Bhavna Thaker

Romance

4  

Bhavna Thaker

Romance

यूँ मिला मुझे हमसफ़र

यूँ मिला मुझे हमसफ़र

14 mins
463


#चिकिर्षा_हिन्दी_कहानी_प्रतियोगिता_22061


#बारिश_वाला_इश्क 


"जाने क्यूँ लुभाती है मुझे बूँदों की सरगम लगता है सदियों का नाता है, बिना भीगे भी भिगो जाती है बादलों के आँसूओं की छमछम"

ऑफ़िस से छूटकर बरसाती शाम में नरीमान प्वाइंट पर "रिमझिम गिरे सावन सुलग सुलग जाए मन भीगे आज इस मौसम में लगी कैसी ये अगन" ये पँक्तियाँ गुनगुनाते एक चाय की टपरी पर बैठकर मैं बारिश का मज़ा ले रहा था। बारिश का मौसम मेरा बेहद पसंदीदा मौसम है। रिमझिम बरसती बूँदें गर्मी से झुलसते तन को शीतलता और मन को सुकून जो देती है। 

मैं अक्सर यहाँ आकर चाय का लुत्फ़ उठाते हुए समुन्दर से घंटो बातें करता हूँ। मुंबई का दरिया मुझे अपना सा लगता है, और लहरें मेरी दोस्त जैसी। एक लय में उठती, बहती लहरों से जो रव उठता है वो संगीत की किसी तान सा महसूस होता है, यहाँ आते ही दिन भर की थकान मिट जाती है। 

चाय की पहली चुस्की ली ही थी की बाजु के ठेले वाले राजू ने आवाज़ लगाई, अर्जुन भैया बस क्या मेरे पकौडों को अनदेखा कर दिया, चाय के साथ पकौड़े का लुत्फ़ भी उठाइये न मौसम का मज़ा दुगना हो जाएगा। दूँ क्या एक प्लेट? मैंने कहा ठीक है चल लगा लगा दे एक प्लेट, आज तेरी पसंद से बारिश का जश्न मना लेते है। बहुत समय से यहाँ आता हूँ तो सब नाम से जानते है। राजू पकौड़े रख गया एक पकौड़ा उठाकर मुँह में रखने गया की दाँयी तरफ़ बैंच पर बैठी एक बेहद खूबसूरत लड़की की तरफ़ ध्यान गया। लगभग बाईस-तेईस साल की होगी। पर वो कुछ इस एंगल से बैठी थी की बस आधा चेहरा ही दिख रहा था। तमन्ना-ए-दिल बेकरार हो उठी संपूर्ण सुंदरता आँखों में भरने के लिए। मैं खड़ा हुआ और टहलता हुआ उसके सन्मुख गया, उफ्फ़ कातिल नैंन नक्श देख मेरा दिल उछलने लगा। बाप रे आज पहली बार किसी लड़की को देखकर दिल ने हलचल मचाई थी। पर मैंने देखा वो हसीना बारिश में भीग जरूर रही थी, पर बौछार का मज़ा नहीं ले रही थी ये तो उसके चेहरे के हाव-भाव से पता चल रहा था। भले बरसात उसके चेहरे को भिगो रही हो पर आँसू भी अपनी पहचान दे रहे थे। भिगने वाले बार-बार गाल नहीं पौंछते। और वो ठंड की वजह से काँप भी रही थी। 

थोड़ी देर मैं उसका निरीक्षण करता रहा, भले वो मेरी कोई नहीं थी फिर भी उसके प्रति एक संवेदना का भाव उठ रहा था। यार नाजुक दिल है मेरा तभी तो कभी-कभी गुनगुना लेता हूँ की, 

"किसीकी मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसीका दर्द मिल सके तो ले उधार, किसीके वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम है" 

