Bhavna Thaker

Romance

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Bhavna Thaker

Romance

पहला प्यार फ़िल्मी अंदाज़

पहला प्यार फ़िल्मी अंदाज़

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"कजरी को पहला प्यार मिला भी तो फ़िल्मी अंदाज़ में"

गरीब घर की सुंदर बेटी कजरी आख़िर जाए तो जाए कहाँ? माँ-बाप ने कच्ची उम्र में छुटकारा पाने हेतु ब्याह दिया एक आवारा लड़के संग, जो न कोई काम धाम करता था, न पत्नी की ज़िम्मेदारी उठाने के काबिल था। कजरी फ़िल्मों के पीछे पागल थी, जैसे फ़िल्मों में प्यार होता है अद्दल वही वाला तलाश रही थी। हर लड़की की तरह कजरी के भी अरमान थे प्यारा सा बेइन्तहाँ प्यार करने वाला पति हो, ससुराल में अपने घर की वो रानी हो, सुबह-सुबह गीले बालों को पति के मुँह पर झटकते जगाएं और पति खिंचकर बाँहों में भर लें। पर कजरी कहाँ जानती थी कि ये सारे फ़िल्मी चोंचलों से परे ज़िंदगी की सच्चाई होती है। शादी के बाद सारे सपने धरातल होते बिखर गए। शराबी पति संजय और जल्लाद ससुराल वालों के हाथों प्रताड़ित कजरी एक ही साल में शादी से उब गई। संजय को प्यार करना आता ही नहीं था, बस शादी की है तो हर रात सेक्स करना जरूरी था। कजरी का मन हो या न हो संजय अपनी हवस पूरी कर लेता। घर काम कितनी भी सफ़ाई से करें सास ताने उल्हानें देने से नहीं चुकती। इन सारी परेशानियों से निजात पाने कजरी एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम पर लग गई। मजदूरी करके दो पैसे कमा कर देती थी इसलिए ससुराल वालों ने भी रखा था, वरना कब की घर से बाहर निकाल देते। 

संजय कजरी की सारी कमाई दारु और जुए में उड़ा देता था, पर कजरी को उसका गम नहीं। वो संजय के ऐशो आराम के लिए नहीं अपनी खुशी के लिए काम करती थी। क्यूँकि कंपनी का ठेकेदार किसन कजरी की जवानी का दीवाना था। पहले ही दिन कजरी किसन के प्रति आकर्षित होते किसन के प्यार में पड़ गई थी। किसन कजरी का पहला प्यार था, आज तक ऐसे एहसास किसीको देखकर नहीं जगे। जिससे शादी हुई उसके लिए भी कजरी के दिल में चाहत के फूल कभी नहीं खिले। कजरी किसन की मर्दानगी पर मरती थी। पति से तो कभी प्यार हुआ ही नहीं, होता भी कैसे प्यार मिलता तो देने का मन करता न। चुटकी सिंदूर के बदले सज़ा भुगत रही थी। बस फ़र्ज़ के तौर पर रोज़ रात को तन परोस देती, मन में कभी चाहत की चरम महसूस ही नहीं हुई। किसन भी कजरी पर जान छिड़कता था, पर कजरी शादीशुदा थी इसलिए दोनों बेबस थे, आगे बढ़ने से झिझक रहे थे, बस दूर से ही एक दूसरे को चाहत भरी नज़रों से देखकर खुश हो लेते थे। किसन आड़े टेढ़े जोक्स करता उस पर कजरी खिलखिलाते हंस देती, और किसन का दिल करता हंसती हुई कजरी पर दुनिया की सारी दौलत लूटा दूँ। 

कजरी भीतर से दर्द का दरिया थी पर काम पर जाते वक्त चंचल नदी बन जाती अपने समुन्दर को एक नज़र देखने के लिए बेताब सी इठलाती समय से पहले पहुँच जाती। कजरी जानती थी किसन उसकी हंसी का दीवाना था। बस अपने आशिक की खुशी के लिए सूखी टहनी खिलखिलाते हरीभरी हरसिंगार की ड़ली बन जाती थी। तमस भरी ज़िंदगी में किसन एक मात्र खुशियों की किरण जो था। कजरी का मन करता किसन की खुशी के आगे दुनिया भर की दौलत ठुकरा दूँ। 

एक दिन संजय कुछ काम से कजरी जहाँ काम करती थी वहाँ आया, उसी वक्त किसने के कहे हुए जोक पर कजरी ठहाके लगाते खुशखुशाल सी हंस रही थी। पहले तो संजय आगबबूला हो गया, घर में उदासी और दर्द का मुखौटा पहने घूमती कजरी घर के बाहर इतनी खुश कैसे? जब मैं प्यार करने जाता हूँ तो लाश की तरह पड़ी रहती है मेरे प्यार का प्रतिभाव कभी इतनी खुशी से नहीं दिया, और यहाँ ठेकेदार के फ़ालतू जोक पर पूरी दुनिया की हंसी लूटा रही है। 

