बीरान बसेरा
बीरान बसेरा
दिसम्बर का महीना अपने अंतिम पड़ाव पर था, कोहरे और धुंध के साथ आसमान पर बादल भी काफी छाए हुए थे मौसम के हिसाब से बारिश कभी भी किसी भी समय हो सकती थी। हर तरफ धुंध और सन्नाटे के अलावा और कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। ऐसे में अज़ीम अपनी मंगेतर लैबा के साथ कोहरे और धुंध को चीरता हुआ किसी काम के सिलसिले से रास्थान से दिल्ली अपने घर वापस जा रहा था। मौसम काफी ज्यादा खराब था इसलिए एक सीमित गति के साथ अज़ीम कार को ड्राइव कर रहा था। कार में रेडियो बज रहा था जिसमें पुराने सदाबहार गाने एक के बाद एक बजते जा रहे थे। रात के 12 बजने वाले थे, मौसम धीरे-धीरे और भी खराब होता चला जा रहा था। कार में लगी ए.सी. की गरमाहट की वजह से लैबा शायद सो चुकी थी। उसे सोता देख अज़ीम ने रेडियो को बंद कर दिया और चुपचाप खामोशी से कार चलाने लगा। अभी सिर्फ पाँच मिनट का ही सफर तय हुआ था कि कार चलाते-चलाते अज़ीम को भी नींद आ गई उसे कुछ होश नहीं रहा कि उसकी कार कहाँ और किधर जा रही है तभी अचानक सामने से एक ट्रक तेज रफ्तार के साथ उनकी कार की तरफ बढ़ता चला आ रहा था। रोशनी की वजह से अचानक लैबा कि आँखें खुल गयीं, अपनी मौत को इतनी करीब देख कर उसे कुछ समझ में नहीं आया कि क्या किया जाए उसने अज़ीम को जगाने के बजाए कार के स्टेरिंग को फटाक से पूरी ताकत के साथ चिल्लाते हुए एक तरफ मोड़ दिया।
"अज़ीईईईईममम......!"
अज़ीम की भी आंखें ऐन वक्त पर खुल गईं पर जब तक वो कार को कंट्रोल करता कार एक पेड़ से जा टकराई ट्रक कार के इतनी नज़दीक से गुजरा की कार का साइड मिरर तक टूट गया। कार की रफ्तार कम थी इसलिए उन्हें कोई खरोच तक नहीं आई। वो दोनों काफी डर गए। दोनों ने डर से एक-दूसरे को कस के गले लगा लिया।
"तुम ठीक हो ना?" अज़ीम ने लैबा से पूंछा।
"हन्नन्नं...।" उसने रूंहासे अंदाज़ में कहा।
"या अल्लाह तेरा लाख-लाख शुक्र है।" अज़ीम ने ईश्वर का धन्यवाद किया।
दोनों कार से बाहर आ गए। उनकी कार का एक्सीडेंट होते देख एक बुजुर्ग आदमी दौड़कर उनके पास आ पहुंचा।
"अरे बेटा सब ठीक है ना, किसी को चोट तो नहीं आई?"बुज़ुर्ग ने पूछा।
"नहीं बाबा अल्लाह का शुक्र है, सब सही सलामत है।"
अज़ीम ने जवाब दिया।
"हजारों एक्सीडेंट हुए मगर आज तक यहां किसी को एक खरोच तक नहीं आई।"बाबा ने कहा।
"मतलब?"अज़ीम ने आश्चर्यजनक होकर पूछा।
"मतलब वो देखो....." बुज़ुर्ग ने अपने पीछे जंगल मे एक जलते हुए दीपक की तरफ इशारा करते हुए कहा
".....वो वहाँ सूफी बाबा की दरगाह है । उनके रहमोकरम से आज तक उनकी सरज़मी के सामने कभी किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ है।"
अज़ीम और लैबा ने लम्बी नज़र दौड़ाई ताकि दरगाह को देख सके पर धुंध की वजह से उन्हें सिर्फ एक रोशनी ही जलती हुई दिखाई दी।
"बाबा आप कौन, आप इतनी रात गए यहाँ ?"
