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"मोहब्बत की सर्दी"

"मोहब्बत की सर्दी"

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"उठ जा रिहान टाइम हो गया यार ।" विशाल ने जगाने के लिए एक पट सोए रिहान के कन्धे को हिलाया, पास में पड़ी कुर्सी को खींचा और बैठकर अपने जूतों की बद्धियाँ कसने लगा। लेकिन रिहान यूँ अस्तबल बेच कर सोया हुआ था की उसने ना कोई हुँकारी भरी और ना ही टस से मस हुआ। "भाई उठ जा यार, साढ़े पांच गया है यार !" विशाल ने इस बार पूरा प्रयास किया, उसकी रजाई खींची और पैरों की तरफ फेंक दी। सरसराती हवा ने उसके गर्म बदन को छुआ तो वो उठ कर बैठ गया। जनवरी का महीना था ठण्ड अपनी औक़ात पर थी। सुबह पाँच बजे उठना इस महीने में मुर्गे को भी भारी लगता है, सात बजे से पहले उसकी भी बांग दर्बे से नहीं निकलती फिर इंसान का बेवजह 5 बजे जग जाना, कहाँ की बुद्धिमानी थी ? ख़ैर इस वक़्त तो ये दोनों ही दर्जे में मुर्गे से नीचे हो गए थे क्योंकि इनका जगना भी कुछ बेवजह जैसा ही था। पास की टेबल पर रखे मोबाइल को रिहान ने उठाया,टाइम चेक किया और रजाई उठाकर फिर से अपने आपको ढकते हुए बोला-"अभी पाँच मिनट कम है यार, साढ़े पाँच बजने में।" विशाल आयने के सामने खड़ा अपने आपको सँवारा रहा था। रिहान के आलसीपन को देखकर वो उसकी तरफ मुड़ा-"भाई पाँच मिनट होने में एक घण्टा नहीं लगता है, उठकर खड़े होगे, पाँच मिनट हो जायेंगे।" इतना कहकर वह फिर आयने में झांकने लगा। वह अपने हर हिस्से से तैयार हो चुका था, सिर्फ बचा था तो रिहान का तैयार होना। "भाई आज ना मेरा बिलकुल मन नहीं हो रहा है,जाने का ।" रिहान ने बिना रजाई से मुँह बाहर निकाले अपना फैसला विशाल तक पहुंचाया। यह सुनकर जैसे विशाल के पैरों से ज़मीन खिसक गई हो। वो हर काम छोंड़ सीधे रिहान के विस्तर के ऊपर आ गया। और उसे जगाते हुए कहने लगा-" प्लीज़ भाई ऐसा मत बोल यार, अगर तूही ऐसा बोलेगा तो मेरी मोहब्बत का तो 'द एंड' यहीं हो जायेगा। प्लीज़ भाई उठ जा,...प्लीज़ यार।" विशाल उसे ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लगा। "क्या मोहब्बत ? कैसी मोहब्बत ?........साला पंद्रह दिन से देख रहे हैं हम, रोज सुबह इतनी ठंडक में चार किलोमीटर दूर गाड़ी चलाकर सिर्फ उसे देखने जाते हो और देख कर वापस आ जाते हो,.....न हलो, न हाय, न दुआ न सलाम । 'द एंड' की बात करते हो,.....अरे मियाँ तुम्हारी मोहब्बत का द एंड होगा नहीं, हो चुका है , ठप्पा लग गया है तुम्हारी मोहब्बत पे द एन्ड का,...समझे।" पन्द्रह दिनों का गुस्सा रिहान ने एक ही बार में निकाल दिया। रिहान के मुँह से निकले शब्दों ने विशाल को नकारत्मकता की झलक दिखा दी थी। "साला जब अपना दोस्त ही अपनी तारीफ करने में लगा है, तो अब किसी और की क्या सुनना।" विशाल ने उदास लहजे में कहा और मुँह लटका कर एक साइड में बैठ गया। रिहान भी खामोश बैठा था। "ठीक है भाई मत जा,....यही सोंचकर ज़िन्दगी काट लेंगे की कोई नैना मेरी ज़िंदगी में थी ही नहीं।" विशाल फिर उसी कुर्सी पर पैर रखकर जूतों की बद्धियाँ वापस खोलने लगा। उसका गुस्से और मायूसी से लटका हुआ चेहरा रिहान से देखा न गया। "ठीक है चलुंगा,....पर एक शर्त है !" रिहान रजाई एक तरफ रखते हुए बोला। " भाई मुझे तेरी सारी शर्तें मंज़ूर हैं,..बता क्या चाहिए ?" विशाल, रिहान के साथ चलने की बात सुनकर ख़ुशी में बह गया । "शर्त ये है, अगर आज तुमने उससे अपने दिल की बात नहीं कही, तो अपने लिए कोई दूसरा मॉर्निंग फ्रेंड ढूँढ लेना, मैं आज के बाद फिर कभी नहीं जाऊँगा।" रिहान ने अपनी शर्त सुनाई और उठकर खड़ा हो गया। विशाल थोड़ी देर तो सोंचता रहा फिर पूरे जोश के साथ बोला-"ठीक है फिर, तू तैयार हो जा इसी बात पर, आज या तो आर या तो पार।" रिहान ने पास में टँगी तौलिया हाथ में ली और बाथरूम की तरफ चल दिया। "और हाँ मंजनू की औलाद नाम याद कर ले....उसका नाम नैना नहीं, ऐना है ।" विशाल अपनी गलती पर ध्यान देते हुए बोला-" क्या ! मैंने नैना कहा था ?" रिहान तब तक बाथरूम में जा चुका था। जनवरी की कड़कड़ाती ठण्डक, धुंध से लदा आसमान सरसराती ठण्डी हवा को पार करते हुए विशाल और रिहान जॉगिंग एरिया पर तो किसी तरह पहुंच गए थे पर बेवजह एक जगह ठण्डक में खड़े रहना भी भारी था। सुबह के 6 बज चुके थे इक्का-दुक्का, जिन्हें शायद सच में फिट रहना पसन्द था दौड़ते और व्यायाम करते नज़र आने लगे थे। रिहान बाइक पर बैठा हाथों को आपस में रगड़ कर गर्म रखने की प्रक्रिया में लगा था। विशाल बाजू में खड़ा ऐना के आने का इंतज़ार कर रहा था। बार-बार जिराफ़ जैसी गर्दन उठाकर वह जितनी दूर हो सकता था, देखने का प्रयास कर रहा था, पर धुंध इतनी की दूर का ना तो अनुमान लगा सकता था और ना ही साफ-साफ देख सकता था। "यार मुझे लगता है आज वो आने वाली नहीं है ।" रिहान थरथराते हुए बोला। विशाल अजीब तरह के भाव चेहरे पर बिखेर कर रिहान की तरफ देखने लगा। "ऐसे क्यों देख रहा है ?.....आज ठण्ड देख कितनी है, इसी वजह से मुझे लगा आज शायद ना आय।" रिहान अनुमान का गठ्ठर विशाल के ऊपर लादते हुए बोला। "भाई प्लीस यार....,उल्टे-सीधे ख़्याल लाने पर मज़बूर मत कर। वैसे भी आज शर्त को लेकर मेरी फटी पड़ी है, ऊपर से तू भी...।" विशाल हाथ जोड़ते हुए बोला। "जानता है ? कल अब्बू का फोन आया था, हर बार की तहर अच्छी-अच्छी बातों की नसीहत दे रहे थे,....मुझसे कहने लगे, 'अच्छे से अपनी पढ़ाई पर ध्यान देते रहना और टाइम निकाल कर नमाज़ भी पढ़ लिया करना ।" रिहान थोड़े अफ़सोस भरे लहज़े में बोला। विशाल ने एक बार फिर उसी अंदाज़ के साथ रिहान पर नज़र दौड़ाई। "मन तो आया फोन पर ही कह दूँ....,'अब्बू पढ़ाई एकदम मस्त चल रही है, और नमाज़ का तो पूँछों मत....,अब तो नमाज़ के साथ-साथ तिज़ारत भी ख़ूब हो रही है।' पर दिल की बात ज़ुबान पर ना ला सका।" रिहान का लहज़ा हीन भावना से भरा था। रिहान की बात सुनकर विशाल हँसने लगा। तभी उसकी नज़र सामने से लम्बे-लम्बे

