Chandra Prabha

Drama

4.3  

Chandra Prabha

Drama

स्नेह पिता का

स्नेह पिता का

6 mins
1.8K


काफी समय बाद महेन्द्र भाई से मिलना हुआ। वे बहुत हँसमुख और बातूनी थे। उनके आते ही वातावरण ख़ुशनुमा एवं हल्का हो जाता था। बरसों बाद उनसे मिलना हुआ। कभी बचपन में मिले थे। फिर अपने अपने गृहस्थी के कामों में फँस गये। बीच में समाचार मिलता रहा, पर मिलना नहीं हु आ। 

हम भी रिटायर होकर एक जगह कोठी बनाकर रहने लगे। वे एक बार इधर आये तो हमसे भी मिले। आकर पिछली बातें बताने लगे। कहने लगे-'अब तो तुम बहुत बोलने लगी हो, बचपन में चुप रहती थी।'

मैं क्या कहती। मन ही मन कहा-'बचपन में सब लोगों से घर भरा था, बहुत लोग बात करने वाले थे, यहॉं मैं अकेली ही स्वागत करने को थी तो बोलना तो पड़ता ही। अभी भी ज़्यादा बोलने की आदत नहीं है। '

वह कहने लगे-'जब तुम्हारी हाईस्कूल में फ़र्स्ट डिविज़न आई थी, ताऊजी बहुत ख़ुश हुए थे, उन्होंने एक हंडिया भरकर लाल रसगुल्ले हमारे पास भिजवाये थे तुम्हारे पास होने की खुशी में। वे बहुत चाहते थे कि तुम्हारी फ़र्स्ट डिविज़न आये और तुमने फ़र्स्ट डिवीजन पा ली। '

उनकी बातें सुनकर बहुत अच्छा लगा। मुझे इस बात का पता नहीं था कि बाऊजी ने मेरे प्रथम श्रेणी में पास होने की खुशी में महेन्द्र भाई के घर रसगुल्ले भिजवाये थे। महेन्द्र भाई के पिता जी को हम लोग चाचा जी कहते थे, वे हमारा मॉंजी अर्थात् दादीजी के भतीजे थे, और इस नाते वे हमारे चाचा जी थे और उनके बेटे महेन्द्र भाई थे। उनसे इस तरह नज़दीक का रिश्ता था। महेन्द्र भाई तो बात करके चले गये। मुझे कुछ रुपये भी दे गये कि'बहन के घर आया हूँ पहली बार'। मना करने पर भी नहीं माने। 

वातावरण को ख़ुशनुमा बनाकर, अपनी बातों से पुलकित कर वे तो चले गये, पर उनके जाने के बाद मैं बहुत देर तक सोचती रही बाऊजी के बारे में ।अब तो बाऊजी नहीं रहे। मेरे हाईस्कूल पास करने के कुछ दिनों बाद ही वे नहीं रहे थे। जब मैं हाईस्कूल में थी, तभी से वे बीमार थे, हार्ट अटैक आया था। कमजोर हो गये थे। उस समय हार्ट अटैक का इतना अच्छा इलाज भी नहीं था। मूली का जूस,गाजर का जूस, कुछ दवाएँ और क्या क्या तो उनको दिया जाता था। पर कुछ लाभ होता नहीं दीखता था। वे पलंग पर लेटे रहते थे। हमारी मॉं हमको बाऊजी के पास बैठने को भेजती थीं। हम भाई बहिनों में से कभी कोई जाकर बैठता था कभी कोई। कभी मैं जाकर बैठती थी। जब मैं जाती तो हाथ में कोई किताब या पत्रिका रहती और उसे बैठकर पढ़ती रहती। बाऊजी कुछ नहीं पूछते थे। फिर मेरी दसवीं की बोर्ड की परीक्षाएँ शुरू हो गईं। 

 एक दिन मैं बाऊजी के पलंग के पास नीचे बिछे क़ालीन पर उलटे लेटकर कोई पत्रिका पढ़ रही थी। बाऊजी ने पूछा-"तुम्हारी। परीक्षा शुरू हो गई ?" 

मैंने कहा-"हॉं"

वे बोले-"अब कब पेपर है ?"

मैंने कहा-" सोमवार को पेपर है। "

तो वे बोले-" सोमवार को पेपर है और तुम क्या पढ़ रही हो ?"

मैनें कहा-" 'धर्मयुग' है, नया आया है। "

बाऊजी बोले-"इम्तहान की तैयारी क्यों नहीं कर रही हो?हम सबसे कहते हैं कि तुम बहुत होशियार हो। अच्छी डिवीजन नहीं लाओगी तो कैसा लगेगा। अपने पेपर की तैयारी करो। 'धर्मयुग ' तो बाद में भी पढ़ लोगी। "

मैं क्या कहती। बात सच थी। मैं इम्तहान कभी भी गंभीरता से नहीं लेती थी। मेरा उपन्यास पढ़ना या पत्र - पत्रिकाएँ पढ़ना कभी नहीं छूटता था। 

मैने कहा-"सोमवार को ड्राइंग का पेपर है। उसमें मैं क्या पढ़ूँ,क्या करूँ, मेरी समझ में कुछ नहीं आता। उसमें पढ़ने को क्या है। "

बाऊजी ने कहा-"ड्राइंग की ही प्रैक्टिस करो "