मन किया उसके पास जाकर परेशानी की वजह पूछूँ, पूछूँ की "इतने खूबसूरत चेहरे पर क्यूँ उदासी का नकाब ओढ़े बैठी हो, ए हुश्न परी बता क्यूँ ज़िंदगी से इतनी ख़फ़ा सी लगती हो" बारिश के मौसम में भले ही मैं पहनता नहीं मुझे भीगना बहुत अच्छा लगता है, पर मेरी ऑफ़िस बैग में रेनकोट हंमेशा रहता है, तो मन किया ठंड में ठिठुर रही सुंदरी को रेनकोट उधार दे दूँ, पर यार ऐसे कैसे किसीकी ज़िंदगी में दखल दे सकता हूँ, ये सोचकर चाय पकौड़े को न्याय देने लगा। पर नज़र बार-बार उस लड़की का रुख़ करते उसके उपर ठहर जाती थी। आख़री पकौड़ा मुँह में रखा की एक घटना घटी लड़की दौड़ती हुई समुन्दर की तरफ़ भागी, मानों खुदकुशी का मन बना लिया था और अपने इरादों पर कायम थी। पर मैं सबकुछ छोड़ कर उसके पीछे भागा जैसे ही वो कूदने गई मैंने पीछे से पकड़ लिया। वो चिल्लाते हुए बोली छोड़िए मुझे, आप होते कौन है, मर जाने दीजिए मुझे, नहीं जीना इस बेदर्द दुनिया में, मर जानें दीजिए मैं नहीं जीना चाहती। जीने तो नहीं दिया अब शांति से मरने तो दीजिए। किसने हक दिया आपको? न जान न पहचान चले आए बचाने। मैंने कुछ कहना चाहा पर वो सुबकने लगी और मुझसे लिपट कर रोने लगी। मैंने उसे भीतर से खाली होने दिया। आहिस्ता-आहिस्ता मेरी पकड़ के आगे उसके हौसलों ने दम तोड़ दिया। थोड़ा स्वस्थ होते उसे भान हुआ की किसी अन्जान लड़के की बाँहों में थी तो जल्दी से सौरी बोलते अलग हो गई और समुन्दर की ओर देखते बोली समा लो न मुझे अपनी आगोश में कहाँ जाऊँगी अब। इतने में बिजली कड़की तो डरकर वापस मुझसे लिपट गई। मैं मन में बोला लगता है इस बारिश ने आज मेरे भीतर आग लगाने की ठानी है। मैंने मजाक में कहा समुन्दर से बोला या मुझे? सच में समा लूँ क्या आपको अपने भीतर, क्यूँकि ये समुन्दर मेरा दोस्त है सालों से मुझे जानता है और मैं इसे, मेरे रहते वो तुम्हें बाँहों में भरने की ज़ुर्रत नहीं करेगा। मेरे मजाक पर हल्की सी मुस्कान के साथ वापस गमों की झील बन गई। 

मैंने कहा अगर आप बुरा न मानें तो एक बात पूछूँ? उसने कहा यही पूछना चाहते हो न की मैं मरना क्यूँ चाहती हूँ? मैंने हम्म कहते सर हिलाया। वो बोली क्या करोगे जानकर, क्या मुझे अपनी ज़िंदगी में शामिल कर पाओगे, सहारा दे पाओगे? नहीं न.. तो फिर मुझे बचाने का या क्यूँ मरना चाहती हूँ इसकी वजह पूछने का मतलब क्या है। मैं अनाथ हूँ, कोई नहीं मेरा इस दुनिया में, सुनिए मेरी कहानी सुनकर आप खुद मुझे समुन्दर में धक्का दे देंगे, कोई किसीका नहीं इस दुनिया में। मेरा नाम शिखा वर्मा है, तीन साल पहले एक दुर्घटना में मेरे मम्मी-पापा की मौत हो गई, मैं उनकी इकलौती संतान थी, माँ-बाप के जाते ही इस दुनिया में अकेली रह गई। कोई मेरी जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं थे, मेरे एक दूर के चाचा जी मुझे अपने साथ ले गए, मैं उनके साथ रहने लगी। पापा-मम्मी का जो कुछ था वो उन लोगों ने अपने नाम करवा लिया। चाची अच्छी थी पर चाचा की नीयत खराब थी। वो बार-बार मुझे गंदी नज़रों से देखते और यहाँ-वहाँ छूते रहते मैं डर के मारे कुछ नहीं बोलती। एक बार चाची जी को कहीं बाहर गाँव जाना पड़ा, उस एकांत का फ़ायदा उठाते चाचा ने मेरे साथ दो, तीन बार बलात्कार किया, जिसकी वजह से मैं प्रेगनेंट हो गई। मैंने चाचा को बताया तो उन्होंने धमकी दी की खबरदार मेरा नाम लिया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। मेरी समझ में नहीं आ रहा था क्या करूँ, मेरी तबियत दिन ब दिन खराब होने लगी तो चाची जी मुझे डाॅक्टर के पास ले गई। वहाँ सारे टेस्ट हुए और चाची को पता चल गया की मैं प्रेगनेंट हूँ। चाची ने गुस्सा होकर गंदे इल्ज़ाम लगाकर मुझे खूब पीटा, डाॅक्टर को पैसे देकर मेरा अबोर्शन करवा दिया फिर चाचा-चाची ने मुझे घर से निकाल दिया। अब मेरे पास मरने के सिवाय कोई रास्ता नहीं, कहाँ जाऊँ कौन सहारा देगा मुझे। क्यूँ बचाया आपने मुझे? और वो फिर से फूट-फूटकर रोने लगी। 

