पानी रे पानी तेरा रंग कैसा…
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा…
मछलियों का पानी संग रिश्ता कितना मजबूत होता हैं, नहीं?
बच्चों के मन में सबसे पहले यही भाव घुट्टी की तरह डाल दिया जाता है…मछली जल की रानी हैं… जीवन उसका पानी हैं…यही तो सब हमे पढ़ाया जाता हैं…पानी भी तो सभी मछलियों की सल्तनत होता हैं …पानी के बिना मछलियाँ तड़पती हैं…
मछलियों के लिए पानी कभी तालाब, कभी नदी तो कभी समंदर बन जाता था…मछलियाँ सोचती थीं कि जितना वो पानी के बिना तड़पती हैं उतना ही पानी को भी उनके लिए तड़प होती हैं। उन्हें तो लगता था कि वे जल की रानी हैं । जल ही उनकी सल्तनत है…सदियों से ऐसा ही हैं और आगे भी ऐसा ही होगा…पानी में रहते रहते मछलियाँ यही सब तो सोचती रहती थी…लेकिन वे ठहरी भोली और नादान …एक दिन उनका यह भ्रम एकाएक टूट गया जब वह किसी जाल में फँसी…
अचानक पानी उन्हें छोड़कर जाल से भागने लगा…बेपरवाही से…बिना किसी अपराधबोध से…. मछलियों को यूँ तड़पता देखकर भी वह रुका नहीं… बल्कि और तेज़ी से भागता चला गया। मछलियाँ उस जाल से भी अपनी तड़पना छोड़ उस भागते हुए पानी को ही देखने लगी…हैरानी से… बेयक़ीनी से…
वे सारी हैरानकुल मछलियाँ और ज़्यादा तड़पती रही अंत तक यह सोचते हुए की ये अचानक पानी को क्या हुआ? यह तो हमेशा से ही उनका साथी था। क्यों बुरे वक़्त में साथ छोड़ रहा हैं जब की अब उन्हें उसकी सख़्त ज़रूरत हैं?
पानी अपना रंग अपना आकार सब कुछ बदल देता हैं … वह नदी बन जाता हैं… तालाब बन जाता हैं… समंदर बन जाता हैं… लाल…नीला, पीला और भी कई सारे रंग में रंग जाता हैं…लेकिन आह ! मछलियाँ जो ख़ुद को सल्तनत की रानी मानती रही…पानी के संग इठलाती रही उनका यह क्रूरतम हाल?
शायद औरतों को भी तो सब्ज़बाग दिखाकर यही सब कुछ कहा जाता हैं - तू तो मेरी रानी है , मेरे दिल की मलिका है…लेकिन क्या हक़ीक़त यही है ?
पाठक सोचेंगे की ये लेखक भी कभी कभी यूहीं कंफ्यूज हो जाते हैं …हाँ, बात मछलियों की हो रही हैं और ये औरतें पता नहीं क्यों बीच में आती हैं।
चले,फिर से मछलियों की तरफ़ आते हैं….पानी ही हैं जो रंग रूप बदल लेता हैं …किसी के भी रंग में ढलने वाला एकदम मौकापरस्त!!!
यूँही तो नहीं कहा जाता हैं की पानी रे पानी तेरा रंग कैसा? जिसने मिलाया उस जैसा… खुदगर्ज़ पानी के लिए यह मछलियाँ क्या चीज हैं?
