कहीं से कोई चिट्ठी नहीं आती
कहीं से कोई चिट्ठी नहीं आती


बचपन में मस्त खेलते, कोई परवाह नहीं । हर चीज़ में हँसने का मसाला ढूंढ लेते। मॉं की चिट्ठियाँ आती मामा के पास से। हर हफ़्ते एक चिट्ठी। वह भी एक पोस्टकार्ड पर। पोस्टकार्ड पर लिखी चिट्ठियाँ कोई भी पढ़ सकता था। हर बार एक सी इबारत होती। कुछ इस तरह-
पूज्या बीबी,
सादर प्रणाम्।
अत्र कुशलं तत्रास्तु। यहाँ सब कुशल मंगल है ,वहाँ भी सब ठीक से होंगे। सब बच्चे आपको याद करते हैं और प्रणाम लिखाते हैं। मेरा भी वहॉं सब बड़ों को प्रणाम् और बच्चों को प्यार। अपनी कुशलता का पत्र देना।
आपका भाई
बड़े बड़े अक्षर।पोस्टकार्ड पर लंबे रुख लिखी चिट्ठी। पूरा पोस्टकार्ड भर जाता। हम हँसते कि मामाजी की हर बार एक सी चिट्ठी आती है। कभी कोई ख़ास बात होती तो इसमें एक दो लाइन और बढ़ जातीं। जैसे कौन आया था ,कौन गया, या क्या त्योहार है। अथवा तुम्हारी राखी मिली ,टीका मिला आदि।
यह सिलसिला चलता रहा।हम बड़े हो गए। अपने घरबार के हो गए। मॉं के पास मामाजी की इसी तरह की चिट्ठी हर हफ़्ते बिना नागा आती रही। त्योहारों पर माँ टीका राखी भेजतीं रहीं। और वहाँ से पाँच रुपये का मनीआर्डर हर रक्षाबंधन ,भैया दूज और दशहरे पर आता रहा।
समय अपनी गति से चलता रहा ।एक दिन माँ बीमार पड़ीं ,मामाजी देखने आए और मिलकर चले गए। इसके कुछ दिन बाद पता चला कि मामाजी नहीं रहे ।
फिर एक बार हमारा माँ से मिलने जाना हुआ। मामाजी की बात चली । मॉं चुप रहीं ,कुछ नहीं बोलीं। कुछ देर चुप रहने के बाद एकाएक वे बोलीं “अब मेरी कहीं से कोई चिट्ठी नहीं आती”और उनकी आँखों से आँसू बह चले। उनका वह असहाय निरालम्ब भाव मुझे अंदर तक कुरेद गया। मैं कुछ बोलने में असमर्थ थी हतप्रभ थी। वे कितने एकाकी हो गई थीं। मामाजी से उनको सहारा मिला करता था । उन्हें लगता था कि कोई उन्हें भी पूछने वाला है ,वे अकेली नहीं है। वे ख़त ख़त नहीं थे ,भाई बहन का प्यार था, एक दूसरे को याद करने और उनकी कुशलक्षेम से अवगत होने का ज़रिया था।
मेरा दिल भर आया ,मैं इतना ही कह सकी कि मैं आपको चिट्ठी लिखा करूँगी,। पर वे अपने में खोई थीं। मामाजी की चिट्ठी उनका सहारा थी कि कोई उन्हें भी पूछने वाला है। उन्हें मामाजी के पोस्टकार्ड का इन्तज़ार रहता था, इस बहाने उन्हें अपनापन मिलता था। चिट्ठी नहीं थी वह ,मामाजी से उनका मिलना था ,अपनापन था। अब कोई नहीं था जो उन्हें बीबी कहकर पुकारे, हर हफ़्ते चिट्ठी लिखे, उनकी कुशलक्षेम पूछे। जिसे वे त्योहारों पर राखी, टीका नौरते भेजें।
एक स्नेह का संसार ख़त्म हो गया। वे अकेली पड़ गईं, कहीं से कोई चिट्ठी नहीं आती, कोई ख़ैर ख़बर नहीं पूछता। कहीं से फ़ोन आने की भी उम्मीद नहीं।
कौन हैं जो हर हफ़्ते एक चिट्ठी लिखकर उनसे जुड़ा रहे। उनकी कुशल क्षेम पूछे और अपनी कुशलक्षेम बताए। चिट्ठी क्या आनी बंद हुई एक स्नेह का संसार ख़त्म हो गया, उसकी भरपाई कौन कर पाएगा।