मेरा मन उसकी कहानी सुनकर बोझिल हो गया। और आसमान भी मानों उस लड़की का दर्द सुनकर दु:खी होते बेतहाशा रोए जा रहा हो ऐसे धुआँधार बरसने लगा। वो नतमस्तक बैठी थी, मैं भी अब क्या करूँ, क्या नहीं सोच सोचकर पागल हुआ जा रहा था। खुद के पैरों पर कुल्हाड़ी मार दी थी। 

पर याद आया जब भी मेरी कुछ समझ में नहीं आता तब मैं डांस कर लेता हूँ। अजीब नहीं हूँ यारों? पर सच मानों डांस करने से समस्याएं सुलझ जाती है। थोड़ी देर विचारों की ट्रेन पटरी से खिसक जाती है और सही गलत का फैसला लेने में आसानी रहती है। मैंने कुछ सोचा और एक ठोस निर्णय के साथ खड़ा होते उसके आगे अपना हाथ रखा और कहा, लेट्स डांस? वो अजीब नज़रों से मुझे देखने लगी और बोली मजाक सूझ रहा है न आपको मेरी मौत का मजाक बनाकर। मैंने उसका हाथ पकड़ा और उसकी कमर में बाँहें ड़ालकर डांस करने लगा। थोड़ी देर बुत की तरह मेरा साथ देने वाली शिखा चंद पलों में मेरे साथ झूमने लगी। हम दोनों आसपास की दुनिया भूलकर भरी बरसात में नृत्य का मज़ा लेते एक दूसरे में खो गए, आहा क्या कशिश थी उस स्पर्श में, हम दोनों के एहसास पिघलने लगे थे। उसने मदहोश होते मेरे कँधे पर अपना सर रख दिया और मैंने उसे आगोश में भर लिया। मानों कोई फ़िल्मी सीन चल रहा हो। अचानक तालियों की आवाज़ ने हमारा ध्यान भंग किया। चाय की टपरी वाले चाचा और पकौड़े वाले राजू के संग कुछ लोगों ने हमारे नृत्य को सराहते तालियों से नवाज़ा। लय तोड़ने के ज़ुर्म में मैंने राजू की तरफ़ गुस्से से देखा वो कँधे उछालते हंसने लगा और ऊँगली और अंगूठे को जोड़ते कहने लगा सुंदर जोड़ी भैया।

