"इकलौती बेटी"
"इकलौती बेटी"
तारा ने अपनी पड़ोसन सीमा से कहा, "सीमा मुझे लगता है आप लोगों को अब शिखा की शादी के बारे में सोचना चाहिए! तुम कहो तो मैं अपने भैया से बोलकर अपने भतीजे ईशान के साथ शिखा की बात चलाऊँ?" सीमा ने कहा, अरे! तारा, हमें भी शिखा की शादी की चिंता तो है! पर,आजकल की लड़कियाँ करियर ऑरिएंटेड और अपनी मर्ज़ी की मालिक होती है, जब भी शादी की बात छेड़ते है तो बस अभी नहीं करनी शादी, या मुझे नहीं करनी शादी का ब्यूगुल बजाकर हमें चुप करवा देती है। पर शिखा के पापा से पूछकर मैं तुम्हें जरूर बताती हूँ" कहकर सीमा जैसे घर में आई! शिखा गुस्से से तिलमिलाते बोली, मम्मा पड़ोसीयों को दूसरों की ज़िंदगी में इतनी दिलचस्पी क्यूँ होती है? बोल दीजिए अपनी सहेलियों को मेरी लाइफ़ में दखल अंदाज़ी ना करें! नहीं करनी मुझे शादी। क्या शादी जीवन की सबसे अहम जरूरत है? जिसके बिना एक लड़की का जीवन पूरा नहीं हो सकता।
शिखा राम कश्यप और सीमा कश्यप की इकलौती संतान है। अपने माँ-पापा से बेइन्तहाँ प्यार करती है और माँ-बाप की लाड़ली 28 साल की हो गई! एम.बी.ए. तक पढ़ लिया, अच्छी कंपनी में नौकरी भी करती है! पर वो नहीं चाहती अपने माँ-बाप को अकेला छोड़ कर ससुराल का शामियाना सजाए। राम कश्यप और सीमा कश्यप को चिंता है अपनी इकलौती बेटी की! हर रोज़ एक ही बात पर तीनों में बहस होती है। माँ-पापा चाहते है शिखा शादी करके घर बसा लें तो उनकी ज़िम्मेदारी ख़त्म, हो फिर चाहे उपर वालें का बुलावा आ जाए।
और शिखा को अपने माँ-पापा की फ़िक्र है कि मैं ससुराल चली गई तो माँ-पापा अकेले पड़ जाएंगे! बुढ़ापे में उनकी देखभाल कौन करेगा? अगर बेटा होता तो माँ-पापा निश्चिंत होते तो क्या मैं बेटी हूँ तो मेरा फ़र्ज़ नहीं बनता? शिखा समाज में एक उदाहरण बिठाना चाहती है कि जिनको बेटा नहीं होता वो माँ-बाप भी सुखी होते है! बेटियाँ भी अपना फ़र्ज़ निभाती है। पर, समाज को ये मंजूर नहीं था। रिश्तेदार और अड़ोस-पड़ोस वालों के तानें और हर कोई मिलने आने वाला शिखा की शादी का ज़िक्र अचूक छेड़ जाता।
शिखा की मम्मी हर रोज़ समझाती! देख शिखा मैं और तेरे पापा आज है, कल को जब नहीं रहेंगे तब इतनी बड़ी दुनिया में तू अकेली रह जाएगी और दुनिया बहुत खराब है! दरिंदों की कमी नहीं, अकेली लड़की का जीना हराम कर देते है।"
शिखा अपनी मम्मी की बातें सुनते ही गुस्से की मारी कोफ़ी पर कोफ़ी पीते न्यूज़ पेपर के पन्ने पलट रही थी कि, एक इस्तिहार पर नज़र गई, "स्पर्म डोनर बैंक" शिखा के दिमाग में बत्ती जली! माँ-पापा को उनके बाद मैं अकेली रह जाऊँगी यही फ़िक्र सता रही है तो क्यूँ ना मैं बैंक से स्पर्म खरीद कर माँ बन जाऊँ! बच्चा आएगा उसे बड़ा करूँगी पढ़ाऊँगी, लिखाऊँगी, उसकी शादी करवाऊँगी फिर कहाँ मैं अकेली कहलाऊँगी?
