हैंड्स फ्री और डैशबोर्ड फ्री
हैंड्स फ्री और डैशबोर्ड फ्री
आज एक कलीग को फ़ोन किया। बात शुरू करते ही हमेशा की तरह मैंने सवाल किया, “बात हो सकती हैं क्या अभी?”
दूसरी तरफ़ से आवाज़ आयी….हाँ, बिल्कुल…अभी रास्तें में हूँ…” मैंने कहा, “अरे, फिर घर पहुँचकर कॉल कर लीजिए। आराम से बात होगी।” “नहीं, नहीं अभी भी कर सकते हैं। हैंड्स फ्री मोड में हूँ।“इसका मतलब फ्री होकर बातें होगी। और बताइए, कैसे चल रहा हैं ऑफिस?” छुट्टियों में ऑफिस की बातें करना हमेशा ही अच्छा लगता हैं क्योंकि ऑफिस हमारे अंदर रच बस जाता हैं। हम अपनी ऐक्टिव लाइफ का एक बड़ा सा हिस्सा वहाँ गुज़ारते हैं।उन्होंने हँसते हुए कहा, “जैसा आप छोड़ कर गयी थी ऑफिस ठीक वैसा ही हैं रखा हैं।ना एक ईट निकाली हैं और ना ही कोई और ईट लगायी हैं, आप आकर देखिएगा।”उनकी इस बात से हम दोनों ही हँस पड़े। इसी तरह की बातें और होने लगी। ऑफिस पॉलिटिक्स के साथ वह कैसा हैं? उनका हाल कैसा हैं के बातों के बीच अचानक ट्रैफिक की शोर सुनायी दिया। मैंने कहा, “बाद में बात करते हैं अभी आप ट्रैफिक में हो…”
“अरे, नहीं… बात हो सकती हैं… मैंने कहा न की मैं हैंड्सफ़्री मोड में हूँ….मैंने उनकी ही टोन में हँसते हुए जवाब दिया और डैशबोर्ड फ्री भी…” उन्होंने हँसते हुए आगे कहा, “मैं आपको बताना भुल गयी…” ”क्या?” “मिसेज शर्मा प्रमोशन होकर कलकत्ता चली गयी रीजनल मैनेजर बनकर…” “वैरी गुड…मैं उनको कांग्रेच्युलेशन करने के लिए फ़ोन करूँगी। बहुत दिनों से उनसे बातें भी नहीं हुयी…”
हाँ…हाँ…हम दोनों कुछ ऑफिस पॉलिटिक्स और कुछ नेगेटिव टाइप के लोगों के बारें में बातें करते रहे और हँसते रहे। ऑफिस पॉलिटिक्स पर तो हर कोई बात करता ही हैं, नहीं? हम भी अक्सर ऐसे करते थे…
जब भी हमारी बात होती तो लंबी होती और ऐसे ही हँसी ठट्ठा होता था। शायद इसी को फ्रीक्वेंसी मैचिंग कहते हैं जो हैंड्स फ्री और डैशबोर्ड फ्री बातें कर पाते हैं…