लैबा ने पूछा।
"मैं फकीर हूँ, इसी दरगाह का। ठण्ड तेज थी, जलाने के लिए लकड़ियां लेने आया था बाहर, पर आपकी कार को पेड़ से टकराते देख मैं दौड़ता हुआ चला आया।"बुज़ुर्ग ने बड़े प्यार से जवाब दिया।
"..हाँ..... वो...अचानक से एक ट्रक सामने आ गया था इसलिए कंट्रोल नहीं कर पाया था।"अज़ीम ने लड़खड़ाती हुई अवाज में जवाब दिया।
"ट्रक !"बाबा ने बड़े अचम्भे स्वर में कहा।
"हाँ.....वो...ट्रक आ गया था।"अज़ीम से पहले लैबा ने कहा।
"पर ये कैसे हो सकता है ? मैंने तो कोई ट्रक ने देखा।"बाबा की आवाज़ में इस बार और भी अचम्भापन था।
"नहीं बाबा आपने शायद सही से देखा नहीं होगा। ट्रक की वजह से ही ऐसा हुआ।"अज़ीम बुज़ुर्ग आदमी का भरम दूर करते हुए बोला।
"पर मैं यहीं खड़ा था मैंने तो कोई ट्रक नहीं देखा।"बुज़ुर्ग की आवाज़ में अभी भी आचम्भेपन की खरास थी।
"नहीं बाबा आप शायद देख न पाए हों।"अज़ीम ने फिर कहा।
बाबा बहस नहीं करना चाहते थे इसलिए वो आगे कुछ नहीं बोले। अज़ीम फिर कार में बैठ कर गाड़ी को स्टार्ट करता है पर पेड़ से टकराने की वजह से कार स्टार्ट नहीं हो पा रही थी। अज़ीम गाड़ी से बाहर आया उसने कार की हालत चेक की और निराश मन से बोला।
"अब ये स्टार्ट नहीं होगी।"ये सुनकर लैबा का चेहरा उतर गया।
"अब हम क्या करेंगे ?"अज़ीम भी कुछ समझ नहीं पा रहा था कि अब क्या किया जाए। शहर और बस्तियां उस जगह से कोसों दूर थी। इस बीराने को देखते हुए वो बाबा से बोला- "बाबा यहाँ कहीं आज रात रुकने की जगह मिल सकती है?"
"वैसे दरगाह में मेरा हुजरा है आप लोग वहाँ ठहर सकते थे पर औरतों को दरगाह के अंदर जाना मना है इसलिए एक दूसरा रास्ता है अगर आप लोग चाहें तो वहीं जा सकते हैं।"बाबा ने कारण और उपाए एक साथ बताया।
"कौन-सी जगह है बाबा ?"अज़ीम बोला।
"दरगाह के पीछे एक नदी है उसके उस पार एक सराएँ बना हुआ है आप लोग चाहें तो वहाँ जा सकते हैं।"बाबा ने जगह का ज़िक्र किया।
"कितनी दूरी पर है यहाँ से "लैबा ने पूछा।
"दरगाह के पीछे एके नदी है उसे पार करके जाओगे तो सिर्फ आधे घण्टे में ही पहुंच जाओगे और अगर इसी सड़क से होते हुए जाओगे तो शायद सुबह रास्ते में ही हो जाए।"बाबा ने कहा।
"....और अगर आप लोग आना चाहें तो मैं रास्ता बता सकता हूँ।"बाबा फिर बोले।
अज़ीम ने पहले कुछ सोंचा फिर लैबा से इशारे में पूछा और उसके बाद बाबा को अपना फैसला सुनाया।
"ठीक है बाबा चलिए।"
"मन मे कोई बुरे ख्यालात मत लाइए, मुझे लूटमार का शौक होता तो किसी दरगाह का मुरीद न होता।"बाबा ने उनके संकोच भरे मन को देखते हुए कहा।
"नहीं बाबा ऐसी कोई बात नहीं है बस अंजान जगह से ज़रा सा ख़ौफ़ बना हुआ था।"
अज़ीम ने जवाब दिया और बाबा जी के पीछे चल दिया। दोनों के मन मे ज़रा सा डर था पर हालात को देखते हुए उन्हें ये बाबा पर यकीन करना पड़ा। सड़क से थोड़ी दूर जंगल में एक दरगाह के पास वो लोग पहुंचे। वहां से गुजरते हुए बाबा ने दरहगाह से एक लालटेन ली और अपना हुजरा दिखाया और दरगाह के पीछे नदी की ओर चल दिए। एक संकीर्ण रास्ते से तीनों लोग गुजरते हुए चल दिए। अंधेरा और कोहरा काफी ज्यादा था। सामने कुछ देख पाना बड़ा मुश्किल हो रहा था। जैसे-तैसे वो लोग नदी के तट पर पहुंचे।
"इस नाव पर बैठकर उस पार जाना वहाँ से एक कच्चा रास्ता मिलेगा, थोड़ी दूर जाने पर एक सराएँ का बोर्ड दिखेगा, तुम्हारी मन्ज़िल मिल जाएगी।"
बाबा ने पूरा रास्ता एक बार में बता दिया।
"वहाँ कोई और भी होगा इतनी टाइम ?"लैबा ने पूछा।
" हाँ, वहां एक-दो मुसाफिर हमेशा रहते हैं और एक नौकर भी रुकता है वहाँ।"बाबा ने जवाब दिया।
"ठीक है बाबा शुक्रिया!"अज़ीम अपना जैकेट कसते हुए बोला।
"..अब तुम लोग जाओ मुझे भी वापस जाना है।"इतना कह कर बाबा जी वहां से चल दिए।
अज़ीम और लैबा मोबाईल की लाइट के सहारे नाव के नज़दीक पहुंचे।बहुत आहिस्ता से वो लोग नाव में उतरे । कड़ाके की ठण्ड की वजह से नदी का पानी एक दम बर्फ था और अंधेरे की वजह से नाव किस और कौन सी दिशा में जा रही है कुछ पता नहीं चल पा रहा था। बहुत ही मुश्किल सफर से गुजरना पड़ रहा था उन दोनों को। एक डण्डे के सहारे अज़ीम धीरे-धीरे पानी की लहरों को काटते हुए नदी दूसरे छोर पर जा पहुंचा। दोनों तट के ऊपर आए और रास्ता ढूंढने लगे। पर उन्हें जंगल के अलावा कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था, और नज़र आता भी कैसे जब उनकी नाव बहते हुए किसी दूसरे छोर पर जा पहुंची थी। उन्हें तो ये भी पता नहीं था कि आगे उनके साथ क्या होने वाला है।
"यहां तो कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा है ?" अज़ीम, लैबा से कहने लगा।
"थोड़ा उस तरफ चलके देखते हैं।"लैबा आगे बढ़ते हुए बोली।
दोनों मोबाईल लाइट के सहारे थोड़ा और आगे बढ़े। ठण्ड धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी। थोड़ा चलने के बाद उन्हें एक कच्चा रास्ता दिखाई दिया। उनके चहरे पर हल्की सी खुशी झलक गई। वो दोनों उस रास्ते पर हो लिए। अभी कुछ दूर का ही रास्ता उन्होंने तय किया था कि उन्हें अचानक से परिन्दों के फड़फड़ाने की आवाजे सुनाई दी तो लैबा एकदम से डर गई।
"डरो मत परिंदा है।" अज़ीम मुस्कुराते हुए बोला।
दोनों फिर निसंकोच आगे बढ़ चले। थोड़ा और चलने पर उन्हें एक दूरी पर आग जलते हुए दिखाई दी वो समझ गए वो सही जगह पर आ पहुंचे हैं। उन्होंने उस आग की तरफ लम्बे-लम्बे कदम बढ़ाए। वहाँ पहुंच कर उन्होंने देखा सराएँ पूरी तरह बीरान जैसा दिख रहा है, वो आग के पास बैठ गए और हाथ सेकने लगे। सराएँ का दरवाजा बंद था पर अंदर किसी चीज की रौशनी जल रही थी।