मैनें कहा-"मुझे नहीं पता क्या करना है"।

बाऊजी ने लेटे लेटे ही कहा- मैं सनातन धर्म कॉलेज केआर्ट के मास्टर पन्नालाल जी को बुलवा देता हूँ। वे तुमको ड्राइंग के बारे में समझा बता देगें"। 

मैं गर्ल्स स्कूल में पढ़ती थी ,वहॉं लेडी आर्ट टीचर थीं। पन्नालाल जी क्या बतायेंगे ड्राइंग में, मैंनें सोचा। फिर भी मैं चुप रही। सोचा-" बाऊजी कह रहे हैं, तो देखते हैं कि पन्नालाल जी क्या बतायेंगे"। इससे पहिले मैंने न उनका नाम सुना था, न देखा था। 

 बाऊजी ने पन्नालाल जी को बुलवा दिया तभी। वह दिन शनिवार था। दूसरे दिन रविवार। और सोमवार को ड्राइंग का पेपर ही था। 

पन्नालाल जी आये। वृद्धावस्था को छूती उम्र थी,लम्बी दाढ़ी अधपकी सी; काले केशों के साथ सफ़ेद केश भी थे। सिर के बाल उड़े-उड़े से, चॉंद दीख रही थी। धोती कुर्त्ता पहने  हुए। 

उन्होंने आकर मेरा ड्रॉइंग की कॉपी ली, रंग लिये, ब्रश लिये, पेन्सिल ली। कॉपी पर पेन्सिल से षट्कोण में एक गुलाब का फूल बनाया, उसमें बहुत सुन्दर गुलाबी रंग भरे, बहुत अच्छा शेड दिया, मुझे शेड करना बताया। उसकी टहनी बनाई, पत्ते बनाये। 

मैंनें कहा-" इस गुलाब के फूल से मैं क्या बनाऊँगी ?डॉइंग के पेपर में तो त्रिकोण में या गोल घेरे में या चतुर्भुज में कोई डिज़ाइन बनाने के कहा जायेगा। "

 पन्नालाल जी ने समझाया-"इसी फूल को तुम सब तरह से इस्तेमाल कर सकती हो। "

 उन्होंने उसे त्रिकोण में, चौकोर में,गोल घेरे में फ़िट करके दिखाया। फिर लम्बे से बॉर्डर में फ़िट किया। 

उन्होंने कहा-"जो भी आकृति या शेप देनी हो, इसी फूल से दे देना। "

कैसे वह तिकोने में, चौकोर में , गोल में या षट्कोण में बनाना है यह भी दिखा दिया। 

 फिर बोले-"आज इस फूल पर रंग भरने की प्रैक्टिस करो, कल आकर देखूँगा। "

    उन्होंने षट्कोण में एक फूल बनाया था। उसके बाक़ी के पॉंच कोनों में फूल बनाकर मुझे रंग भरना था, शेड देना था। मैं मेहनत से फूल बनाने व रंग भरने में जुट गई। 

वे इतवार को भी आए। मेरे बनाये फूल देखे, ख़ुश हुए और फिर एक बार शेड देने की टैक्नीक समझाई। मेरा भी फूल सुन्दर बन गया। वे चले गये। 

मैं दूसरे दिन पेपर देने पहुँची। वहॉं आया था कि त्रिकोण में कोई डिज़ाइन बनाओ। मैंने गुलाब का फूल बनाकर उसमें शेड कर दिया। 

ड्रॉइंग में नम्बर अच्छे नहीं मिलते थे। मैं भी ड्रॉइंग की तरफ़ से लापरवाह थी। 

पर बाऊजीने पन्नालाल जी को बुलाकर बहुत सहायता करा दी। उन्होंने ड्रॉइंग का मेरा डर दूर किया और आत्मविश्वास दे दिया। 

जब रिज़ल्ट आया और मेरी मार्कशीट आई तो देखा कि ड्रॉइंग में बहुत अच्छे नम्बर थे फ़र्स्ट डिवीजन से भी ज़्यादा। यदि ड्रॉइंग में इतने अच्छे नम्बर नहीं आते तो मेरी फ़र्स्ट डिवीजन हाईस्कूल में नहीं आती। ड्रॉइंग के नम्बरों ने ही और नम्बरों की कमी पूरी कर दी। 

मेरी फ़र्स्ट डिवीजन का श्रेय बाऊजी को था। बाऊजी ने बीमार होते हुए भी, बिस्तर पर पड़े पड़े भी मेरा इतना ख़्याल रखा और ड्रॉइंग मास्टर जी को बुलवा दिया। ड्रॉइंग मास्टर पन्नालाल  जी ने इतना अच्छा रंग भरना व गुलाब का फूल बनाना सिखा दिया। 

बाऊजी ने उस बीमारी में भी मेरी फ़र्स्ट डिवीजन आने की खुशी में मिठाई बँटवाई; यह बात मुझे उस घटना के इतने वर्षों बाद पता चली महेन्द्र भाई से। बाऊजी के प्यार की व संभाल की याद आते ही मेरे नेत्र गीले हो गये, हृदय भर आया। मैं कितनी लापरवाह थी और बाऊजी ने कितनी संभाल की। एक बार भी मुझे यह पता नहीं लगने दिया कि मेरी प्रथम श्रेणी में उनका ही योगदान था; मेरी ही तारीफ़ करते रहे कि "मेरी बेटी बहुत होशियार है पढ़ाई में। "

पिता का वात्सल्य क्या था यह उस समय पता नहीं चलता। बाद में पता चलता है, तब समय नहीं रहता कृतज्ञता ज्ञापित करने का। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama