एकदम एक दूसरे में लगभग खोके वह मदहोशी के आलम में डूब रहे थे।
Always learning ...story writing and telling others is my passion.
‘देवी माँ और एक वैश्या के शरीर में... माँ का ऐसा अपमान!
यह शादी उनकी गलती नहीं है तो क्या यह शादी रत्तो की गलती है ? और अगर उसकी भी गलती नहीं है तो सजा की हकदार सिर्फ वही क्यों...
जल्द ही वो टूट जाएंगे और उन पर टिका, ये बस नाम का संयुक्त परिवार भी।
याद रखें बच्चे पैदा तो सभी करते हैं पर परवरिश सिर्फ कुछ माँ-बाप ही कर पाते हैं।
क्यों न करूँ शिकवा। जब वो सफाईवाले भी आपस में शिकवा कर रहे थे की सब कुछ बढ़िया था लेकिन कोई चीख नही थी
आज उसे वह अपने से दूर करने जा रही थी। थोड़ी ही देर में उसके हाथो में उसकी कराहती आत्मा थी ,चिंदी-चिंदी टुकड़ों में ! जान...
उस मालिक को याद तक नहीं कि उसने अपनी विदेशी पत्नी का नाम कब रख दिया !
भैया ! बहुत हुआ, अब इसे छोड़ दो ! अपनी करनी का फल भोगे जाकर, मालती दरवाजे पर हाथ जोड़े खड़ी थी।
१६० रुपये की उम्मीदो पर १०० रुपए का जो तुषारापात हुआ वो दो दिनों के बाद बिक्री होने के संतोष के आगे रफुचक्कर हो गया।
कुछ फिर दरका, कुछ टूटा और फिर टीस वही पुरानी।
अपने करियर को छोड़कर फैमिली को प्रायोरिटी देने का निर्णय क्या कम एडजस्टमेंट वाला होता है? और उसका कोई मोल क्यों नहीं होता...
खुद सुरक्षित रहकर ही हम परिवार को समाज को सुरक्षित रख सकते हैं।
प्रेम पर आधारित एक प्रतिनिधि कथा। मध्य हिमालय के लोक और लोक संस्कृति की भूमिका के साथ।
एक लघुकथा...।
हर स्त्री प्रताड़ित है कहीं ओहदे से,कहीं गुरुर से,कहीं जिम्मेदारियो से,कहीं धर्म संस्कार की आड़ से,कहीं कपड़ों से कहीं न...
जिसे भाभी से छुपाने के लिये मैंने आँचल में पोंछकर मुट्ठी में दबा लिया।
इस कहानी की एक बहुत बड़ी बदकिस्मती ये है, कि इसकी नीव एक ऐसे सच ने रक्खी है, जो हमारे समाज पर ना केवल एक बुनियादी सवाल ह...
9किशोर अवस्था विश्वास मांगती है अपने से बड़ो का, और जब साथ नहीं मिलता तो विषाद के पल सही गलत में अंतर करना भूल जाते है ।