"तुम बैठो मैं देखता हूँ अंदर कोई है कि नहीं।"अज़ीम इतना कहकर दरवाजे की तरफ चला गया। लैबा वहीं बैठी रही। उसका पूरा ध्यान हाथ सेकने पर था। बीचो-बीच जंगल में वो दोनों शायद अकेले थे। रात के तकरीबन 2 बज रहे थे धुंध और सर्दी और बढ़ती जा रही थी। लैबा चुपचाप हाथ सेंक रही थी कि तभी अचानक से किसी के चलने की आवाज़ ठीक उसके पीछे आई। उसने पहले सोंचा शायद ये उसका भ्रम है पर आहिस्ता-आहिस्ता किसी की परछाई उसके सामने आ गई। उसने हल्की से गर्दन मोड़कर देखा तो परछाई सचमुच किसी इंसान की थी उसने एक झटके के साथ मुड़कर देखा तो पीछे कोई नहीं था। वो काफी डर गई और दौड़ते-हाँफते अज़ीम के पास चली गई। उसके चेहरे पर एक तरह का डर देख कर वो घबरा गया।
"क्या हुआ इतना हांफ क्यों रही हो?"अज़ीम ने पूछा।
"...अभी.... अभी मुझे लगा कि कोई मेरे पीछे खड़ा है।"लैबा साँस रोकते हुए बोली।
"अरे कुछ नहीं, वो कोहरा इतना पड़ रहा न इसलिए तुन्हें लगा होगा, अभी मुझे भी लगा था कि अंदर कोई है, पर मैंने सब कहीं देखा, अंदर कोई नहीं है, एक परिंदा भी नहीं।"अज़ीम ने जवाब दिया।
वो दोनों बातें कर ही रहे थे कि अचानक एक औरत उन्हें दूर खड़ी हुई नजर आई। वो चुपचाप वहीं आग के पास खड़ी हुई थी। एक पल के लिए अज़ीम थोड़ा सहम गया फिर उसने सोंचा की शायद वो यहाँ की देख-रेख करने वाली हो।
"कौन हो तुम ? क्या तुम यहीं रहती हो ?"अज़ीम ने तेज आवाज लगा कर उससे पूछा ।उसने कोई जवाब नहीं दिया तो अज़ीम ने फिर कहा।
"क्या हमें आज रात के लिए यहाँ कोई कमरा मिल सकता है?"
इस बार बिना जवाब दिए वो धीरे-धीरे क़दमो के साथ उनकी तरफ बढ़ने लगी। उसने राजस्थानी पोशाक पहन रखी थी और अपने चेहरे को पूरी तरह घूँघट से ढक रखा था। वो चुपचाप आकर उनके ठीक सामने खड़ी हो गई और बोली- "आप लोग अंदर चलिए मैं कमरा दिखा देती हूँ आप लोगों को।"
इतना कह कर वो अंदर चल दी। लैबा चुपचाप सहमी हुई अज़ीम से चिपक कर खड़ी थी। अज़ीम जैसे ही उसके पीछे चला लैबा भी चिपके-चिपके उसके पीछे चल दी। तीनों अंदर दाखिल हुए।
"यहाँ आप अकेली रुकती हैं?"अज़ीम ने उससे पूछा।
"मैं सालों से यहाँ अकेली ही हूँ।"औरत बिना देखे, सीधे चलते हुए बोली।
"ये सराएँ इतना खण्डहर क्यों लग रहा है।"अज़ीम ने फिर पूंछा।
"मैं सालों से यहाँ अकेली ही हूँ।"औरत बिना देखे, सीधे चलते हुए बोली।
"ये सराएँ इतना खण्डहर क्यों लग रहा है।"अज़ीम ने फिर पूंछा।
"वो रहा आपका कमरा।"औरत ने इशारे से एक कमरे का दरवाजा दिखा दिया और वहां से चली गई।
"बड़ी अजीब औरत है।"लैबा ने कहा।
दोनों कमरे में दाखिल हुए। कमरे की हालत देख कर वो सोंच में पड़ गए कि कैसा सराएँ है ये। कमरे में सिवाए एक पलँग और रजाई के अलावा और कुछ भी नहीं था।
दोनों काफी ज्यादा थक चुके थे इसलिए बिना वक़्त गवाएं वो तुरन्त बिस्तर पर गिर पड़े। लेटते ही वो कब सो गए उन्हें कुछ पता न चला। मौसम धीरे-धीरे काफी ठंडा होता जा रहा था। ऐसे में कुछ देर बाद ही लैबा कि आंखें खुल गईं उसे ठण्ड ज्यादा महसूस हो रही थी उसने सामने देखा दरवाजा खुला है और ठंडी-ठंडी हवा कमरे में बहुत तेज से आ रही है। दरवाजा बंद करने के लिए वो आगे बढ़ी। हवा काफी तेज से चल रही