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Kunda Shamkuwar

Abstract Others

4.5  

Kunda Shamkuwar

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फेसबुक

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मार्क जकरबर्ग ने  तो एक बिज़नेस मॉडल की तर्ज़ पर फेसबुक बनाया …लेकिन जो भी हो यह  फ़ेसबुक हैं तो कमाल की चीज़…

अभी देखिए न… फ़ेसबुक में आनेवाली न जाने कितनी ही फीड को मैं पढ़ती रहती हूँ… रील देखती रहती हूँ… और अपने फ़ोटोज़ भी शेयर करती रहती हूँ… एक मजेदार प्लेटफॉर्म हैं लोगों से जुड़ने का, उनके बारें में जानने का…

कुछ दिनों से ऐसे ही एक डिजिटल कंटेंट क्रिएटर की पोस्ट को मैं पढ़ने लगी थी … किसी फीड के माध्यम से… उनका लेखन स्त्री विमर्श पर था लेकिन भाषा प्योर हिंदी या यूँ कहे गाँव की मिट्टी की महक लिए एकदम रॉ लैंग्वेज…

मैं दिल्ली शहर की ठेठ बोलचाल की भाषा जो ज्यादातर इंग्लिश और उर्दू के वर्ड्स को हिंदी में मिलाकर स्त्री विमर्श पर जो बाय प्रोफेशन  हैं तो इंजीनियर लेकिन ज्यादातर कामकाज़ी स्त्रियों पर लिखने वाली एक लेखिका…

उस राइटर से मिलने का मेरा मन तो बहुत होता था लेकिन वह एक असंभव सी लगने वाली बात थी क्योंकि मैं यहाँ और वह नार्थ के किसी और स्टेट की जिनसे मिलने के लिए मन तो बहुत चाहता था लेकिन संपर्क करने के लिए मुझे अजीब सा हेजिटेशन होता था…

क्यों???

इस क्यों का कोई जवाब नहीं था।

लेकिन जैसे शाहरुख ख़ान के किसी मूवी का डायलॉग हैं की किसी चीज को आप शिद्दत से चाहते हो तो पूरा यूनिवर्स लग जाता है उसे मिलानें के लिए… यह डायलॉग तो नायक और नायिका के मिलन के संदर्भ में था…

इसी बात को रेफ़रेंस आगे आनेवाला हैं । हाँ तो मैं बता रही थी की ऐसे ही कल फ़ेसबुक स्क्रॉल करते करते पता चला की वह इसी शहर में आयी हुयी हैं… जैसे की मुझे दुनिया मिल गयी हैं…मेरी मन की मुराद पूरी होने वाली हैं…

भावावेश में आकर मैंने ख़त से कमेंट डाला की आप कब तक हैं और मैं मिलना चाहती हूँ… बाय चांस उनका भी रिप्लाई आ गया की मिल सकते हैं । झट से मैंने फ़ेसबुक के मैसेंजर्स में जाकर उनको मेरा फ़ोन नंबर शेयर कर मुलाक़ात भी फिक्स कर दी।

आज सुबह जल्दी उठकर मैं उनसे मिलने के लिए उनके बताये हुए लोकेशन पर पहुँची।

एक बेहद शालीन व्यक्तित्व मेरे सामने था। चाय पर चर्चा के दौरान उनके लेखन की बातें हुयी …मेरे लेखन की बातें हुयी… समाज में व्याप्त सामाजिक असमानता, स्त्री पुरुष असमानता, न्याय की बातें, लिंचिंग की बातें, स्त्रियों का संघर्ष, लेफ्ट राइट के डिबेट्स और भी न जाने क्या क्या बातों पर हम लोग बोलने लगे। शायद हमारी वेव लेंथ या जिसे फिर फ्रीक्वेंसी मैचिंग कहते हैं वह थी।

उन्हें किसी का फ़ोन आया और हमे वक़्त  का अहसास हुआ। न चाहते हुए भी हमे एक दूसरे से विदा लेना था। फिर मिलेंगे कहते हुए हमने बाय करते हुए विदा ली।

सचमुच मार्क जकरबर्ग की फ़ेसबुक बड़ी कमाल की चीज़ हैं…


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