Bhavna Thaker

Romance

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Bhavna Thaker

Romance

खुशहाल दांपत्य की परिभाषा

खुशहाल दांपत्य की परिभाषा

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"मेरी कत्थई आँखों पर मर मिटे थे तुम, तुम्हारी देखने की अदा पर फ़िदा हुई थी मैं,

जहाँ जाकर के ठहरी थी निगाहें वो सुहाना मंज़र मुझे आज भी याद है, उसी लम्हों की पैदाइश है ये सुहाना सफ़र" 


ये देखो जीवन काल की स्मृतियों का फ़लसफा रंगीन दांपत्य की दास्ताँ कहता है,

तुम दीप मैं ज्योति 

चले थे दोनों दांपत्य की डगर पर एक दूसरे का हाथ थामें आँखों में चंद ख़्वाबों के कतरें लेकर..


कितना जले हम दोनों इस आलय की नींव पर मकान बनाने और मकान को घर में परिवर्तित किया हम दोनों की पसीजती चाहत ने..


हस्त मिलाप की रस्म के वक्त तुमने मेरी हथेली पर एक वादा रखा था जिसे निभाते मेरे हर ख़्वाब को जवाँ रखा, 

दिन मेरे तसव्वुर की परछाई से संवारे तुमने, तुम्हारी रातों को महफ़िल बनाया मैंने.. 

तुम्हारी पनाह में पलते इस निलय की मल्लिका बन गई मैं, तुम खुदा बन बैठे मेरी इबादत के..

इतना इश्क...ओह माय गॉड प्रीत का आशियां बनाकर छोड़ा तुम्हारी मोहब्बत और मेरी चाहत की बौछार ने दोनों के दिल को...


खट्टी मीठी नोंक-झोंक पर ख़फ़ा भी तो होते थे दोनों,

पर हाए कहाँ रह पाते थे एक दूसरे की परछाई जो ठहरे,

खफ़ा हो चाहे कितना एक दूसरे को सुबह हंसकर उठाते थे...


रोज़ाना अनगिनत सपनों को बुनकर उम्मीद का वितान तराशते थे, 

कभी कमज़ोर नहीं पड़ने दिया तुमने मेरे हौसलों को, न मैंने तुम्हारे अभिमान पर लांछन लगाया...


एक दूसरे को खुश रखने की जद्दोजहद में तुमने सुनाए मुझे मनगढंत किस्से कई,,, 

तो मैंने तुम्हारी लज़्जत को तड़का लगाते लतिफ़े सुनाए कई..


गमों का बोझ भी दिल पर उठाते थे, तो खुशियों का सागर भी आँखों में बसाते थे,,

कितनी मासूमियत से तुम मुझको मुझसे मांगते थे,

मैं ठहरी दिलदार तुम्हारे मांगने से पहले ही टूटकर शाख से पत्तो की तरह टूट जाती थी तुम्हारी आगोश में...

 

गिरते थे कभी मेरी आँखों के नीरघट से चंद अश्कों के कतरे, 

तुम अपनी हथेलियों पर पनाह देते उन बूँदों को अपने जीने का ज़रिया बना लेते थे,

तुम्हारी थकान को मैं अपने आँचल का साया देती थी...


ज़िम्मेदारीयों की कितनी फ़सलें बोई हमने कितनी काटी, 

संघर्षों से कभी ना थके, हारे दोनों उस वक्त जब-जब जुदाई के मौसम देखे..


मेरी दुनिया टिकी है तुम्हारे सुगठित कंधों के स्तंभों पर, तुम्हारी खुशियाँ मेरे गेसूओं की सुगंध है,

ज़िंदगी का लंबा सफ़र तय करते पहुँच गए हम आख़री पड़ाव पर जहाँ सबसे ज़्यादा जरूरत है एक दूजे की... 


मेरे झुर्रियों वाले गाल भी कितने अज़िज है तुम्हें, पर सुनों तुम्हारी झुकी रीढ़ पर मुझे भी उतना ही प्यार है...

हायो रब्बा थके तन से भी इश्क की चिंगारियां उठती है, 

क्यूँकि वो कत्थई आँखों की कशिश और तुम्हारी देखने की अदा उफ्फ़ आज भी तरोताज़ा सी है...


पर बच्चों के आशियाने से गूँजती किलकारियों में अब ढूँढने है हमें हमारे बीते लम्हें, 

थामें रखना मेरे हौसलों को 

ताज़िंदगी यूँहीं आमद बनाए रखना मेरे हमनवाह जब तलक तन से साँसों का नाता न टूटे,,,

न..न अलविदा ना कहना कभी इस जन्म के बिछड़े अगले जन्म में मिलना जो है..

मेरी कत्थई आँखों की कशिश और तुम्हारे देखने की अदा बदलेगी थोड़ी न कभी।


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