इन्हीं गलियों में भीख मांग कर मैं बड़ा हुआ इन्हीं गलियों में भीख मांग कर मैं बड़ा हुआ
लेखक: अलेक्सांद्र रास्किन ; अनुवाद : आ. चारुमति रामदास लेखक: अलेक्सांद्र रास्किन ; अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
बहुत बढ़िया कैरियर पति के कहने पर छोड़ा पर वही शायद जीवन की सबसे बड़ी गलती थी। बहुत बढ़िया कैरियर पति के कहने पर छोड़ा पर वही शायद जीवन की सबसे बड़ी गलती थी।
मैं भी अपनी तमाचे खाई सोच को संभालता-सहलाता आगे बढ़ गया। मैं भी अपनी तमाचे खाई सोच को संभालता-सहलाता आगे बढ़ गया।
वक़्त और लफ्जों के खेल वक़्त और लफ्जों के खेल
शिरीष -सुजाता को पंख उग आए थे। खुशियों के आसमान में उन्मुक्त उड़ते दोनों प्रेम पंक्षी दुनियादारी से ब... शिरीष -सुजाता को पंख उग आए थे। खुशियों के आसमान में उन्मुक्त उड़ते दोनों प्रेम पं...