगने नहीं जाने दिया और उनकी किताबों से थोड़ा हमने भी पढ़ा हिम्मत जुटा थोड़ा हिम्मत हूनर सीखा
मां की सीख भले भूखे मर जाना मगर भीख मत मानना, चोरी मत करना और मेहनत करना।
जिंदगी में अपनाया अपने अपने भाई बहनों को अनाथ की जगह" में हूं ना" समझाया ताकि वे अपने आप को अकेला ना समझे और हमारा भी बेबस बेचारा बचपन ऐसे ही बीत गया।
समय बीत गया।
हम बड़े हो गए मेहनत मशक्कत मजूरी करते,
कभी किसी होटल में काम किया, कभी चाय वाले के यहां काम किया।
मगर इस समय हमने थोड़ी-थोड़ी पढ़ाई भी करी
और आज हम जिस जगह जिस दुकान में सामान देने वाले लड़के थे वही अकाउंट का काम संभालने लगे ।
मां हमेशा बोलती थी हिम्मते मदद मददे खुदा
देखो और हमने करा व छोटे भाई बहनों को भी काम पर लगाया
यह है मेरी आप बीती कहानी
बिखरा बचपन जिसको हमने हिम्मत से संवारा।
स्वरचित कहानी