तन-मन में आग लिए संजय घर आ गया पर कहीं चैन नहीं कजरी की खिलखिलाती हंसी कानों के पर्दे चीर रही थी। संजय ने दारु की बोतल निकाली और तीन पैग लगा लिए, फिर अपनी ज़िंदगी के बारे में सोचने लगा। कजरी के आहिस्ता-आहिस्ता बदलने के हालातों पर गौर किया तब लगा कजरी नखशिख पाक और साफ़ दिल इंसान है, सारा कसूर तो मेरा है। एक भी फ़र्ज़ पति वाला नहीं निभाया न प्यार, न पैसा, न इज्जत दे पाया। वासना सभर चाहत से लड़की का दिल नहीं भरता, परवाह की भी भूखी होती है। कजरी बहुत प्यारी, खुशहाल और ज़िंदादिल लड़की थी ज़िंदगी के हर पल को जश्न सा मनाने में मानती थी, पर मेरी बेरुख़ी और मेरे व्यवहार ने उसे पत्थर बना दिया। आज तक कतरा भर खुशी नहीं दे पाया, उल्टा मजदूरी करके जो कमा कर लाती है वो भी दारु में उड़ा देता हूँ। वो भी आख़िर इंसान है उसे भी खुश रहने का हक है। कजरी की आँखों में किसन के लिए बेइन्तहाँ प्यार झलक रहा था। मैं तो उसे कुछ नहीं दे पाऊँगा क्यूँ न कजरी को उसकी खुशी उसका प्यार देकर अपने पापों से मुक्ति पाऊँ। किसन से बात करके देखता हूँ अगर मान जाता है तो दो चाहने वालों को एक करके अपने हिस्से का प्रायश्चित कर लूँ। आज संजय को अपने स्वभाव के विरुद्ध नेक ख़याल आने पर आत्म संतुष्टि हुई। संजय सोचने लगा नेक काम करने के ख़याल भर से मन को शांति मिल रही है अगर कजरी को उसके प्यार से मिलवा दूँ तो उसकी ज़िंदगी सँवर जाएगी। नेक काम में देरी क्यूँ बलते खड़ा हो गया और किसन से मिलने चला गया। 

किसन सब काम निपटाकर घर जाने के लिए निकल ही रहा था की संजय ने कहा, "थोडी देर रुको किसन कुछ बात करनी है। मैं कजरी का पति हूँ संजय, पर बस कहने भर का पति हूँ। मैं जो कुछ भी कहूँ ध्यान से सुनना बस यूँ समझ लो कजरी का एक शुभचिंतक तुमसे उसकी खुशियाँ मांगने आया है।" किसन बोला मतलब "मैं समझा नहीं आप क्या कहना चाहते है?" संजय ने कहा "देखो कजरी बहुत अच्छी लड़की है, मैं उसकी कद्र नहीं कर पाया मैं चाहता हूँ तुम उसे वो सारी खुशियाँ दो जो मैं नहीं दे पाया। कजरी को मैं आज तक कोई सुख नहीं दे पाया, मैं जानता हूँ ऐसे नाकारे पति से कोई लड़की प्यार नहीं करेगी इसलिए उम्मीद भी नहीं करता। मैंने कजरी की आँखों में तुम्हारे लिए बेतहाशा चाहत देखी है। कजरी का पहला प्यार तुम हो, और मैं जानता हूँ तुम भी कजरी से दिल से प्यार करते हो। तुम्हें लगेगा एक पति अपनी पत्नी का रिश्ता किसी ओर के साथ जोड़ने के बारे में सोच भी कैसे सकता है। पर मैं जानता हूँ तुम कजरी को बहुत खुश रखोगे और सच्चा प्यार दोगे। देखो मना मत करना कजरी को अपना कर मुझे प्रायश्चित करने का मौका दो, मैं तुम्हारा अहसानमंद रहूँगा।" किसन असमंजस में पड़ गया और बोला "देखिए मैं भी झूठ नहीं बोलूँगा बेशक मैं कजरी को बहुत चाहता हूँ पर ऐसे कैसे किसीकी अमानत को अपने नाम कर सकता हूँ। आप दोनों एक दूसरे को समझिए और रिश्ते को थोड़ा समय दीजिए, हो सकता है सब ठीक हो जाए। उस पर संजय बोला साहब रिश्ते की बुनियाद प्यार होता है, और वो प्यार कजरी मुझसे नहीं आपसे करती है। मैं रिश्ते को आगे ले जाना चाहूँ भी तो कजरी के दिल में प्यार तो नहीं जगा सकता न। ये रिश्ता खोखला ही रहेगा। इससे बेहतर है आप दोनों एक दूसरे को अपना कर खुशी-खुशी ज़िंदगी बिताओ आपको खुश देखकर मैं जी लूँगा। मेरा क्या है दो रोटी और दो पैग पर ज़िंदगी टिकी है बसर कर लूँगा बस आप हाँ बोल दीजिए। "