यस! यही ठीक रहेगा और सबसे पहले शिखा ने स्पर्म डोनर बैंक को फोन किया और सारी कारवाही के बारे में परामर्श किया फिर स्त्री रोग विशेषज्ञ को मिलकर अपना मेडिकल चेक अप करवाया! डाॅक्टर से मशवरा लिया। डाॅक्टर ने कहा, "यू आर परफ़ेक्ट! तुम माँ बन सकती हो। बस फिर क्या था, शिखा ने अपने मम्मी-पापा को पास में बिठाया शांति से समझाया और बोम्ब विस्फोट किया! "मैं स्पर्म डोनर बैंक से स्पर्म लेकर माँ बनूँगी।
घर में भूचाल आ गया! ये क्या बोल रही हो? लोग क्या कहेंगे? कुँवारी लड़की माँ कैसे बनी सबको क्या कहेंगे? किस किसको क्या-क्या समझाएंगे। शिखा तू पागल हो गई है? क्यूँ नहीं समझती, ये पागलपन है! तुझे माँ ही बनना है तो शादी कर ले।
शिखा चिल्ला उठी! "माँ-पापा आपकी प्रोब्लम क्या है? एक तरफ़ आप कहते हो की आप दोनों के बाद मैं अकेली रह जाऊँगी; तो इसी प्रोब्लम का सोल्यूशन निकाल रही हूँ। बच्चा आएगा उसे बड़ा करूँगी, पढ़ाऊँगी, लिखाऊँगी उसकी शादी करूँगी फिर कहाँ रहूँगी मैं अकेली बताईये? क्या मुझे अपने हक में फैसला लेने का इतना भी अधिकार नहीं? मैं अपने माँ-बाप के लिए कुछ करना चाहूँ उसमें समाज को क्या। मैं शादी करना नहीं चाहती तो क्या दुनिया के लिए अपने उसूल बदल दूँ? मेरी ज़िंदगी मुझे कैसे जीनी है ये समाज नहीं, मैं तय करूँगी। माँ-पापा मुझे बस आपके आशीर्वाद की जरूरत है! आप मेरे साथ होंगे तो मुझे किसीकी परवाह नहीं।"
शिखा की ज़िद्द के आगे राम कश्यप और सीमा कश्यप हार गए। शिखा ने बैंक से हेल्दी स्पर्म खरीदा और डाॅक्टर अपर्णा गुप्ता जी की सहायता से सफ़लता पूर्वक आरोपण करवाया। कुछ ही दिनों में शिखा की कोख में बीज पनपने लगा शिखा एक अद्भुत रोमांच से खिलखिला उठी।
पर समाज को कहाँ रास आती शिखा की सोच! जैसे-जैसे शिखा के उदर में पल रहा बीज बड़ा होने लगा दुनियावालों की आँखें भी उतनी ही बड़ी होने लगी। अडोस-पड़ोस, रिश्तेदारों में कानाफ़ूसी होने लगी! कोई बातों-बातों में व्यंग्य भी करने लगे। शिखा के मम्मी-पापा डर और शर्म के मारे घर से बाहर निकलने से कतराने लगे! पर शिखा बिंदास अपने फूले हुए पेट के साथ घूमती, फिरती थी।
एक दिन पड़ोसन पम्मी मेहरा चाय पत्ती मांगने के बहाने शिखा के घर आई और शिखा को देखते ही बोली, ये क्या शिखा आजकल मोटी होती जा रही हो! कुछ डायटिंग, वायटिंग किया करो, शादी होनी बाकी है! आज-कल के लड़को को दुबली पतली लड़कीयाँ पसंद होती है अपना खयाल रखा करों।
