Chandra Prabha

Tragedy Action

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Chandra Prabha

Tragedy Action

स्वाभिमानिनी

स्वाभिमानिनी

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असीम लाड़ प्यार में वैभव सम्पन्न माता पिता की छत्रछाया में पली मीना़क्षी बचपन से ही बहुत मेधावी थी। हर काम में पढ़ाई में अव्वल थी। उसने एम.ए. कर लिया। लॉ कर रही थी और आँखों में सपने पल रहे थे प्रशासनिक सेवा की प्रतियोगिता में प्रथम आने की। उसकी तैयारी भी कर रही थी पर पितृसत्तात्मक समाज और परिवार के दबाव के आगे उसकी एक नहीं चली और उसको दबाव देकर पढ़ाई पूरी होने से पहले आर्थिक रूप से निर्भर होने से पहले शादी के बंधन में बाँध दिया गया कि लड़का अच्छा मिल रहा है । उससे कहा गया कि लड़कियाँ लता की तरह होती हैं उन्हें सहारे के लिए पुरुष रूपी वृक्ष की ज़रूरत होती है। 

शादी धूमधाम से हो गई ,पति गृह में प्रवेश किया। नई नई शादी हुई थी ,पर ससुराल आते ही पति परमेश्वर से क्या सुनने को मिला," तुम्हारे भाई को यूरोपा वालों ने रिश्वत दी थी क्या ,जिससे उन्होंने यूरोपा की रिस्टवाच और यूरोपा की टाइमपीस दहेज में दे दी? ये एकदम घटिया है ।मुझे कुछ नहीं मिला शादी से ,केवल तुम मिली ।" छोटे भाई को रिस्टवाच पसन्द आ गई तो पति ने उसे तुरन्त दे दी। 

पति बोलते चले गये," तुम्हें मेरी बात माननी होगी ,मैं कमाता हूँ ,तुम्हारे लिए दिन भर नौकरी में जाकर खटता हूँ ,तुम्हें मेरी अधीनता स्वीकार करनी पड़ेगी ,यह टाईमपीस भी एकदम बेकार है ,मुझे नहीं लेनी। यह सोफ़ा मैं नहीं ले जाऊँगा ,यह अलमारी भी नहीं। मुझे कुछ नहीं चाहिए। "

सासुजी ने कहा," यह ज्वेलरी ठीक नहीं दी । तुम्हारे पूफाजी ने कहा था कि मैं यहीं सुनाता हूँ पर मैंने मना कर दिया।" सासु मॉं जी असली मोती के हार को पहचान नहीं पाईं,जो बसरे के अनमोल मोतियों का था ,उसे वह साधारण कल्चर मोती का समझ बैठीं। ज्वेलरी को लेकर फ़ालतू में सुना दिया ,पर कौन उनको समझाता ?वे असली कुन्दन के हार को भी साधारण शीशा जड़ा समझ बैठी थीं। सोने का हार उनहें हल्का लगा था। 

ससुराल में एक महीना रहने के बाद मीनाक्षी पति के साथ उनकी नौकरी पर चली गयी।वह एक कमरे के किराया के मकान में रह रहे थे, एक नौकर खाना बनाने के लिए था। घर जैसा कोई आराम वहॉं नहीं था। पति का रुख़ा व्यवहार था,फिर उनकी झिड़की और तुनुकमिजाजी थी। मीनाक्षी कॉंपकर रह गई, ऐसा ही क्या चलेगा और कब तक? कहाँ फँस गई! पति रुपये पैसे के कंजूस ,पैसे को दॉंत से पकड़ने वाले!