इतने में दरवाज़े के पीछे से दोनों की सारी बातें सुन रही कजरी नम आँखोँ से संजय से बोली, "वाह रे बड़ा बहादुर है रे तू तो, अपनी पत्नी का सौदा करने चला है। इतना सयाना है तो अच्छा इंसान बनकर अपनी ज़िंदगी क्यूँ नहीं सँवारता? अगर तूने मुझे समझा होता, प्यार दिया होता, परवाह की होती तो मेरे एहसास किसी ओर की तरफ़ ढ़लते ही नहीं। अब भी कुछ नहीं बिगड़ा सुधर जा तेरी सेवा में ज़िंदगी बिता दूँगी।" संजय कजरी के आगे हाथ जोड़ कर बोला "मेरा भरोसा मत कर, अपनी ज़िंदगी जी ले मैं खुशी-खुशी तुम्हें इस अनमने रिश्ते से आज़ाद करता हूँ, किसन अच्छा आदमी है तुझे सुखी रखेगा। में कल पंचायत में सबके सामने तुझे तलाक दे दूँगा फिर तुम दोनों शादी कर लेना। तुझे मेरी कसम हाँ, बोल दे।" कजरी ज़िंदगी के दोराहे पर खड़ी असमंजस में खड़ी थी क्या बोलती। एक तरफ़ कुआँ था दूसरी तरफ़ एक खुशियों से भरी झिलमिलाती ज़िंदगी। संजय से रिश्ता सामाजिक था, किसन से दिल का प्यार का। किसन ने संजय से कहा एक बार फिर सोच लो। कजरी के प्रति मेरा प्यार सच्चा है स्वार्थी नहीं। पर संजय अपने फैसले पर अटल था, कजरी का हाथ किसन के हाथ में सौंप कर बोला किसन "वचन दो कजरी को ज़िंदगी भर ऐसे ही प्यार करोगे और खुश रखोगे।" किसन ने कहा "अब क्या बोलूं आप मुझे मेरी ज़िंदगी दे रहे है, भला अपनी ज़िंदगी से प्यार करना कोई कैसे छोड़ सकता है। ताज़िंदगी पलकों पर बिठाकर रखूँगा आप निश्चिंत रहिए। और अगर कल तक आपका निर्णय बदलता भी है तो मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा प्यार पाने का नहीं देने का नाम है। कजरी की खुशी मेरी खुशी।" संजय के चेहरे पर संतोष और आँखों में एक नेक काम करने का गर्व झलक रहा था। कजरी की ज़िंदगी सँवारने का। दूसरे दिन सरपंच और पूरी पंचायत के सामने लिखा पढ़ी के साथ संजय ने कजरी को तलाक दे दिया और पूरी बिरादरी के सामने कजरी का हाथ किसन के हाथ में सौंप दिया। संजय की हिम्मत देख सबकी आँखें चौड़ी हो गई। कानाफुसी भी हुई, पर संजय के लिए समाज से ज़्यादा एक लड़की की ज़िंदगी और खुशी ज़्यादा महत्व रखती थी। किसन और कजरी भी अपने पहले प्यार को पाकर बेइन्तहाँ खुश थे। अब कजरी के जीवन में फ़िल्मों वाली घटनाएं घटने लगी। अपने प्यार को सुबह गीले बाल मुँह पर झटकर उठाना, उस पर किसन का उसे बाँहों में भर लेना। एक थाली में साथ बैठकर खाना घूमना फिरना और अपने घर में रानी की तरह रहकर कजरी को अब ज़िंदगी जश्न सी लग रही थी, पर कभी-कभी सोचती भी की पहला प्यार भी मिला तो फ़िल्मी अंदाज़ में, एक अनमनी शादी के टूटने के बाद पति के हाथों। ज़िंदगी भी अजीब है कैसे कैसे रंग दिखाती है। पर जो हुआ अच्छा हुआ मुझे पहला प्यार मिला संजय को आत्मसंतोष और किसन को उसकी खुशी। ए ज़िंदगी तू जैसी भी है बड़ी प्यारी सी है। और ख़यालों की सैर करते कजरी भविष्य के सपने बुनने लगी।


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