एक ही पान लीजिये
एक ही पान लीजिये
हरेक का अपना शौक़ होता है। मेरी बहिन का शौक़ पान ख़ाना और खिलाना था। उनके इस शौक को देखकर उनकी एक मित्र पड़ोसिन उनके यहॉं कुछ पान के पत्ते भेज देती थीं,जबकि वे ख़ुद पान नहीं लेती थीं।
पड़ोसिन ने अपने घर में गमले में पान की बेल शौक़िया लगाई हुई थी। बेल ख़ूब पनप गई थी,अच्छे से पान के पत्ते निकलते थे; तो दो तीन दिन के अन्तर से वे पत्ते तोड़कर बहिन के पास भेज देती थीं।
बहिन उसमें बादाम, मुनक्का आदि रखकर खाना पसन्द करती थीं,और आये गये मेहमानों को भी पान देती थीं। उस पान की बहुत तारीफ़ होती थी। कभी कभी बाज़ार से भी लगे लगाये पान मँगवा लेती थीं ।
एक बार ऐसा हुआ कि उनके पास कुछ मेहमान आये हुए थे ,पर घर में पान नहीं थे ;तो उन्होंने अपने नये नौकर को बाज़ार से पान लाने के लिये भेजा कि अच्छे से पान लगवा कर ले आना ।
नौकर बाज़ार से पान लगवा कर ले आया और मेहमानों को पेश किये।जब वह मेहमानों को पान दे रहा था तो एक मेहमान दो पान उठाने लगे। नौकर ने तुरन्त उनको टोका और कहा कि 'एक ही पान लीजिये,आपके हिस्से का एक ही पान है।'
मेहमान का चेहरा देखते बनता था। वे बेचारे झेंप से गये,हतप्रभ से हो गये,उनसे कुछ कहते नहीं बना। नौकर फिर बोला कि ' सबके लिये एक एक पान लाया हूँ '।
नौकर शायद मेहमानों को गिनकर गया था और सबके लिये एक एक पान ही लाया था।
बहिन ने बात सँभाली कि नौकर नया है, अभी कुछ ही दिन पहिले आया है। अभी ज़्यादा जानता नहीं है ।
उनकी बात सुनकर हँसी का फौव्वारा छूट गया। हँसी में बात आई गई हो गई। सभी हँस पड़े। माहौल फिर हल्का फुल्का हो गया।