विचार की शक्ति
विचार की शक्ति
रजनी प्रान्तीय सिविल सर्विस,ज्यूडिश्यरी की तैयारी कर रही थी पर मुश्किल पड़ रही थी। क्योंकि लॉ का पूरा दो साल का कोर्स कवर करना था,साथ ही जनरल नॉलेज एवं जनरल साईंस भी थी, जबकि स्कूल कॉलेज में साइंस कभी पढ़ी नहीं थी। लॉ कैसे पूरा किया था, इसकी भी एक कहानी थी।
तब लॉ का दो साल का कोर्स होता था और शाम के समय 5 बजे से 7 बजे तक दो घंटे की क्लास होती थी। जब लॉ का पहला साल किया तो कॉलेज जाकर किया। जब इम्तहान दे रही थी, तभी शादी तय हो गई। इधर घर में शादी की तैयारी थी, शामियाना तन गया था और रजनी इम्तहान देने जा रही थी, इस सबसे असंपृक्त। लग रहा था कि किसी और की शादी ही रही है,उसी की तैयारी है। वह बड़े निर्लिप्त भाव से देख रही थी और अपनी पढ़ाई में इम्तहान देने में मग्न थी। तैयारी ठीक नहीं हुई थी। किसी तरह इम्तहान दे दिया। भाई ने कुछ मुख्य प्रश्न तैयार करने को कहे थे,उन्हें तैयार किया और वे ही आ गये। किसी तरह पास हो गई।
भाई परेशान थे कि पता नहीं बहिन पास होगी या नहीं, और बड़े भाई से यह बात कही। बड़े भाई ने कहा था कि वह तुम नहीं हो,बहिन है ज़रूर पास होगी। और वह पास हो गई थी।
उसके बाद शादी होकर चली गई। लॉ का दूसरा साल रह गया। एक बेटी भी हो गई शादी के एक साल के अन्दर। रजनी ने सोचा कि अब लॉ कैसे पूरा होगा ? लॉ प्राईवेट नहीं होता था। पर जहॉं कॉलेज से लॉ का पहला साल किया था, वहॉं रुटीन में ही दूसरे साल में नाम लिखा गया था। अलग से कुछ नहीं करना पड़ा था। रजनी को इस बारे में कुछ पता नहीं था। न किसी ने कुछ कहा।
दशहरे पर कुछ दिनों के लिये रजनी पीहर आई, तब भैया ने बताया कि 'लॉ के दूसरे साल में तुम्हारा नाम लिखा गया है, वहॉं के प्रोफ़ेसर बार बार कह रहे है कि तुम कॉलेज जाओ। '
रजनी ने कहा,'अब कैसे जाऊँगी ? हाजरी पूरी कैसे होगी ?'
भैया बोले,'तुम हाजरी पूरी होने की चिन्ता मत करो। वह प्रोफ़ेसर देख लेंगे। पर तुम कॉलेज चली जाओ,चाहे एक दो दिन के लिये ही जाओ। जाकर शक्ल दिखा आओ।'
रजनी दो तीन महीने की गर्भवती थी। ख़ैर वह कॉलेज गई। मुश्किल से तीन- चार दिन गई। फिर वह वापिस चली गई। कॉलेज जाना ख़त्म हो गया। गृहस्थी का रुटीन चलने लगा।
कुछ अन्तराल के बाद भैया की चिट्ठी आई,"तुम लॉ की तैयारी कर लो, तुम्हारी हाजरी पूरी करा दी है"। रजनी के पास किताबें नहीं थीं,उसने किताबें भेजने के कहा। उन्होंने लॉ की किताबें पार्सल से भिजवा दीं।
किताबें तो आ गईं, पढ़ना भी शुरू किया, परीक्षा की तारीख़ भी आ गई। तैयारी भी अच्छे से पूरी नहीं थी। पर रजनी इम्तहान देने पहुँच गई।लगता है कि भगवान् की कुछ और ही मंज़ूर था, वे उसे असफल नहीं देखना चाहते थे। पेट में दर्द के कारण उसे लौटना पड़ा।
तुरन्त अस्पताल पहुँचना पड़ा। रजनी के सुन्दर सी बेटी हुई। बड़ी बड़ी आॉंखें थीं, उनमें अॉंसू !पैदा होते ही दो घंटे की बच्ची की अॉंखों में अॉंसू ! बच्ची को गोद मे लिया। बच्ची लेकर फिर गृहस्थी मे लौटना पड़ा। अब लॉ करने का इरादा छोड़ देना पड़ा। वह बेटी पाले, घर देखे या लॉ करे? देखते देखते एक साल निकल गया। बेटी एक वर्ष की हो गई।
एक बार परिवार के एक मित्र के यहॉं मिलने गए। उनकी पत्नी रजनी से बोली,"तुमने लॉ किया था,दूसरा साल नहीं करोगी ? "
रजनी ने कहा,"कैसे करूँ ? अब पढ़ाई कैसे होगी ? लॉ प्राइवेट नहीं होता"।
वे बोलीं, " तुमने दूसरे साल तो कॉलेज में एडमिशन लिया था, इम्तहान नहीं दे पाईं। उसी हाज़िरी पर दूसरे साल बैठ सकती हो, मालूम करो। तुम लॉ पूरा कर लो, पढ़ाई हमेशा काम देती है कुछ काम करो या न करो।"
उनकी ये बात सुनकर अच्छा लगा, कुछ आशा बँधी। रजनी ने यूनिवर्सिटी को चिट्ठी लिखी कि ऐसे ऐसे परीक्षा में नहीं बैठ पाई, अब उसी बेसिस पर क्या इस साल परीक्षा में बैठ सकती हूँ ?
वहॉं से स्वीकारात्मक जवाब आ गया, साथ ही एग्ज़ाम में बैठने का एडमिट कार्ड आ गया। अब रजनी को तैयारी करनी थी पर टाइम कम था। बच्ची छोटी थी गृहस्थी की ज़िम्मेदारी थी। फिर भी भगवान् का नाम लेकर रजनी ने पढ़ाई शुरू कर दी। और इम्तहान दे दिया।
भगवान् ने सुन ली, एक्जाम पास कर लिया। और लॉ की डिग्री हाथ में आ गई थी।
रजनी प्रांतीय सिविल सर्विस के कॉम्पिटिशन की तैयारी में लगी तो थी, बार बार बार मन में आता था कि "आऊँगी कैसे ? लॉ के दूसरे साल की पढ़ाई कॉलेज में नहीं की, एक तरह से प्राइवेट ही पढ़ाई करके इम्तहान दिया, बिना किसी सहायता के, केवल भगवान् के भरोसे ।भगवान् ने प्रार्थना सुनी, मैं सेकेण्ड डिविज़न से पास हो गई। सेकेण्ड डिवीज़न वाला कॉम्पिटिशन में कैसे आएगा? इतने लोग कसकर पढ़ाई करके फ़र्स्ट डिवीज़न लेकर इम्तिहान में बैठेंगे, केवल इस बार 3 सीटें हैं, कैसे आ पाऊँगी"। रजनी हिम्मत हारने लगती।
तभी रजनी को ख्याल आया, "भैया कह रहे थे कि उनका एक मित्र सेकेंड डिवीज़न में लॉ पास करके भी मुंसिफी में आ गया था। जब वह आ गया था, तो मैं क्यों नहीं आ सकती, मेरा भी तो सेकेंड डिवीज़न है। "
फिर वह सोचती, " हर साल चौदह-पंद्रह रिक्त स्थान निकलते हैं, इस बार तो केवल तीन ही हैं, कैसे आऊँगी"।
रजनी ने कहीं पढ़ा," There is always place on the top'(शिखर पर हमेशा जगह है)। तो उसने यही मंत्र अपना लिया की टॉप पर हमेशा जगह रहती है।
बार बार रजनी अपनी सेकेंड डिवीज़न का ख्याल मन से निकाल देती और सोचती कि "जब भैया का वह फ्रेंड सेकेंड डिवीज़न लेकर सर्विस में आ सकता है तब मैं क्यों नहीं आ सकती। सेकेंड डिवीज़न से क्या, अब पढ़ाई कस कर करनी होगी। फिर बचपन से अच्छी पढ़ाई की है, उसका लाभ मिलेगा"। इसी तरह रजनी अपने मन को धैर्य बँधाती और भगवान् से प्रार्थना करती-
" राम नाम मणि विषय व्याल के,
मेटत कठिन कुअंक भाल के।
मोरि सुधारिहु सो सब भॉंती,
जासु कृपा नहीं कृपा अघाती।।
रजनी की मेहनत सफल हुई। भगवान् ने उसकी सुन ली। वह कॉम्पिटिशन में आयी और टॉप करके आयी। हमेशा शिखर पर जगह रहती है, यह बात पूरी हुई।
रजनी खुश थी। जब भैया से मिली, वे उसकी सफलता से ख़ुश थे, रोमांचित थे।
रजनी ने भैया से कहा, "भैया ! मुझे प्रेरणा मिली तो एक बात से कि जब आपका मित्र सेकेंड डिवीज़न लाकर प्रान्तीय सिविल सर्विस में आ गया तो मैं क्यों नहीं आ सकती। "
भैया पूछने लगे,"किसकी बात कर रही हो? कौन सा मित्र ? "
रजनी ने नाम बताया, तो वह बोले,"वह तो उस सर्विस में नहीं आ पाया था। तुम्हें ग़लत खयाल रहा। "
ख़्याल रजनी को ग़लत रहा, पर उसी ख़्याल ने उसे हिम्मत दी, सफलता दिलाई।
हर समय सफलता की सोचोगे, तो सफलता अवश्य मिलेगी। जैसा मन वैसी बुद्धि वैसी सृष्टि।