मीनाक्षी को पढ़ने लिखने का शौक था, पर यहाँ न तो कोई अख़बार आता था ,न कोई पत्रिका। जबकि पीहर में धर्मयुग साप्ताहिक बराबर आया करता था, हिंदी व अंग्रेज़ी का अख़बार भी आता था और सरिता मासिक पत्रिका भी। मीनाक्षी एकदम ख़ाली बैठे बैठे बोर हो जाती। पति सुबह काम पर जाते ,शाम तक लौटते। 

मीनाक्षी एक बार पति के साथ बाहर गई तो उसने धर्मयुग पत्रिका लेनी चाही जो उस समय केवल आठ आने में आती थी ,पर पति ने उसे लेने से मना कर दिया। उस समय शरीफ़ों का मौसम था ,वे बहुत सस्ते थे , एक आने में चार आ जाते थे, परंतु उसे भी लेने से उन्होंने मना कर दिया। सेब ख़रीदने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे क्योंकि वह महँगा फल था। पर पॉंच रुपये की आइसक्रीम वे ख़रीद लेते थे क्योंकि उन्हें आइसक्रीम पसंद थी। उन्होंने जब आइसक्रीम मीनाक्षी को भी देनी चाही तो उसने लेने से मना कर दिया ।उसके मन में विचार आया कि उसे आठआने का धर्मयुग और एक आने का शरीफा लेने नहीं दिया और अब आइसक्रीम के लिए पॉंच रुपये आराम से ख़र्च दिए। 

उसके पति पोलसन मक्खन ख़रीदा करते थे जबकि वह मँहगा आता था। मीनाक्षी को तो उसमें हीक आती थी, और उस से खाया नहीं जाता। मीनाक्षी को घर के दही का बिलोया हुआ ताज़ा मक्खन पसन्द था ,पर यहाँ क्या कह सकती थी। 

शहर की लोकल ब्रेड अच्छी ताज़ी व मीठी मीठी सी आती थी जो मीनाक्षी को पसंद थी ,पर उसके पति को कलकत्ते की बाहर से आयी ब्रेड पसंद थी ,जिसमें मीनाक्षी को कोई टेस्ट नहीं आता था ।वे ताज़ी नहीं होती थीं, और खाने में भी सूखी सूखी लगती थीं।उसकी पसंद की कोई चीज़ खाने को नहीं मिलती थी। 

यहॉं खाना बनता था सुबह में पराँठा सब्ज़ी ,दोपहर में दाल रोटी ,रात को दाल रोटी सब्ज़ी। खाने में दही चटनी अचार सलाद कुछ भी नहीं रहता था जबकि मीनाक्षी को दही सलाद वग़ैरह की आदत थी। फल और दूध नहीं आते थे। पति की चाय के लिये पैकेट का सूखा दूध था। 

पति अपनी मनमानी करते।कहते," यहॉं रहना है तो जो मैं कहूँगा, करना होगा ,वरना तुम अपने भाई के यहाँ जा सकती हो। मैं उन्हें चिट्ठी लिख देता हूँ ,आकर ले जाएंगे,या तुम्हें मैं छोड़ आऊँगा ।या तुम अकेली भी जा सकती हो,तुम्हें ट्रेन में बैठा दूँगा। "

 मीनाक्षी सोचती," मैं इतनी बड़ी हुई क्या पति ने ही पाला पोसा, क्या इन्होंने ही खिलाया पिलाया अब तक। खाना खिलाने की इतनी धौंस जमाते हैं ,जैसे इन्होंने ही अब तक मेरा ख़र्चा संभाला है?

पीहरसे शादी में सब सामान—-कपड़े ,बिस्तर,चादर,दोहर,रज़ाई ,लिहाफ़ ,ट्रंक,बर्तन ,फ़र्नीचर , आलमारी और गृहस्थी का उपयोगी सामान दिया गया था पर इन्हें कुछ पसंद नहीं आया। 

दहेज में इन्होंने एक ट्रांज़िस्टर माँग कर लिया था ,नेशनल का ट्रांज़िस्टर , बस वही पसंद आया,उसे ही बजाते रहते हैं। तब नया नया ट्रांज़िस्टर आया था इससे पहले रेडियो ही चलते थे। ये कहते थे कि," इस ट्रांज़िस्टर के अलावा शादी में बाक़ी मुझे कुछ नहीं मिला ,बस एक तुम मिली हो ,एक सूट तक नहीं मिला।"

मीनाक्षी के यह कहने पर कि सूट के लिए रूपये दिए गए थे कि अपनी पसंद का कपड़ा लेकर सूट सिलवा लेंगे, उनका जवाब होता,"इतने कम पैसों से बढ़िया सूट कहाँ से आता "। मतलब यह कि ससुराल की हर बात से असन्तोष ही असन्तोष था। मीनाक्षी से कड़वा बोलकर अपना ग़ुस्सा निकालते थे। दहेज मनमाफिक नहीं मिलने से बहुत नाराज़ थे। 

एक बार मीनाक्षी ने पूछा," तुम चले जाते हो, दिन भर बाहर रहते हो, मैं दिनभर क्या करूँ ?"

तो उत्तर मिला,"मैं क्या बताऊँ,जैसे सब औरतें रहती हैं,वैसे ही तुम भी रहो"। 

मीनाक्षी मानसिक उपेक्षा ,खाना पीना ठीक न मिलने के कारण दिन पर दिन कमज़ोर पड़ने  लगी । वहॉं का मौसम भी उसे सूट नहीं किया,वह काली पड़ने लगी। गर्भवती हो गई थी। गर्मी बेहद थी। कोई पंखा या अन्य कोई सुविधा नहीं थी। तीन महीने पति की नौकरी पर रहने के बाद कुछ दिन की छुट्टियों में पति के साथ ससुराल गई तो सास ने देखकर कहा,"कैसी तो काली पड़ गई है। इतनी काली होती तो मैं शादी करके नहीं लाती ,शक्ल सूरत साधारण है ।दहेज में भी कुछ नहीं दिया"।

मीनाक्षी यह सुनकर कटकर रह गयी ।कोई लाड़ दुलार तो क्या होता , हर समय आलोचना सुननी पड़ती ।उसकी कोई बात की तारीफ़ नहीं हुई। कुछ दिन ससुराल में रहने के बाद पति के साथ लौट आई। यहॉं भी कोई सुकूनभरी ज़िंदगी नहीं थी। उसकी पढ़ाई अधूरी रह गयी थी पर उसे पूरी करवाने की भी किसी को कुछ चिन्ता नहीं थी। 

मीनाक्षी ने एक बार अपने पति से कहा," तुम दुनिया भर की बातें अपने दोस्तों से करते हो, न्यूज़ पॉलिटिक्स की चर्चा करते हो ,पर मेरे से कुछ भी नहीं बोलते,कुछ नहीं बताते।" तो वे बोले," तुमसे क्या बात करूँ ,तुम क्या समझोगी कि बर्मा में क्या हो रहा है"। मीना़क्षी सुनकर हतप्रभ रह गई, "अर्थात् पत्नी को कुछ बताने की ज़रूरत नहीं है ,पत्नी को आख़िर ये समझते क्या हैं?"

पति शाम को देर से घर लौटे, मीनाक्षी ने कहा,"मैं आपका इंतज़ार कर रही थी।" मीनाक्षी ख़ुश थी कि अकेलेपन से मुक्ति मिली। पर वे बोले," मेरा इंतज़ार कर रही थी तो नाश्ते में मेरे खाने के लिए क्या बनाकर रखा?" मीनाक्षी स्तब्ध रह गई। घर में खाना पकाने के लिए नौकर था ,वही शाम को इनकी आने पर नाश्ता देता था ।मीनाक्षी सोचती,"मेरे से ग़ुस्से होने का कोई कारण नहीं था"। 

दिन पूरे होने पर डिलीवरी के लिए मीनाक्षी को प्लेन से ससुराल भेज दिया गया। पति ख़ुद छोड़ने नहीं आये। उसे अकेली भेज दिया यह कहकर कि,"बाद में आऊँगा,अभी छुट्टी नहीं है"। उस पर पहली लड़की हो गई,मीना़क्षी चौतरफ़ा उपेक्षा की शिकार हो गई,सब पुत्र की उम्मीद कर रहे थे। 