मैंने शिखा के मासूम चेहरे को एक बार फिर से गौर से देखा, कहीं कोई झूठ या कपट नज़र नहीं आया। मैं सोचने लगा निश्चल, निष्कपट, पाक आरती-अज़ान सी मासूम लड़की को मैंने बचा तो लिया पर दरिंदों से भरी इस दुनिया में अकेली कहाँ जाएगी? नोंच ड़ालेंगे इस कच्ची कली को। एक दलदल से तो निकल गई पर जवान खूबसूरत लड़की के लिए पूरी दुनिया दोज़ख से कम नहीं। मैंने वापस शिखा को देखा, सच मानों यार मुझे प्यार हो गया। तो क्या हुआ की उसके साथ जो हादसा हो गया उसमें इस लड़की का क्या कसूर। किसी महिला विकासगृह में छोड़ दूँ या कोई ऐसी संस्था में जहाँ पिड़ीत लड़कियां रहती है। फिर अचानक ख़याल आया मुझे भी तो ज़िंदगी में किसीको अपनाना है, किसीका मुझे होना है तो वो शिखा क्यूँ नहीं हो सकती? क्यूँ मैं खुद नहीं अपना सकता शिखा को? और ज़्यादा कुछ सोचे बिना मैं शिखा के आगे घुटनों के बल बैठ गया और सर झुका कर उसका हाथ पकड़ कर बोला शिखा मैं अर्जुन कश्यप, एमबीए पास एक मल्टीनेशनल कंपनी में बड़े ओहदे पर नौकरी करता हूँ, एक लड़की को खुश रखने की पूरी काबिलियत है मुझमें क्या मुझसे शादी करोगी? 

शिखा शायद इतनी खुशी बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं थी, मैंने अचानक जो बारिश कर दी थी। वो पगली हाथ जोड़ कर जैसे मंदिर में किसी आराध्य के सामने खड़ी हो ऐसे अहसानमंद आँखों से बहुत कुछ कह रही थी। उसकी आँखों में कई सारे भावों के साथ सवाल दिखे, डर दिखा और एक बार फिर मैंने बारिश के पानी से अलग करते आँसूओं को पहचान लिया। भरोसा करूँ या नहीं वाली असमंजस और हल्की सी प्रीत की लकीर भी दिखी। मैंने उसका चेहरा अपनी दोनों हथेलियों में भरकर उपर उठाया और उसकी आँखों में आँखें ड़ालकर कहा, प्लीज़ बिलीव मी सोच समझकर ताज़िंदगी के लिए कमिटमेंट कर रहा हूँ, कोई भावावेश में आकर नहीं। अपनों पर यकीन करके तुमने देख लिया, अब एक अजनबी को भी आज़माकर देख लो। मुझे आज तक किसीसे प्यार नहीं हुआ तुम्हारे प्रति पहले प्यार वाली कशिश ने हाथ थामने का इशारा दिया है। इन मेघों की कसम शिखा ये बारिश का मौसम हंमेशा हमारे प्रेम का गवाह रहेगा। और मैं चुपचाप आँखें मूँदे उसके जवाब का इंतज़ार करने लगा। शब्दों का सहारा लिए बिना शिखा ने मुझसे लिपटकर अपने प्यार का इज़हार कर दिया। इतने में एक भुट्टा बेचने वाला आया। मैंने एक ही भुट्टा खरीदा। धुआँधार बरसती बारिश हो, गर्मा गर्म भुट्टा और हाथों में महबूब का हाथ हो ज़िंदगी इससे ज़्यादा हसीन तो नहीं होगी। एक ही भुट्टे को अपनी वाली से शेयर करना दिल में गुदगुदी जगा गया। राजू ने रेडियो मिर्ची पर बजा दिया इसी सिच्यूएशन पर गाना "प्यार हुआ इकरार हुआ है प्यार से फिर क्यूँ डरता है दिल" हाए मेरा बारिश वाला प्यार, अकेला चाय पीने आया था और अपने हमसफ़र का हाथ थामें सराबोर भीगते घर की और प्रस्थान कर रहा हूँ। मैंने शिखा की ओर देखा, नखशिख एक सुकून से लिपटा पाया। मानों ऐसा महसूस कर रही हो, जैसे मज़धार में तूफ़ान में फंसी कश्ती को सहारा मिल गया हो। मिलता है यार किसी किसीको पहला प्यार ऐसी सिच्यूएशन में भी।

