हिसाब किताब
हिसाब किताब
"अरे, आप खेत में क्या कर रही हैं?" "कुछ नहीं , मैंने सोचा की कपास निकालकर देखूँ।"
"हाँ, हाँ…क्यों नहीं? अरे, दीदी, आप तो वहाँ ऑफिस में काम करने वाली बड़ी अफ़सर हो… आप को क्या? रहने दीजिए, आप अमरूद खाइए आराम से बैठकर… हम कर लेंगे।" वह हँसते हुए कह रही थी। "अरे, मुझे कर के देखना हैं यह काम। अच्छा बताइये, आप कितना कपास निकाल लेती हैं एक दिन में? " मैं अपने खेत में काम करती हुयी औरत से पूछने लगी।
"मैं यही कोई 40-50 किलो तक निकल लेती हूँ। कभी कभी 60 किलो भी हो जाता हैं।" मैंने कहा, "एक दिन की बात कर रही हूँ मैं।" उसने कहा, "हाँ दीदी, मैं भी एक दिन का ही बता रही हूँ।" मैं वंडर होते हुए कहने लगी, " अरे बाप रे।अच्छा हैं आपका काम। मैं तो थोड़ा कपास निकालते ही कमर दर्द की बातें करने लगती हूँ…""दीदी आपको आदत नहीं हैं… आप पढ़ी लिखी हों और अच्छी नौकरी करती हों…"मैंने कहा, "मैं उधर जाकर करती हूँ …आप इधर का कपास निकालना शुरू करो। आपको कोई प्रॉब्लम नहीं होगा।""अरे, नहीं साथ साथ करते हैं। आप एक लेन कीजिए, मैं इधर करती हूँ… बातें करते हुए करेंगे।"
थोड़ी ही देर में वह मेरे कपास निकालने के तरीके को देखकर वह कहने लगी, " ऐसा नहीं करते। दूसरे हाथ में नहीं रखो, हाथ में रखी बैग में सीधे डालने से ज़्यादा काम होगा…और जल्दी भी होगा।"
मैं उसकी बातों से समझ गई, इसमें भी टेक्निक हैं…
थोड़ी ही देर में मैं कमर दर्द के मारे जितना भी हुआ कपास लेकर आ गयी। शायद 1-2 किलो ही हो गया होगा।
शाम को वह ढेर सारा कपास एक गठ्ठर में बाँध कर आ गयी। मुझे देख कर वह तौलने की बात करने लगी। कपास का पूरा वेट 60 किलो था। मुझे वंडर हुआ कि मेरे से 2 किलो भी नहीं हुआ और इसने 60 किलो कपास निकाल लिया…मैंने कहा, "लिख लेती हूँ। पैसे अभी देने हैं?" उसने कहा, "लिख लीजिए, बाज़ार वाले दिन ले लूँगी।"
वह चली गयी कहते हुए की घर में बच्चें इंतज़ार कर रहे होंगें और आज मेहमानों ने भी आना हैं…
बाज़ार वाले दिन सभी को पेमेंट करना था।कपास निकालने वाली, धान काटने वाली और खेत में काम करनेवाले मजदूर इन सभी को पेमेंट होना था।
सब के साथ वह भी आयी…पैसे देने के लिए उन सभी का हिसाब देखा। कपास निकालने वाली का इतने दिन लगातार 50-60 किलो निकालते निकालते अच्छी खासी रकम हो गयी थी।
मैं ठहरी एक शहरी… हर चीज़ का हिसाब किताब करनेवाली… हर चीज़ को अपने फायदे के लिए सोचने वाली…मैंने कहा, " तुम्हारा हिसाब यहाँ लिखा हैं। देखो एक हफ़्ते में तक़रीबन 385 किलो हो गया। 385 को 10 से गुना करने पर टोटल हो गया 3850 रुपये… वह खुश हो गयी।
"लेकिन तुम ने जो कपास निकाला वह सबेरे सबेरे निकाला जिस वक्त सारा कपास गीला होता हैं। हाँ, तो हर रोज़ के हिसाब से आधा किलो अगर लगा देते हैं 50-60 किलो में भी तो एक हफ़्ते से मोटा मोटा 3 किलो घटा दो तो तुम्हारे बनते हैं 3820/-रुपये।"
वह मेरी ओर हैरानी से देखने लगी…क्योंकि अब उसे सामने एक नए ज़माने का शहरी व्यापारी नज़र आ रही थी … बस हिसाब किताब में माहिर एक शहरी व्यापारी …
