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Chandra prabha Kumar

Action Inspirational

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Chandra prabha Kumar

Action Inspirational

गरुड़ और जन्मभूमि

गरुड़ और जन्मभूमि

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गरुड़ विष्णु भगवान् के वाहन हैं। गरुड़ पर बैठकर ही विष्णु भगवान् कहीं आते जाते हैं । विष्णु भगवान् के साथ उनकी दो पत्नियॉं लक्ष्मी देवी और भूदेवी हैं। 

कथा आती है कि एक बार गरूड़ जी ने कृष्ण भगवान् से अपने घर जाने के लिए छुट्टी माँगी। भगवान को आश्चर्य हुआ कि आख़िर छुट्टी लेकर गरूड़ जाएँगे कहाँ ?

“गरुड़ जाओगे कहॉं ?” उन्होंने गरुड़ से पूछा। 

गरुड़ ने कहा-“ भगवन्! मैं अपने घर जाना चाहता हूँ। बहुत दिनों से घर नहीं गया। बहुत याद आ रही है। “

भगवान् भला क्या कहते, कैसे मना करते,गरुड़ उनके प्रिय वाहन हैं। उन्होंने गरुड़ जी को छुट्टी दे दी। छुट्टी पाकर गरुड़ जी प्रसन्नता से उड़ चले। 

इधर भगवान् ने सोचा कि-“गरुड़ जी कहॉं गये हैं जाकर देखना चाहिये।” वे भी चुपके चुपके गरुड़ जी के पीछे चल दिये। 

गरुड़ जी उड़ते उड़ते दूर जाकर एक वृक्ष की डाल पर बैठ गए। वह वृक्ष सूख चुका था, उसके सब पत्ते झड़ चुके थे। केवल पत्र पुष्प हीन डालियॉं और कोटर शेष था। गरुड़ जी कभी उड़कर एक डाल पर बैठते, कभी दूसरी डाल पर जाते, कभी कोटर के आस-पास चक्कर लगाते। वे उस सूखे पेड़ पर बैठकर भी परम प्रसन्न दिख रहे थे। भगवान् विष्णु के पास वैकुण्ठधाम में गरुड़ जी को किसी चीज़ की कमी नहीं थी, पर यहॉं आकर जितने खुश वे दिख रहे थे। उतने कभी नहीं दिखे थे। 

भगवान विष्णु से नहीं रहा गया, वे गरुड़ जी के सामने प्रकट हुए और बोले-“ तुम यहॉं आने के लिये ही छुट्टी माँग रहे थे। यह पेड़ तो हरा- भरा भी नहीं है, इसमें फल भी नहीं हैं, छाया भी नहीं हैं। फिर भी तुम यहॉं आकर खुश हो, क्या कारण है। “

गरुड़ जी ने कहा-“ हॉं भगवन् ! मैं यहॉं आकर बहुत खुश हूँ। यह मेरा जन्मस्थान है। एक समय यह पेड़ हरा- भरा था, यहीं मेरे माता- पिता का घोंसला था, इसी के कोटर में मेरा जन्म हुआ था। यहीं पाल- पोस पाकर मैं बड़ा हुआ। इसे मैं कैसे भूल सकता हूँ, यह मेरे बचपन का विहार - स्थल है। यहॉं आकर मेरा बचपन और पुराने दिन लौट आते हैं। मैं उनकी स्मृतियों में खो जाता हूँ। यह स्थान मुझे बहुत प्रिय है।”

 “ जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”। यह सुनकर विष्णु भगवान् के नेत्र भी सजल हो गये। सच ही है जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। इसकी तुलना जगत् में कहीं नहीं है। 

अपनी जन्मभूमि के लिये ही सैनिक रक्षा करते हैं, अपने प्राण तक न्योछावर कर देते हैं। देश भक्त देश पर क़ुर्बान हो जाते हैं। उसकी उन्नति के लिये प्रयत्नशील रहते हैं। गरुड़ की इस कथा से जन्मभूमि के लिये उनके प्यार का दिग्दर्शन होता है।ऐसे ही सोने की लंका जीतकर भी श्रीराम के मन में अयोध्या बसी है। वे वैकुंठ से भी ज़्यादा अयोध्या कोप्यार करते हैं और कहते हैं-“ जद्यपि सब बैकुंठ बखाना…अवधपुरी सम प्रिय नहीं सोऊ।”


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