Bhavna Thaker

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गृहलक्ष्मी

गृहलक्ष्मी

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आज ऑफ़िस में बाॅस छुट्टी पर थे तो सारे कर्मचारी गप्पें लड़ा रहे थे। तभी बात निकली बीवियों की, सब अपनी बीवी की तारीफ़ कर रहे थे पत्नियों के गुणगान गाते। पर सागर को हमेशा यही लगता था की पत्नियों का काम क्या होता है, खाना पीना और सोना और टीवी देखना उसने कभी स्वाति के योगदान को इतना महत्व नहीं दिया था, तो सागर ने तय किया एक दिन सुबह से शाम तक स्वाति के कामों को नोटिस करता हूँ। क्या सच में पत्नियों को इतना काम रहता है घर में। सागर को घर में क्या होता है क्या नहीं इस बात की कोई चिंता ही नहीं थी, स्वाति घर, बाहर, बच्चों की स्कूल, माँ पापा की देखभाल और बैंक तक के सारे काम बखूबी संभाल लेती थी। 

दूसरे दिन छुट्टी लेकर सागर स्वाति के साथ सुबह पाँच बजे उठ गया, और स्वाति पर नज़र रखते बेड़ पर पड़ा रहा। स्वाति नहा धोकर बच्चों की स्कूल की तैयारी, सास-ससुर की दवाई, नाश्ता, देवर का टिफ़ीन, बच्चों का लंच बाक्स और घर के ओर सारे काम इतनी तेजी से निपटा रही थी मानो मशीन हो फिर मार्केट जाकर सब्ज़ी और घर का सामान भी ले आई। दोपहर को सबकी अलमारियाँ ठीक की फिर वापस शाम की चाय, नाश्ता और डिनर की तैयारी करने में व्यस्त हो गई। साथ-साथ माँ के सर में तेल मालिश कर दी, और पापा का मोतियाबिंद का ऑपरेशन हुआ था तो पढ़ नहीं सकते स्वाति ने भगवद् गीता के दो अध्याय भी पढ़ कर सुना दिए। पिंकी को होमवर्क करवाते सब्ज़ी भी काट ली। और ऐसे एक के बाद एक काम करके निढ़ाल हो गई फिर भी चेहरे पर सुकून और संतोष था। सागर अचंभित था इतना काम करके भी हर रात को स्वाति उसके के पास ताज़े गुलाब सी पेश होती थी। 

सागर ने तय किया आज के बाद स्वाति की सेवा मैं करूँगा। मेरे घर की नींव है स्वाति। उसका खानपान और सुख सुविधा की ज़िम्मेदारी आज से मेरी, वह स्वस्थ और खुश रहेगी तभी मेरा परिवार आसानी से चलेगा। खामखाँ आज तक नज़र अंदाज़ करता रहा। 

आज रात को रूम में बिस्तर पर लेटते ही पति सागर के हाथ का सिरहाना और सर पर चुम्बन की मोहर पाकर स्वाति की आँखें आश्चर्य और खुशी से नम हो चली। थैंक्स कहते सागर की आगोश में खो गई। सागर बोला थैंक्स कैसा तुम जो मेरे परिवार के लिए सुबह पाँच बजे से लेकर रात ग्यारह बजे तक घड़ी की सुई के साथ कदम मिलाते दो पैरों पर दौड़ते दो हाथों से पचासों काम करती हो थैंक्स तो मुझे कहना चाहिए। तुमसे ही मेरा परिवार बिना किसी रुकावट के आसानी से चलता है। माँ, पत्नी, बहू, भाभी कितने सारे किरदार एक साथ निभाती हो, कहाँ से लाती हो इतनी शक्ति मेरी गृहलक्ष्मी, थैंक्स टु यू। स्वाति शर्माते बोली आपका प्यार मेरी शक्ति है और मेरा परिवार मेरी ज़िम्मेदारी तो थकान कैसी। पर आज जिस परवाह की स्वाति को तलाश थी वह मिल गई सागर के बाँहों की सुकून सभर पनाह पाते ही अलार्म लगाकर स्वाति शांति से सो गई। 



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