एसिड
एसिड
" राहुल, तुम जानते हो कल जब नेहा कॉलेज से घर जा रही थी।" प्राची ने भारी आवाज के साथ कहा।
" तब उस पर विशाल और उसके कुछ दोस्तों ने एसिड फेंक दिया। ये सब रोज का हैं, अब हर बार जरूरी तो नहीं कि लड़कों को कोसा जाए।" मैंने बिना चेहरे पर शिकन लाए कहा।
प्राची के कदम अचानक रुक गए।
" हाँ, गलती तो नेहा की ही थी। बेचारा विशाल ! उसने तो कितनी मासूमियत के साथ उसे पूरी कॉलेज के आगे प्रपोज किया था, लेकिन गलत तो नेहा थी जिसने इनकार कर अपने कैरियर पर फोकस करना चाहा। अपने माँ-बाप के सपनो को पूरा करना चाहा। एक मिनट, शायद गलती तो उसकी ये भी थी कि वो पैदा हुई, पढ़ाई-लिखाई के लिए घर से बाहर निकली। है ना, यही कहना चाहते हो ना तुम।" प्राची ने दुख और गुस्से के मिश्रित स्वर मेंं कहा।
" तुम गलत समझ रही हो.. मेरा वो मतलब नहीं था।" मैंने कहा। मैं नहीं चाहता था कि बीच कॉलेज कैंपस में कोई तमाशा हो और सभी प्रोफेसर्स और स्टूडेंट्स को मेरे ऊपर हंसने का मौका मिले।
" क्या मतलब था फिर तुम्हारा ?"
" आई मीन हो सकता है विशाल उससे सही में सच्चा प्यार करता हो, और नेहा कि रिजेक्ट कर देने से उसे झटका लगा हो और गुस्से में उसने ये सब कर दिया हो।"
" ओ सच्ची मुहब्बत ! रियली ! फिर तो नेहा को अब अपनी गलती सुधारनी चाहिए। विशाल तो उससे सच्ची मुहब्बत करता हैं ना। फिर तो वो अब इस हालत में भी नेहा को अपना लेगा। उसके जल चुके चेहरे से उसे अब भी प्यार होगा। वो अब भी उन आँखों में डूबना चाहेगा जो कि एसिड से गलकर अंदर धंस चुकी हैं। क्योंकि वो तो उससे सच्ची मुहब्बत करता हैं ना। कितना शानदार तोहफा दिया हैं उसने नेहा को ! वाह !" प्राची ने एक सांस में कह दिया। उसकी आवाज में गुस्सा साफ झलक रहा था।
" अरे तुम।"
" हाँ, बोलो न। क्या हुआ ? कितने शानदार तरीके से उसने अपनी मुहब्बत का इजहार किया हैं। अब तो वो नेहा से शादी करेगा। उसकी जिंदगी संवारेगा। है ना ? अब तो वो एक एसिड का तालाब बनवायेगा, और उसमें कूदेगा क्योंकि इससे तो उनका प्यार और भी मजबूत होगा। है ना।" प्राची ने वैसे ही गुस्से मेंं ऊँची आवाज के साथ कहा।
" देखो अब एक शब्द और नही सुनूँगा मैं तुम्हारी। मंगेतर हो तो वही बनकर रहो, ज्यादा सर पर मत चढ़ो।" मैंने गुस्से में तिलमिलाते हुए कहा, आखिर वो एक लड़की होकर मुझसे ऊंची आवाज में बात कर रही थी। एक नारी, वहीं नारी जिसे हमारे शास्त्रों में पशुओं-शुद्रों की श्रेणी में रखा गया है, मुझे यानी कि एक पुरुष को गलत साबित करने की कोशिश कर रही थी। मैं इसे कैसे सहन करता ?
" मंगेतर हूँ नही थी, मैं किसी भी कीमत पर तुम्हारे जैसी घटिया सोच वाले इंसान से शादी नहीं कर सकती हूँ।"
" तुम एक अनजान लड़की के ऊपर मुझसे रिश्ता खत्म कर रही हो ?"
" रिश्ता लड़की की वजह से नहीं बल्कि तुम्हारी घटिया सोच की वजह से टूटा है और फिर इसमेंं तुम्हारा दोष नहीं हैं। तुम इस बात को कभी समझ ही नहीं सकते। तुम्हें ये बात जरूर समझ में आती अगर नेहा तुम्हारी बेटी होती और फिर उसे विशाल जैसा आशिक मिला होता।" इतना कहकर प्राची ने सगाई वाली रिंग उंगली से निकाल कर मेरे ऊपर फेंकी और पलट कर वापस कैंपस से बाहर जाने वाले कॉरिडोर की ओर मुड़ गई। मैं भी अपनी तमाचे खाई सोच को संभालता-सहलाता आगे बढ़ गया।