डॉट डॉट डॉट…
डॉट डॉट डॉट…
आज मॉर्निंग में उनसे मुलाक़ात हो गयी।यूहीं…एकदम अचानक…
मुझे क्योंकि ऑफ़िस जाने की जल्दी हो रही थी तो मैंने उनको कहा, "शाम को मिलते है…वापस ऑफ़िस से आने के बाद…विल कॉल यू इन द इवनिंग…"
"ओके… ओके… यस…यस…"
शाम को ऑफ़िस से आकर मैंने उनको फ़ोन किया। यस…जस्ट कमिंग…प्लीज़ शेयर द लोकेशन वन्स अगेन…
मैंने लोकेशन शेयर कर दी। वह आ गये। 'कैसे है? कब आये' जैसे सवालों से हमारी बातें शुरू हो गयी। मुझे उनकी बातें सुन कर लगता है की इस व्यक्ति को कहने के लिए बहुत कुछ है…वह कहना भी चाहते है…लेकिन कह नहीं पा रहे है... पिछली बार भी कुछ ऐसी ही कश्मकश में थे। इस बार वह अपनी माँ के बारे में बात कह रहे थे की माँ को मेरी चिंता होती है…लेकिन वह कुछ आधा अधूरा बोलकर बड़े ही सफ़ाई से विषय बदल रहे थे। "माँ की बुराई करना नहीं चाहता हूँ लेकिन थोड़ी ही देर में वापस उसी टॉपिक पर आकर माँ की कोई बात है… मैं आपको शेयर करना चाहता हूँ... " कहते हुए रुक भी रहे थे…मैंने कुछ सेंस करते हुए कहा, "माँ के बारे में कुछ ना कहिए। पता भी नहीं होता है की उन्होंने ख़ुद को भूखा रखकर आपको दूध पिलाया होगा। खुद गीले में सो कर आपको सूखे में सुलाया होगा... "
फिर वही कुछ आधी अधूरी बात करके फिर विषय बदल रहे थे। बीच बीच में वह यह भी कह रहे थे की मैं उनकी बात नहीं करना चाहता… फिर अपनी बात को जस्टीफ़ाइड करते हुए कुछ और बात कह रहे थे क्योंकि उनकी बातों में बहुत सी बातें थी.... उनकी कुछ उलझन होगी... लेकिन माँ के बारें में किसे कहे? कैसे कहे? मैं उनकी उलझन को समझ रही थी...
चाय आ गयी... गर्म गर्म पकौड़ें भी थे... मैंने कहा, "चलिए,चाय लेते है... कुछ बातें अपना वक़्त लेती है..." "यस…यस…"थोड़ी ही देर और उनसे इसी तरह की कुछ बातें करके वह चले गए।
मैं ख़ामोशी से सोचने लगी की दुनिया की सभी माँओं ने बचपन में हमे न जाने कितनी कहानियाँ सुना कर सुलाया है... और अब बड़े होकर हम कैसे उस माँ को और उसकी तमाम बातों को झुठला देने की कोशिश करते है।
अपनी ईगो में आगे बढ़कर हम अपने क़रीबियों से कहने लगते है की "तुम खरगोश पर ही भरोसा करना, कछुए तो सिर्फ़ किताबों में ही जीतते है…"
