स्वीट सिक्सटीन की यादें…
स्वीट सिक्सटीन की यादें…
फ़ोन की घंटी बजी। देखा तो कोई नंबर था। टीवी और अख़बारों में आजकल साइबर क्राइम के बताने के कारण अननोन नंबर की कॉल को रिसीव करना खतरें से ख़ाली नहीं हैं। इसलिए इस अननोन नंबर की कॉल नहीं लिया।
लेकिन थोड़े हो देर में फ़ोन में नोटिफिकेशन की आवाज़ हुई। देखा तो ह्वाट्सऐप में मेसेज था।
हाय…के साथ नाम लिखा था। बहुत याद करने पर पता चला की अरे, यह तो 10th क्लास में पढ़नेवाली मेरी क्लासमेट हैं।
इतने सालों के बाद उसका यूँ फ़ोन आना तो वंडर की बात थी।
हेलो कहते ही दूसरी तरफ़ से जो आवाज आई वह एकदम मैं पहचान गई।आवाज कहाँ इतनी बदलती हैं?
मैंने कहा, “अरे, क्षमा, इतने दिनों के बाद? कहाँ हो आजकल? क्या करती हो?”
वह कहने लगी, “अरे, भाई, रुको, होल्ड.. होल्ड… इतने दिनों के बाद तुम मिल गयी? कहाँ थी अब तक?”
“मैं तो दिल्ली में थी…नौकरी कर रही थी… अभी गाँव आयी हूँ। परसो ही सुधा का फ़ोन आया था। उसने कहीं से मेरा नंबर लेकर मुझे ढूँढ निकाला। और तुम? तुम कहाँ हो?”
“मैं मुंबई में हूँ। आओ तुम यहाँ कभी।”
मैंने कहा, “ज़रूर… और बताओं फ़ैमिली में कौन कौन हैं?”
इसी तरह हमारी लंबी बातचीत होती रही। बातों के सिलसिला कहीं तो रुकना था।
मिलते हैं फिर कभी कहते हुए मैंने फ़ोन रख दिया।
इस एक फ़ोन कॉल से स्कूल के दिनों की स्वीट सिक्सटीन की सारी यादें ताज़ा होकर किसी रील की तरह चलने लगी…
