ब्रेन की कंडीशनिंग
ब्रेन की कंडीशनिंग
अभी कुछ दिन पहले गाँव में आना हुआ। आजकल हम गाँव कार से ही आ रहे हैं तो जब भी मन करता हैं तब दो तीन दिन की छुट्टियों को एडजस्ट करके निकल पड़ते हैं।
इस बार भी ऐसे ही आना हुआ। अभी यह गाँव इतना ज़्यादा मॉडर्न नहीं हुआ हैं… हमारी एक ही कार में नज़र आती हैं। हम भी शहर के नौकरी पेशा लोग अपनी लक्ज़री लाइफ़ को कहाँ छोड़ पाते हैं? जब भी घर से निकलना होता हैं तो कार से ही आना जाना करते हैं। कभी कोई पैदल जा रहा हो तो गाड़ी रोककर बिठा भी देते हैं। उनको अच्छा भी लगता होगा।
गाँव में उनका अपना सिस्टम होता हैं। हम शहर के लोग उनके लिए हमेशा ही बाहरी होते हैं चाहे रहते रहते वहाँ कितने भी साल हो जाये। ज़रूरत के अनुसार उनके हमारे साथ रिलेशन बनते और बिगड़ते रहते हैं। इसी तर्ज पर वहाँ ज़िन्दगी स्ट्रेस फ्री चलती रहती हैं… क्योंकि शहरी लाइफ़ की टेंशन यहाँ कम होती हैं…
ऐसे ही एक दिन कार से हम घर वापस आ रहे थे तो रास्ते पर एक महिला गाँव की तरफ़ चलते हुए जा रही थी। हमेशा की तरह से मैंने गाड़ी रोकी और बैठने के कहा।
वह बैठने के लिए आग तो बढ़ी लेकिन कार के अंदर और लोगों को बैठे देख रुक गई और बैठने से मना किया। कार आगे बढ़ते हुए मेरे लिए यह अचरज की बात थी। कार में बैठे हुए उस व्यक्ति ने कहा, " अरे, यह उस राम लाल की घर वाली हैं ना… उसके साथ पिछले दिनों कुछ बहस हुयी थी तब से राम लाल की बोलचाल बंद हैं। इसलिए वह बैठी नहीं। राम लाल की डाँट से बचने के लिए।"
मुझे अचानक वहाँ दिल्ली में मेरी ऑफिस की कलिंग मिसेज वर्मा की याद आ गयी। वह भी अपने हसबैंड के हिसाब से ही चलती थी। जबकि मुझे हमेशा से ही लगता था की वह एक फाइनेंशियल इंडिपेंडेंट और वर्किंग वुमन हैं तो अपने तरीके से डील करें।अगर उनके हसबैंड को कोई कलीग अच्छे नहीं लगते थे तो वह भी उनसे कम बात करती थी या उनको अवॉइड करती थी और ऐसे ही कितने वर्किंग वुमन्स को मैं जानती हूँ…
मेरे जैसी शहरी व्यक्ति के लिए यह एक और अचरज की बात थी की औरतें दुनिया में किसी भी कोने में हर जगह एक जैसे ही व्यवहार करती हैं… पति की पसंद नापसंद को देखते हुए… अपनी कोई चॉइस या ज़रूरत की परवाह किए बग़ैर …
शायद इसी को तो ब्रेन की कंडीशनिंग कहते हैं…और औरतों की ब्रेन की कंडीशनिंग तो सदियों से जारी हैं….