इतना सुनते ही शिखा भड़क गई! आज सारी भड़ास निकालने के मूड़ में थी तो घर के दरवाज़े के बीचों-बीच खड़ी रहकर ज़ोर से सारे अडोस-पड़ोस वालें सुन सके ऐसी ऊँची आवाज़ में बोली, "पम्मी आंटी के साथ सारे लोग सुन लीजिए! मैं कभी किसीके घर की पंचात नहीं करती आपकी बेटी क्या करती है, आपका बेटा कहाँ जाता है, आपके बच्चों की शादी कब कर रहे है या आप कैसे जीते है तो मैं भी उम्मीद करती हूँ की हमारे घर की पंचात भी आप सब ना किया करें तो बेहतर होगा। मेरे माँ-बाप की मैं अकेली संतान हूँ! मैं नहीं चाहती मेरी शादी हो जाए और मेरे माँ-बाप बुढ़ापे में अकेले रह जाए, इसलिए मैं स्पर्म बैंक से स्पर्म खरीद कर माँ बनने जा रही हूँ! हमें जब किसीसे कोई उम्मीद नहीं तो आपको भी इस बात से कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए। और मेरी ज़िंदगी कैसे जीनी है ये मैं तय करूंगी, शादी करूँ या ना करूँ, कुँवारी माँ बनूँ या माँ बनने के बाद भी मन करेगा तो शादी करूँगी! आप सबको कोई अधिकार नहीं हमारे घर में क्या चल रहा है ये जानने का, तो आप सबसे हाथ जोड़कर बिनती है शांति से खुद भी जिएँ और हमें भी जीने दें।" और इतना बोल कर शिखा आराम से झूले पर बैठकर इमली खाने लगी और पम्मी मेहरा से कहा, "आंटी मेरे बच्चे के लिए कुछ अच्छे से नाम सोचकर रखिएगा, बुआ आप को ही बनना है।" शिखा की बात का समर्थन करते पूरा मोहल्ला तालियाँ बजाते शिखा को शाबाशी दे रहा था।
पड़ोस वाले दुबे अंकल ने कहा, "बेटी अगर समाज में बेटे-बेटी में सब फ़र्क नहीं करते तो आज बेटियों को ये नौबत नहीं आती। तुम्हारी सोच में ज़रा भी अतिशयोक्ति नहीं! बल्कि गर्व है। ये ज़िंदगी की कड़वी सच्चाई है! इकलौती बेटी को अपने माँ-बाप की चिंता खाए जाती है कि क्या करेंगे बुढ़ापे में माँ-बाप जब मैं ससुराल चली जाऊँगी? और कहाँ कोई दामाद इतना भावनाशील जो सास-ससुर को साथ रखकर सेवा करें। अगर हर माँ-बाप इकलौती बेटी से शादी करने वाले अपने बेटों को ये संस्कार दें कि बहू के माँ-बाप के प्रति भी तुम्हारा उतना ही फ़र्ज़ है, जितना हमारे प्रति तो आज तुमने जो कदम उठाया है उसकी नौबत ही न आती। तुम्हारे जैसी बेटियाँ गौरवान्वित करती है समाज को पर समाज ही ऐसी बेटियों को बदनाम करता है। well done बेटा तुम्हारा निर्णय एकदम सही है।" अब जाकर शिखा के माँ-बाप के जी में जान आई। नौ महीने बाद शिखा की गोद में प्यारा सा बेटा खेल रहा था।
कुछ दिन बीते होंगे कि एक दिन लंडन से दुबे अंकल का भतीजा गौरांग आया! उसने जब दुबे अंकल के मुँह से शिखा कि कहानी सुनी तो प्रभावित होते बोला, "चाचा जी! अगर शिखा और उसके माँ-पापा को कोई एतराज़ न हो तो मैं शिखा से शादी करना चाहता हूँ! उसे उसके बच्चे और माता-पिता सहित अपना कर समाज में एक उदाहरण मैं भी कायम करना चाहूँगा।" दुबे जी गौरांग के फैसले से खुश होते बोले, "ये तो बड़ी खुशी की बात है मैं अभी जाकर शिखा को समझाता हूँ और उसके माता-पिता से बात करता हूँ। मुझे फ़ख़्र है तुम्हारे खुले ख़यालात पर। शिखा और गौरांग मिले! बातचीत की और दोनों को लगा कि दोनों एक दूसरे के लिए परफ़ेक्ट है! चट मंगनी पट ब्याह हो गया। आज शिखा का सुंदर सा हँसता-खेलता परिवार है और शिखा अपने माता-पिता के बुढ़ापे को लेकर निश्चिंत है।