मीनाक्षी एक महीने की शिशु को लेकर पति की नौकरी पर आयी,ट्रेन से आई। सारा समय बच्ची की देखभाल में निकलने लगा। ख़ुद भी उसका स्वास्थ्य नहीं सँभला था। उसे भी सहायता की ज़रूरत थी। 

पति का ऑफ़िस सुबह का हो गया था। वे मीनाक्षी से कह देते कि "तुम्हें सुबह उठने की ज़रूरत नहीं है ,मैं सुबह ही सुबह छह -साढ़े छह बजे तक ऑफ़िस निकल जाऊँगा।"

मीनाक्षी ने सोचा कि वह सुबह उठ जाएगी। पर रात को देर से सोने के कारण मीनाक्षी थकी हुई थी , सुबह उसकी ऑंख नहीं खुली। जब उसके पति जाने लगे तो वह उठ गयी और उसने कहा ," कुछ नाश्ता लिया ,कुछ खाया? या साथ में ले जाने के लिए कुछ रख दूँ?" तो वे बोले,"हो गया, सब हो गया", और निकल गये। 

मीनाक्षी को लगा कि," सब कुछ ठीक है ,ये मेरा कितना ध्यान रखते हैं"। पर नहीं,यह ध्यान रखना नहीं था। दो एक दिन बाद ही उन्होंने सुना दिया ,"मैं ऑफिस जाता हूँ ,तुम पड़ी सोती रहती हो, मेरा कुछ ध्यान नहीं रखती"। मीनाक्षी निस्तब्ध थी। तो ये क्या केवल दिखावा था कि तुम्हें सुबह उठने की ज़रूरत नहीं है!

यदि कभी नौकर ने खाना ठीक नहीं बनाया तो डॉंट मीनाक्षी पर पड़ती थी," तुम घर मैं क्या करती रहती हो,खाना भी नहीं देख सकती। और औरतें घर में कितना काम करती हैं। वे ज़रा सी देर के लिए रसोई में जाती हैं और स्वादिष्ट खाना तैयार हो जाता है। तुम खाना भी नहीं बनवा सकती।"

उसके पति बच्चे के पालन पोषण में ज़रा भी हाथ नहीं बँटाते थे , न ही मीनाक्षी की सहायता के लिए कोई था। पति बच्ची की दूध की बोतल भी नहीं पकड़ना चाहते थे। मीनाक्षी को बच्ची का सारा काम ख़ुद ही करना होता था, उसको ज़रा भी अवकाश या आराम नहीं मिल पाता था। पर पति को इससे कोई मतलब नहीं था। उन्हें अपना काम पूरा चाहिए था। 

दिन बीत रहे थे। मीनाक्षी असंतुष्ट हुई जा रही थी यह सुन सुनकर कि दहेज अच्छा नहीं लाई ,घर का काम कुछ नहीं करती हो। जितना भी वह काम करती सब उसके पति के लिए ऊँट के मुँह में ज़ीरा था। वे मीनमेख निकालते ही रहते। कितना भी काम कर दो उनके लिए सब थोड़ा ही था। 

बच्ची के आने से मीनाक्षी का काम बढ़ गया था और उसकी पढ़ाई बिलकुल ही छूट गयी थी। उसके मन में विप्लव हो रहा था , इन जली कटी बातों को सुनने से तो अच्छा है कि अपने पैरों पर खड़ी हो। आत्मनिर्भरता चाहिए ।आर्थिक आत्मनिर्भरता। इनकी दहेज की माँग पूरी हो सके ,पग पग पर उसे प्रताड़ना न सहनी पड़े। पर सबसे पहले पढ़ाई पूरी कर लेना इसके लिये आवश्यक था। बच्ची का काम दिनभर लगा रहता था , सारा टाइम उसके साथ ही निकल जाता था। और तो और जब बच्ची सो जाती तो वह पलंग से गिर न जाए इस डर से उसके पास संभाल के लिए बैठे रहना पड़ता था। पालना था नहीं। ऊँचे ऊँचे पलंग थे पुराने ज़माने के। मीनाक्षी सोचती क्या करूँ ,कैसे पढ़ाई करूं ? ध्यान आया की नौकरानी रख लूँ जो मेरी पढ़ाई के समय बच्ची के पास बैठी रहे। 

 पति से इस बारे में बात की तो बहुत झल्लाए," सब औरतें अपने बच्चों की देखभाल करती है तुम क्यों नहीं कर सकती?"