आप क्या समझते है कहानी यहाँ ख़त्म हो गई? नहीं यारों अभी तो असली कहानी शुरू हुई। शिखा बोली अर्जुन तुम अपने घर वालों को क्या बोलोगे, क्या परिचय दोगे मेरा? क्या कहोगे कि मैं कौन हूँ। मैंने कहा देखती जाओ आगे-आगे होता है क्या। पर एक वादा तुम भी करो किसी भी परिस्थिति में मेरा साथ नहीं छोड़ोगी, मुझ पर भरोसा रखना अब हम दोनों को हर परिस्थिति से जूझना है। मुझे खुद नहीं मालूम घरवालों का रिएक्शन क्या होगा। मैं उलझन में था एक ज़िंदगी को बचा तो लिया अब हम दोनों को कौन बचाएगा मेरे घरवालों के सवालों से, परम पूज्य पिता जी के गुस्से से। हर कुछ दिन बाद घरवाले एक रिश्ता लेकर आते थे और मैं अभी शादी नहीं करनी बोलकर बिना देखे ही ठुकरा देता था और आज अचानक किसी अन्जान लड़की को बरसती बारिश में रस्ते से उठाकर पेश करने जा रहा था। दुन्यवी हकीकत नज़रों के सामने आई तो पैर काँपने लगे। पर किसीसे किया हुआ वादा भी कोई मायने रखता है न, जो होगा देखा जाएगा सोचकर घर के दरवाज़े की घंटी बजाई और सर झुकाए शिखा का हाथ थामें खड़ा रहा। 

छोटी बहन पिंकी ने दरवाज़ा खोला खोलकर मूड़ रही थी की शिखा को देख वापस मूड़ी और हम दोनों को उपर से नीचे तक देखकर हाथ के इशारे से पूछने लगी ये कौन है भैया? मैंने कहा पहले अंदर तो आने दे बताता हूँ सब। अब दिल राजधानी एक्सप्रेस की गति से धक-धक करने लगा। आहिस्ता-आहिस्ता हम दिवानखंड में आए। पापा टीवी पर न्यूज़ देख रहे थे और मम्मी किचन में थी। पिंकी ने शिखा को बोला बैठिए। तो पापा का ध्यान हम पर गया। बोले कुछ नहीं बस एक प्रश्नार्थ भरी नज़रों से मेरी ओर देखा। मैंने जवाब देना टाला और पिंकी से पूछा मम्मी कहाँ है? उस पर पापा बोले तुम्हारी मम्मी इस वक्त हर रोज़ खाना बना रही होती है पता तो है अब ये बताओ ये आपके साथ मेहमान कौन है? इतने में मम्मी भी आ गई। कुछ क्षण मैं मौन रहा एक पर्वत से टकराने की हिम्मत जुटा रहा था की पापा ने कड़क लहजे में कहा, कुछ पूछ रहा हूँ बरखुरदार जवाब देने का कष्ट करेंगे? मम्मी ने मेरा पक्ष लेने की कोशिश करते कहा, थका हारा आया है पहले कुछ खा पी तो लेने दीजिए बातें तो होती रहेंगी। पापा कुछ बोले नहीं बस नज़रों से मम्मी को चुप करवा दिया। मैंने भी ठान लिया जब शिखा को अपनाने का फैसला कर ही लिया है तो घबराना कैसा, एक लड़की की ज़िंदगी सँवारने जा रहा हूँ कोई गुनाह करने तो नहीं जा रहा। एकदम स्वस्थ होते पूरे आत्मविश्वास के साथ शिखा को बोला बैठो, शिखा कुर्सी पर बैठ गई और मैं पापा के पास सोफ़े पर। फिर आहिस्ता-आहिस्ता सारी बातें सबको बताई, शिखा के साथ जो हुआ सब बताया। और कहा अब आप सबका जो फैसला होगा मुझे मंज़ूर है। 

बाहर बिजली के कड़कने की ज़ोरदार आवाज़ आई साथ में मेरे उपर भी बिजली गिरी। पापा की सत्तात्मक आवाज़ गूँजी अभी के अभी इस रास्ते की गंदगी के साथ मेरे घर से निकल जाओ, ये घर है कोई अनाथालय नहीं। क्या सोचा तुमने कि तुम किसीको भी उठाकर इस घर की इज्ज़त बना दोगे और मैं स्वीकार कर लूँगा? मम्मी और पिंकी ने कुछ कहना चाहा पर पापा के बुलंद इरादों ने दोनों को मौन कर दिया। 