थी पर आसमान पर से बादल शायद छट गए थे क्योंकि अब पहले से ज्यादा रोशनी लग रही थी। उसने दरवाजा बंद किया और फिर बिस्तर की तरफ चल दी वो जैसे ही मुड़ी उसे एक अजीब तरह की आवाज सुनाई दी, जैसे कोई गीत गा रहा हो। उसने पलटकर फिर से दरवाजा खोला और कान लगाकर इधर-उधर सुनने लगी। उसका सोंचना सही था शायद कोई गीत गा रहा था अंदर। उसने कमरे का दरवाजा वैसे ही बन्द कर दिया और उस आवाज की तरफ चल दी। वो जितना आगे बढ़ती जा रही थी आवाज और करीब होती जा रही थी अब उसे साफ-साफ सुनाई दे रहा था कि कोई गीत भी गा रहा है और नाच भी रहा है। वो दबे पाँव उस आवाज की तरफ बढ़ती रही। ऊपर जाने की सीढ़ियां थी जिनके पीछे वाले कमरे से शायद आवाज आ रही थी। वो चुपचाप सीढ़ियों के पीछे वाले कमरे के पास पहुंची। कमरे का दरवाजा काफी बड़ा था जिससे साफ पता चल रहा था कि कमरा भी बहुत बड़ा होगा। वो दरवाजे को बिना हाथ लगाए कमरे के दूसरी तरफ चल दी ताकि किसी खिड़की वग़ैरा से देख सके कि अंदर कौन है। उसने थोड़ी दूरी पर एक खिड़की देखी तो चुपचाप उसके पास पहुंच गई। उसने बहुत सावधानी से अंदर देखा, अंदर का नज़ारा देखकर उसके होश उड़ गए। उसने देखा वही औरत हवा में झूल रही है और नाच गा रही है।
"यहाँ जो आएगा, वो मरेगा... यहाँ जो आएगा वो मरेगा... हा हा हा हा हा.....।" वो औरत खुद से नाच-नाच कर बातें कर रही थी।
उसको देखते ही लैबा समझ गई कि ये कोई औरत नहीं बल्कि कोई चुड़ैल है। उसने डर के मारे दोंनो हाथो से अपना मुंह बंद कर लिया, फिर ज़मीन पर नज़र दौड़ाई तो देखा फर्श पर कई लाशें खून में लतपत पड़ी हैं। वो बहुत डर गई। डर के मारे उसके आँसू बहने लगे । वो समझ नहीं पा रही थी कि ये क्या हो रहा है। तभी उसे अज़ीम का ख्याल आया जिसे वो अकेला छोंड़कर आई थी। उसने अपने आँसू पोंछे अपना मुंह दोनों हाथों से दबाया और बिना उठे रेंगते-रेंगते सीढ़ियों तक गई। वहाँ पहुंच कर वो खड़े होकर दबे पांव कमरे की तरफ चल दी। उसने जैसे ही कमरे का दरवाजा खोला वो गाने-बजाने की आवाज़ आनी बन्द हो गई। वो तुरन्त अज़ीम के पास पहुंची और उसे इशारे से जगाया और एक दम चुप रहने को बोलकर कमरे से बाहर ले आई। उसने फटाफट सारी बातें अज़ीम को बता दीं, और उसे ले जाकर सीढ़ियों के पीछे छुप गई। थोड़ी देर बाद वो औरत हवा में झूलती हुई उनके एकदम करीब से गुज़री। उसे ऐसे हवा में तैरते देख अज़ीम को भी लैबा की बातों पर यकीन हो गया। वो सीधे उसी कमरे की तरफ जा रही थी जहां वो लोग ठहरे हुए थे। ये सब देखकर दोनों के गले सूख गए थे।
वो लोग चुपचाप अपना मुंह दबाए वहीं बैठे रहे शायद उन्हें पता था कि शैतान, इंशान को उसकी सांसों की आवाज़ से ढूँढ लेता है। वो इतना तो समझ गए थे कि ये कोई सराएँ नहीं है पर बाबा ने उन्हें इस शैतान के पास इस चुड़ैल के हाथों मरने क्यों भेज दिया था ये अभी भी उनके लिए एक राज़ था। वो बड़ी खामोशी से बैठे थे कि तभी वो चुड़ैल उनके नज़दीक से कुछ गुनगुनाते हुए गुज़री वो शायद अपनी गायकी के आगे उनकी साँसों की आवाज़ न सुन सकी इसलिए वो सीधे उस कमरे की तरफ चलती चली जा रही थी जिधर अज़ीम अपनी लैबा के साथ रुका था पर उसे क्या पता था कि वो लोग उस चुड़ैल को पहचान गए थे। वो जैसे ही कमरे की तरफ बढ़ी अज़ीम लैबा को लेकर बाहर निकल गया। वो दोनों अपनी पूरी ताकत के साथ नदी की तरफ दौड़ने लगे वो काफी तेजी से दौड़ रहे थे और बहुत डर हुए थे। तभी पीछे से किसी के चीखने की आवाज़ सुनाई दी तो वो दोनों वहीं ठहर गए। उनकी आंखों में डर पूरी तरह उतर चुका था। उन्हें कुछ समझ मे नहीं आ रहा था कि अब वो क्या करें। तभी अचानक से वो चुड़ैल ठीक उनके सामने आ खड़ी हुई। इस बार उसका चेहरा खुला हुआ था वो इतनी डरावनी दिख रही थी कि उसे देखते ही लैबा की चीख़ निकल गई।
"कितनी दूर भागोगे मिझसे.... हा हा हा हा हा....!"इतना बोलकर वो ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगी
उसकी डरावनी और दहसत भरी आवाज सुनकर दोनों घबरा गए। अज़ीम उस चुड़ैल से बचने के लिए जल्दी-जल्दी कुछ पढ़ने लगा पर वो कुछ और पढ़ पाता इससे पहले उसने अज़ीम को दूर फेंक दिया। लैबा ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। चुड़ैल फिर लपक कर अज़ीम के पास आ गई इस बार उसने जैसे ही अज़ीम को पकड़ने के लिए अपना हाथ बढ़ाया वैसे ही फ़कीर बाबा ने आकर उसकी आँखों में एक तरह की धूल झोंक दी वो चीखती-चिल्लाती वहाँ से गायब हो गई। फकीर बाबा को वापस अपने साथ देख दोनों की जान में जान आई।
"कौन थी ये बाबा?"अज़ीम ने बाबा से पूछा ।
"तुम लोग गलत बसेरे पर आ गए थे ,ये सराएँ नहीं था वो तो शुक्र है मैंने उस परिंदे को दरगाह पर बैठा हुआ देख लिया था और समझ गया कि तुम लोग गलत जगह पर पहुंच गए हो, ये इस इलाके के बहुत पुराने राजा भीमसेन का तवायफखाना था, सराएँ तो वहीं सामने वाले रास्ते पर था।"
बाबा ने जवाब दिया।
"पर ये कौन थी बाबा ? मैंने वहाँ कई लोगों की लाशें देखी थी"लैबा ने रोते-रोते पूछा।
"ये पास के गाँव के बंजारों की लड़की थी भीमसेन के वफादार आदमी एक बार इसे जबरदस्ती यहाँ उठा लाए थे और इसके साथ बहुत बदसुलूकी की जिसकी वजह से इसने यहाँ अपनी जान दे दी थी, तबसे इसकी रूंह इसी बीराने में भटकती रहती है। अगर कोई भूले भटके वहाँ पहुंच जाता है तो ये उसे उन्हीं लोगों में गिनती है और उनकी जान ले लेती है, पर अब हमें यहाँ से जल्दी निकलना चाहिए वो किसी भी वक़्त फिर से आ सकती है।"
बाबा ने सारी बात कम शब्दों में बताई और वहां से जल्दी निकलने की सलाह दी।
तीनों जल्दी-जल्दी वहाँ से निकलने के लिए तैयार हो गए।
"सुबह होने में कुछ ही वक़्त बचा है उसके बाद वो फिर उसी बिराने में वापस चली जाएगी लेकिन उससे पहले अगर हम नदी के उस पार दरगाह की ज़मीन पर नहीं पहुंचे तो वो हममे से किसी को भी जिंदा नहीं छोड़ेगी।"
बाबा लम्बे-लम्बे क़दमो से बढ़ते जा रहे थे साथ-साथ उन्हें आने वाले हर खतरे से वाकिफ़ भी कराते जा रहे थे।लैबा और अज़ीम काफी डरे हुए थे । बाबा के पगचिन्हों पर वो जल्दी-जल्दी चलते जा रहे थे। हर तरफ खौफ़ का मंज़र दिख रहा था उन्हें। अगर कोई पक्षी भी ज़रा तेज आवाज में बोल देता था तो वो सब काँप जाते थे। जैसे-तैसे वो लोग किनारे पर पहुँचे, नाव को खींचा और उसमें सवार हो गए।
बाबा जल्दी-जल्दी नाव को डंडे के सहारे खेने लगे। अज़ीम और लैबा एक-दूसरे में सिमट कर बैठे हुए थे। डर उनके ज़ेहन में पूरी तरह अपना घर बना चुका था। नाव नदी के बीचों-बीच में पहुंची ही थी कि अचानक एक तेज आवाज़ के साथ पूरी नाव पानी मे पलट गई। तीनों डूबते हुए गहरे पानी में जा पहुंचे। पूरी कोशिश करके वो लोग पानी की ऊपरी सतह पर आए और देखा वो चुड़ैल नाव के ऊपर बैठी आराम से हँस रही है। उसकी हंसी इतनी खौफनाक थी कि लैबा की चीखें निकल गईं। वो दोनों बहुत डर गए, उनके डरे चेहरों को देखकर बाबा से रहा न गया।
"तू क्या समझती है, तू सबकी जान ले लेगी, जो तू चाहेगी वो करेगी, ये दोनों मुसाफिर हैं ये यहाँ तेरे बसेरे पर नहीं सराएँ पर रुकने आए थे, नए थे रास्ता भटक गए थे, इनकी जान की दुश्मन क्यों बनी है ?" बाबा धीरे-धीरे बात करते-करते उसके नज़दीक पहुंच गए।
"जो मेरे बसेरे पर आएग, वो मरेगा....हा हा हा हा हा...."
वो हंसते हुए और भी डरावनी लग रही थी।
"पर ये तेरे दुश्मन नहीं हैं।"
बाबा चुड़ैल की आंख में धूल झोंकते हुए नाव के करीब पहुंच गए जहाँ वो आराम से बैठी थी। लैबा और अज़ीम ठंडे पानी में धीरे-धीरे बर्फ बनने लगे थे। बाबा ने अचानक से कुछ पढ़ा और हाथ में पानी लेकर उस चुड़ैल के ऊपर फेंक दिया। चुड़ैल ज़ोर-ज़ोर से तड़फने लगी और पानी मे जा गिरी, उसे तड़फता देख बाबा ने अज़ीम और लैबा कि तरफ एक तेज़ आवाज़ लगाई-" इससे पहले की वो ऊपर आए तुम लोग जल्दी से पानी से निकल कर नदी के उस पार निकल जाओ.... जल्दी करो...जाओ।"
अज़ीम ने देखा बाबा नाव पर सवार हो रहे हैं, और उनकी तरफ आ रहे हैं। वो दोनों जल्दी-जल्दी पानी से बाहर निकले और नदी के ऊपरी छोर पर जाकर खड़े हो गए। बाबा जल्दी-जल्दी नाव को खे रहे थे।
"जल्दी करिए बाबा !"
अज़ीम ने एक तेज़ आवाज़ बाबा को लगाई।
"मेरी फिक्र न करो, तुम लोग जल्दी से दरगाह तक पहुँचो. जाओ!"
बाबा ने एक तेज आवाज लगाई।
वो दोनों पहले कुछ देर खड़े सोंचते रहे तो बाबा ने फिर चिल्लाकर कहा।
"मैं कहता हूँ, तुम लोग जाओ..जाओ !"
इस बार अज़ीम ने लैबा का हाथ पकड़ा और तेज-तेज से दौड़ना शुरू कर दिया। वो अपनी पूरी ताकत के साथ दौड़ते जा रहे थे। थोड़ी दूर दौड़ने के बाद उन्हें बाबा की एक दर्द भरी चीख सुनाई दी।
"आह.......!"
शहर से कोसों दूर किसी ने आज बिना अपनी जान की परवाह किए अज़ीम और लैबा की जान बचा ली थी। वो दोनों चीख़ सुनकर वहीं खड़े हो गए जैसे किसी अपने ने आज उनके लिए अपनी जान गवाँ दी हो।