मीनाक्षी ने समझाया ,"पढ़ाई पूरी करके परीक्षा देना चाहती हूँ"।

तो पति और बिगड़े ,"अब क्या पढ़ाई करोगी। पढ़ाई करके क्या कर लोगी?"

मीनाक्षी का उत्तर था," टीचर बन जाऊँगी स्कूल कॉलेज में पढ़ाऊँगी।।"

तो पति बोले,"तुम्हें नौकरी कौन देगा, जिस सब्जेक्ट में पढ़ाई की है उसमें कहीं नौकरी नहीं मिलती ,इंग्लिश तुम्हारी पूअर है,जनरल नॉलेज ज़ीरो है, तुम क्या करोगी?" 

मीनाक्षी पति की हतोत्साहित करने वाली बातें चुपचाप सुनती रही और पढ़ाई करने का उसका निश्चय और पक्का होता गया। 

दिन किसी तरह बीत रहे थी कि एक चपरासी एक दिन एक बूढ़ी औरत लेकर आया और बोला कि ,"इसे रख लीजिए ,बहुत ग़रीब है ,इसकी कुछ सहायता हो जाएगी और आपका काम कर दिया करेगी ,बच्चा खिलायेगी"। 

अंधे को क्या चाहिए दो आँखें। लगता है कि नियति ही मुझे पढ़ने का मौक़ा दे रही है ,मीनाक्षी ने सोचा। उसने हाँ कह दिया। 

पति बड़बड़ाये," मेरी इतनी तनख़्वाह नहीं है कि मैं एक नौकरानी रख सकूँ।" जब पता चला कि नाममात्र की तनख़्वाह पर वह आने को तैयार है तो चुप हो गए। ख़ैर, वह रख ली गई। 

मीनाक्षी ने भी कह दिया," पढ़ाई पूरी हो गई और मुझे नौकरी मिल गई , तो तुमने जितना ख़र्चा नौकरानी पर किया है ,वह उतार दूंगी "। पति चुप हो गए। 

अब आयी बारी किताबों की ।किताबें कहाँ थीं? एक भी किताब पास नहीं थी। घर में भैया को चिट्ठी भेजकर किताबें पार्सल से मंगवाईं। किसी तरह पढ़ना शुरू किया। पढ़ाई तो शुरू कर दी पर डिक्शनरी नहीं थी। कोई इंग्लिश का शब्द आता जिसका अर्थ पता नहीं होता ,तो कहाँ से देखूँ ,किससे पूछूँ ,कोई बताने वाला नहीं , कोई गाइड करनेवाला नहीं। एक डिक्शनरी की ज़रूरत आन पड़ी ।कैसे मंगाऊँ,कहाँ से लाऊँ ?मीनाक्षी सोचती। 

एक बार बाहर निकले ,बाज़ार तक गए तो मीनाक्षी ने एक किताब की दुकान पर जाकर अच्छी सी कैंब्रिज की डिक्शनरी देखी,जिसका दाम तब सोलह रुपये था। मीनाक्षी ने कहा ," मैं यह डिक्शनरी लेना चाहती हूँ "तो उसके पति बोले "मेरे पास किताबों पर ख़र्च करने के लिए फ़ालतू पैसे नहीं हैं "। 

मीना़क्षी ने कहा," मेरी माँ मुझे जो रुपये पैसे देती हैं, वह मैं आपको दे देती हूँ ,उसी में से दे दो"। फिर भी उसके पति पैसे देने को तैयार नहीं हुए। तो मीनाक्षी को कहना पड़ा ,"मैं पास ज़रूर हो जाऊँगी ,मुझे नौकरी तक भी मिल जाएगी ,तब मैं तुम्हारे पैसे लौटा दूंगी ,उधार ही समझ लो "।बड़ी मुश्किल से मीनाक्षी वह डिक्शनरी खरीद पाई। 

मीना़क्षी मन ही मन विचार करती," डिक्शनरी कैसे आयी यह तो कथा है ही ,छोटी बच्ची के लिए सात रुपये का झुनझुना या रबड़ का खिलौना भी ये ख़रीदने को तैयार नहीं थे। बच्ची के कपड़े ,खिलौने वगैरह जो पास थे, वह सब पीहर से मॉं का भेजा सामान था। यहाँ तक कि उसकी नन्हीं रज़ाई उसकी छोटी दोहर, छोटा तकिया, साइड के दो छोटे लंबे तकिये, छोटा गद्दा सब मॉं के दिये हुए थे। इन पर कोई बोझ नहीं पड़ा। मेरी साड़ी, कपड़े, ज़रूरत का सामान मॉं ही देती थी"। 

 "एक बार बेड कवर का सुंदर सा जोड़ा मॉं ने दिया ,मुझे बहुत पसंद आया ।सोचा कमरे में बेड पर बिछाऊँगी तो कमरा खिल उठेगा पर मॉं के यहाँ से लौटने पर इन्होंने मेरा बक्सा कुरेदा ,तो बेडकवर देखकर ख़ुश होकर दोनों बेडकवर ले लिए। मैं कहती रह गई कि इनका क्या करोगे , कभी मौक़े पर इन्हें निकालेंगे "।पर ये बोले,"नहीं। यह मुझे चाहिए । कार के सीट कवर मैले हो गए हैं ।मैं अपनी गाड़ी की सीट पर इन्हें बिछाऊँगा"।

मीना़क्षी देखती रह गई। मीनाक्षी के लाख मना करने पर भी ये पतिदेव नहीं माने और बेडकवर ले जाकर कार की सीट के आगे पीछे दोनों बिछा दिये। अब लड़ाई तो करी नहीं जा सकती। पत्नी को ही चुप लगा जाना पड़ता है। माँ के यहाँ से लौटने पर मीनाक्षी के पर्स की तलाशी लेकर सारे पैसे निकाल लेते थे ,तो बेड कवर की तो बात ही क्या थी। चुप ही रहना पड़ता था। पति के साथ रहना है तो हर तरह से निभाना है। लड़ाई करके कहॉं जाऊँगी,मीनाक्षी को विचार आते। पीहर जा नहीं सकती, स्वाभिमान कचोटता है। और कहीं रह नहीं सकती। 

बच्ची का पालन -पोषण करना है। सब तरह से हाथ बँधे हुए हैं, सब ओर से द्वार अवरुद्ध हैं। चाहे पति को परमेश्वर मानकर झुके, या अपनी असमर्थता के कारण झुके, या आर्थिक निर्भरता के कारण झुके। झुकना पत्नी को ही है। पति के अलावा और कहीं पत्नी की गति नहीं। समाज ही स्वीकार नहीं करता ।मॉं बाप भी स्वीकार नहीं करते कि कन्यादान कर दी गई कन्या पितृगृह में वापिस आए। पितृगृह को अन्तिम नमस्कार करके निकल जाना पड़ता है, वहाँ की सारी यादों और स्नेह संबंधों को भुलाकर।एकदम निराश्रित होकर। हाथ में कोई आर्थिक स्वतंत्रता नहीं , आत्म निर्भरता नहीं। पतिगृह में नए संबंध जोड़ने पड़ते हैं। वह भी ताने झिड़कियॉं सुनकर।कितने हैं जो इज़्ज़त से रखते हैं?दहेज को लेकर नहीं सुनाते? पत्नी के काम पर आक्षेप नहीं करते?

 आ़क्षेप होता है- स्त्रियों में नॉलेज नहीं होती। स्त्रियॉं अख़बार नहीं पढ़ा करतीं। स्त्रियॉं कार नहीं चलातीं । स्त्रियॉं नौकरी नहीं करती। कितनी वर्जनाएँ हैं स्त्रियों के लिये। उन्हें बस पति की इच्छा पर नाचना पड़ता है, समय असमय उसके ताने, उलाहने सुनने पड़ते हैं। पत्नी निभाये तो निभाये, नहीं तो पति को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। 

 एक बार मीनाक्षी बहिन की शादी में गई।वह दो एक दिन रुकना चाहती थी। माँ ने कहा ,"इसे दो - तीन दिन के लिये छोड़ दीजिए"। तो पति देव का जवाब था,"इसे ज़िंदगी भर के लिए यहीं रख लीजिये"। मॉं चुप रह गईं। बिना पतिदेव की इजाज़त के ,बिना उनकी इच्छा के मीनाक्षी पीहर में रुक भी नहीं सकती थी। कहीं आना जाना नहीं कर सकती थी। पीहर आने जाने का सारा ख़र्चा मॉं को करना होता था,पतिदेव की ज़िम्मेदारी नहीं बनती थी। 

मीनाक्षी ने हज़ारों बाधाओं को पार करके भी पढ़ाई पूरी की ।बहुत ताने सुनने पड़े कि शादी के बाद पढ़ाई नहीं होती, पढ़ाई करनी थी की शादी क्यों की?

 पढ़ाई पूरी करके मीनाक्षी प्रतियोगिता परीक्षा में बैठी और उच्च स्थान प्राप्त कर उच्च पद की नौकरी पाई,जो उसके पति की नौकरी से भी ज़्यादा अच्छी थी।इसी बीच दूसरी बच्ची हो गई थी तो मीनाक्षी नौकरी जॉयन करने में हिचकिचा रही थी पर पति ने ताना मारा कि घर में बैठकर आराम  करने की आदत हो गई है। मीनाक्षी आहत हो गई और उसने नौकरी जॉयन कर ली थी। इस तरह वह आत्मनिर्भर बनी। अपना ख़र्चा खुद संभाला,पति को भी आर्थिक सहायता पहुँचाई। पर ससुराल वालों के ताने सुनने पड़े । ससुर जी ने कहा कि " आप प्रतियोगिता में आ गईं, बहुत बहुत धन्यवाद, अब नौकरी करने की ज़रूरत नहीं है" ।देवर ने कहा ," फ़्री बोर्डिंग लॉजिंग पति से मिल रही है"।सास ने कहा," घर बच्चे कैसे देखोगी"? पति ने कहा," सबकी पत्नियाँ रोज़ पति के लिये खाना बनातीं हैं, तुम मेरा खाना रोज़ नहीं बनाती। पत्नी को पति के पीछे चलना चाहिये, अलग से स्वतंत्र कुछ नहीं करना चाहिये "।पति यह भी बोले,"अब तुम मर्द हो गई हो,अब तुम अपना सब काम स्वयं करो। मैं तुम्हारे साथ क्यों चलूँ ,क्या मैं तुम्हारा चपरासी हूँ?"

कहीं से भी प्रशंसा के शब्द नहीं मिले। प्रशंसा के शब्द मिले तो उन गृहिणियों से मिले जो पति की कंजूसी और मनमौजी से त्रस्त थीं। उन्होंने कहा,"कितनी मुश्किल से हम सब सहकर अपना गुज़ारा करती हैं,हम ही जानती हैं । आपने बहुत अच्छा किया कि पढ़ाई पूरी कर नौकरी कर ली। अब पैसों के लिये पति पर निर्भर नहीं हैं,हमें तो रोज़ ही सुनना पड़ता है कि मैं ही तुम्हें खाना और आश्रय दे रहा हूँ। "

स्वतंत्रता आ गई, सरकार ने स्त्रियों की दशा सुधारने के क़ानून भी बनाये पर समाज की सोच नहीं बदली। घर के काम को लोग काम नहीं समझते, स्त्री के लिए फ़्री बोर्डिंग लॉजिंग मिलना समझते हैं। सन्तान प्रसव के दु:ख को भी नहीं समझते। स्त्रियों को भी शिक्षा,समता और समान अधिकार मिलें तभी सच्ची स्वतंत्रता है। 



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