शिखा ने दो हाथ जोड़ कर कहा सौरी अंकल गलती मेरी ही है मुझे अर्जुन का प्रपोजल स्वीकार करना नहीं चाहिए था। शिखा आगे कुछ बोले उससे पहले पापा ने बीच में टोकते ही कह दिया, ये हमारे घर का मामला है तुम्हें बीच में बोलने का कोई हक नहीं। और डायनिंग टेबल की तरफ़ आगे बढ़ते मम्मी से बोले रचना खाना लगाओ। 

मैं भी मिस्टर आदित्य कश्यप का बेटा था अपने कमरे में गया और अपना कुछ जरूरी सामान लेकर चलो शिखा कहते मम्मी के पाँव छूकर निकल गया। 

अनराधार बारिश में एक लड़की की जिम्मेदारी के साथ एक नई ज़िंदगी की शुरुआत करने। अपने दोस्त परम को फोन लगाया जो अकेला ही रहता था। और कहा कुछ दिनों के लिए तेरे घर का मेहमान बनना चाहता हूँ, विद एक लड़की बोल आऊँ क्या? परम जिगरजान दोस्त था बोला कमीने तुझे परमिशन की जरूरत कब से पड़ने लगी। बिंदास आजा यार बैठकर बियर पीते है।

मैंने ऑटो लिया और शिखा को लेकर निकल गया। शिखा चुपचाप मेरा अनुसरण कर रही थी उदास और विचारों से घिरी। मैंने उसके हाथ पर अपना हाथ रखा और उसने अपना सर मेरे कँधे पर रख दिया और पूछा अब? 

मैंने कहा उपर वाले ने हमें मिलाया है वही रास्ता दिखाएगा चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा। 

आप नहीं मानोगे बाॅस शिखा मेरे लिए इतनी लकी साबित हुई की किस्मत के दरवाज़े खुल गए। परम और कुछ दोस्तों की मदद से शिखा से शादी कर ली और शादी के बाद एक ही हफ़्ते में प्रमोशन मिला, मैं मैनेजर बन गया। आहिस्ता-आहिस्ता ज़िंदगी की गाड़ी पटरी पर चढ़ने लगी। गुड़ न्यूज़ सुनाऊँ? शादी को एक साल हो गया है शिखा माँ बनने वाली है और अपून पापा। मन करता है मेरे हिटलर पापा और घरवालों को ये खुश खबर सुना दूँ ? शायद ये खबर सुनकर गुस्सा थूँक दे। नहीं...मन नहीं मान रहा, जो शिखा से इतनी नफ़रत करते है वो बच्चे को क्या अपनाएंगे।

आज फिर काली अंधेरी रात में मौसम ने अंगड़ाई ली, ज़ोरों की बारिश और तेज़ बवंडर उठा, दूसरी ओर शिखा को भी लेबर पेइन शुरू हो गया। मैंने परम को फोन किया और हम शिखा को अस्पताल ले आए। टेंशन के मारे मैं कॉरिडोर में चक्कर काट रहा था बाहर झमाझम बारिश हो रही थी और मेरे अंदर उत्तेजना  हलचल मचा रही थी। काश की माँ साथ होती। ख़यालों को तोड़ते नर्स ने आकर कहा मिस्टर अर्जुन आपकी पत्नी को बेटा हुआ है, खुशी के मारे मैं आँखें मूँदे ईश्वर का शुक्रिया अदा करने लगा वाह रे कुदरत बारिश से मेरा गहरा नाता जोड़ दिया। प्यार भी भरी बरसात में मिला और बच्चा भी धुआँधार बरसात में तेरा लाख-लाख शुक्रिया। 

सर उठाकर देखा तो सामने हिटलर पापा अपने पोते को गोद में उठाए खड़े थे। बाजु में चेहरे पर खुशी और नम आँखें लिए मेरी माँ और दूसरी ओर पिंकी, मैं समझ गया परम ने शैतानी कर दी थी। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance