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Bhavna Thaker

Inspirational

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Bhavna Thaker

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नया कदम

नया कदम

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आज मोबाइल कंपनी की ओर से इन्क्वायरी आई तो सुशांत के होश उड़ गए कुछ लोगों ने शिकायत दर्ज करवाई थी की एक नंबर से बार-बार काॅल आ रहे है और उठाने पर एक औरत सेक्सी आवाज़ में कुछ अजीब बातें करती है और फिर अपने आप फोन काट देती है..! इन्क्वायरी में जिस नंबर का ज़िक्र था वो सुशांत की माँ का नंबर था, सुशांत शर्म के मारे और कुछ गुस्से के मारे खिसियाना हो गया। 

माँ से पूछे भी तो कैसे, क्या ये सच होगा माँ ऐसा कर सकती है, या मोबाइल कंपनी वालों की कोई गलतफहमी है।

पर पूछना तो पड़ेगा सुशांत ने अपनी पत्नी रिया को डरते-डरते सारी बात बताई, रिया साइकियाट्रिस थी और समझदार भी, सुशांत को निश्चिंत रहने को बोला और बोला की मुझपर छोड़ दो माँ को मैं हेन्डल करूँगी। 

दूसरे दिन शाम को रिया कुसुम को वाॅकिंग के बहाने पार्क में ले गई और बातों बातों में अपनी सहेली की कहानी बताकर मोबाइल इन्क्वायरी वाली बात बताई और पूछा माँ आपको क्या लगता है क्या मेरी दोस्त की माँ ऐसा कर सकती है? कुसुम गुस्से से आगबबूला हो गई क्यूँ नहीं कर सकती, इंसान कहीं तो अपने दिल में दबे अहसासों को ज़ाहिर करेगा ही ना। पूरी ज़िंदगी जिस चीज़ के लिए तरसा हो वो ओर क्या करेगा। हर दिल में अरमाँ होते है, कोई प्यार से बातें करने वाला हो ना की स्त्री को सिर्फ़ कामपूर्ति का साधन समझ कर हवस पूर्ति करके एक साधन समझकर छोड़ दें।

रिया समझ गई कई बार सुशांत ने अपने पापा के बारे में कुछ ऐसी बातें बताई थी, जो इंसान बच्चों की भावनाओं को भी ना समझता हो वो पत्नी के अहसासों भी नहीं समझा होगा। 

सुशांत के पापा को गुज़रे पाँच साल हो गए थे कुसुम हमेशा तरसती रही की आनंद उससे दो प्यार भरी बातें करे, कभी कोई शाम गुजारे दरिया के साहिल पर बैठे। अंतरंग पलों में भी पहले बातों से बहलाए ना की वासना का शमन करने भर का रिश्ता रखें। कुसुम चंचल जिंदादिल ओर बातूनी है पर आनंद ने कभी उसकी भावनाओं को नहीं समझा था। रिया समझ गई की बस उस ख़लिश ने दिल में विकृत स्वरूप ले लिया था।

रिया ने बातों ही बातों में कुछ दिनों में कुसुम से सब उगलवा लिया ओर सुशांत को सब बताया। सुशांत गुस्सा हो गया बोला हद है अब पापा का नेचर ऐसा था तो क्या ये सब उसे इस उम्र में शोभा देता है रिया माँ पागल हो गई है।

रिया ने बोला नहीं माँ मानसिक तौर पर बीमार नहीं है, रूह के भीतर कहीं किसी कोने में दबी हुई मरी हुई इच्छाओं के दमन ने सर उठाया है। रिया ने सुशांत से बुरा ना मानों तो एक बात कहूं। सुशांत ने हाँ में सर हिलाया तो रिया बोली माँ की दूसरी शादी करवा देते है।

सुशांत का हाथ उठ गया, पर रुक गया और इतना ही बोला मन करता है तुम दोनों सास बहु को पागलखाने भेज दूं 

सबका दिमाग खराब हो गया है।

रिया ने सुशांत को शांत करके समझाते हुए कहा, देखो सुशांत मेरे क्लिनिक में ऐसे बहुत केस आते है, अगर इसका इलाज ना किया जाए तो पागलपन की हद तक उनकी हरकतें पहुँच जाती है।

माँ ने ज़िंदगी भर पापा की बेरुखी सही है, प्यार को तरसती है। उनका मन नाजुक है दिल में दबी आस को वाचा मिलेगी तो सब ठीक हो जाएगा।

हम दोनों अपनी लाइफ और काम में व्यस्त है माँ को कंपनी की जरूरत है, एक एसे इंसान की जो उसे समझे, प्यार दे, बातें करे, समय दे। और उसमें बुराई क्या है उम्र के इस पड़ाव पर ही इंसान को इन सब चीज़ों की ज़्यादा जरुरत होती है।

अब सुशांत के गले बात उतर रही थी, उसने भी सोचा की रिया की बात सोचने लायक है माँ को कई बार गुमसुम बैठे देखा है, हम तो अपनी लाइफ़ में इतने उलझे है की समय ही नहीं दे पाते। माँ को भी उनकी अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जिनेक पूरा हक है।

बस फिर क्या था सुशांत ओर रिया ने ऑनलाइन खोजबीन शुरू कर दी कोई अच्छा सा समझदार और जो माँ की तरह ही अकेला हो ऐसे इंसान की। 

और कुछ दिन में बहुत सारे रिस्पांस मिले 

उनमें से एक रिटायर शिक्षक मिस्टर अमर तिवारी रिया और सुशांत को अच्छे लगे। दोनों उनसे मिले बात चित की अमर तिवारी जी ने शादी नहीं की थी अकेले ही थे, और अब इस उम्र में वो भी किसी अपने का साथ ढूँढ रहे थे।

तो बस सब तय करके रिया और सुशांत ने अब कुसुम से बात की, पहले तो कुसुम ने साफ मना कर दिया ये कहकर की मुझे अब किसी से कोई उम्मीद नहीं बहुत सह चुकी, जिसे ज़िंदगी समझा उसी ने मुझे नहीं समझा तो अब ओर कोई मुझे क्या समझेगा? 

पर रिया ओर सुशांत ने जब अमर तिवारी और कुसुम की मुलाकात करवाई तो दोनों को लगा की शायद अब दोनों की तलाश खतम हुई, अपने ने अपने को पहचान लिया और स्टैम्प पेपर पे हस्ताक्षर करके कोर्ट मेरिज कर ली।

आज सब खुश है कुसुम ओर अमर तिवारी मानो सालों से एक दूसरे को जानते हो ऐसे घुल-मिल गए है। माँ के चेहरे पर सालों बाद हंसी और रौनक देखकर सुशांत को एक संतोष मिल रहा है अपनी माँ को ज़िंदगी देने का।।



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