क़दमो से चली आ रही ऐना पर पड़ी। धुंध इतनी थी की वो जब काफ़ी पास आ गयी तब नज़र आई, ऐना को आते देख विशाल ने रिहान को कोहनी से टक्कर मारी और उसे अवगत कराया। पर ये क्या आज तो ऐना के साथ कोई और लड़की भी है। ऐसे तो रोज़ उसकी मम्मी उसके साथ आती थीं जो थोड़ी देर व्यायाम करके साइड की बेंच पर बैठकर आराम करने लगती थीं और ऐना 'हनुमान मन्दिर' तक अकेली वॉक करने जाती थी और यही वो समय था जिसमें विशाल अपने दिल का हाल ऐना से बयाँ कर सकता था। पर आज तो पासा ही पलटता नज़र आ रहा था। विशाल और रिहान को सामने देख ऐना के तेज़ क़दम कुछ धीरे होने लगे। उसने कानों में हेडफोन लगा रही थी और ऊपर से नीचे तक अपने आपको गर्म लिबास से ढक रखा था। पास से गुज़री तो उसकी नज़रें सिर्फ और सिर्फ विशाल पर थीं, और विशाल की नज़रें ऐना पर। इसके विपरीत का नज़ारा और भी हसीन था। रिहान भी उस नई लड़की पर पूरा फोकस किए हुए था बदले में वो लड़की भी एक टक रिहान को ही देख रही थी। जब तक दोनों धुंध में खो न गयीं चारों की नज़रें एक दूसरे पर जमी रहीं। "यार आज कैसे कहें ? आज तो कोई साथ में है उसके ।" विशाल ने रिहान से पूँछा। पर ये क्या रिहान तो ख़ुद घायल हुआ पड़ा था। विशाल ने जब रिहान को कोहरे में झाँकते हुए देखा तो वो बोला-"बस कर बे वो जा चुकी है, कोहरे के सिवा कुछ नहीं है आगे,........साला हमसे पहले तो तुम लग गए हो अपनी लव स्टोरी बनाने।" "भाई तूने देखा,....एक टक वो मुझे ही देख रही थी ? कसम से यार...वो तो ऐना से भी खूबसूरत है।" रिहान ने गोते लगाना शुरू कर दिया था। "ऐसा कर भाई, तू पहले अपनी सेटिंग कर ले हम तो रोज आते हैं।" विशाल गुस्से में बोला। "नहीं भाई ऐसी कोई बात नहीं है । आज न अल्लाह कुछ ज़्यादा मेहरबान लग रहा है,....जा जाके बोल के आ।" रिहान ने विशाल का हौसला बढ़ाते हुए कहा। "पर यार उसके साथ जो है.....कहीं ऐसा तो नहीं वो हमें नोटिस कर रही हों ?" विशाल की हिम्मत अभी अधूरी थी। "अबे इश्क़ में नोटिस ही तो करना होता है पागल।अब जा।" रिहान उसके अंदर दम भर रहा था। "पर यार अगर......।" "एक्सक्यूज मी..!" विशाल कुछ और बोलता इससे पहले एक मधुर और सुरीली आवाज़ ने उसे पीछे मुड़ने पर मज़बूर कर दिया। दोनों ने पीछे मुड़कर देखा तो ऐना और उसके साथ वाली लड़की ठीक उनके सामने खड़ी हैं। दोनों को अपने इतना नज़दीक देखकर विशाल और रिहान के तोते उड़ गए। "आप थोड़ा यहाँ आएंगे ?" ऐना ने विशाल की तरफ उँगली उठाई तो ठण्ड में भी उसके पसीने छूट गए। "कौन मैं ?" विशाल अपने आपको चिन्हित करते हुए बोला। "हाँजी आप।" ऐना ने मैं का जवाब दिया। विशाल ने रिहान को देखा और साथ आने को कहा। ऐना रिहान को वापस रोकते हुए बोली-"वो नहीं, सिर्फ आप। आप वहीं रुकिए।" रिहान वापस बाइक पर बैठ गया और विशाल का हौसला बढ़ाते हुए इशारे में बोला-"ऊपर वाला आज साथ है।" विशाल ने आसमान की तरफ सिर उठाया, मन में 'जय माता दी' बुदबुदाया और ऐना के नक्श-ए-क़दम पर चल दिया। ऐना पीछे मुड़ी और अपनी फ्रेंड से बोली-" दीप्ती तुम यहीं रुको एक मिनट।" दीप्ती वहीं रिहान के पास खड़ी हो गई। विशाल ठण्ड से ज़्यादा ऐना के उल्टे-सीधे इशारों से कांप रहा था, लेकिन दिल को मज़बूत करता हुआ वो ऐना के पीछे-पीछे चल दिया। रिहान मन ही मन बड़ा खुश नज़र आ रहा था उसने बाइक के शीशे में उँगलियों से अपने बाल सुधारे और धीमी-धीमी आवाज़ में गुनगुनाने लगा। पास में खड़ी दीप्ति, रिहान के हाव-भाव पढ़ रही थी। "हाय...! मय नेम इज़ दीप्ती ।" दीप्ती ने रिहान को अपना परिचय दिया और उसकी तरफ अपना हाथ बढ़ाया। "हाय...! मैं रिहान, रिहान क़ुरैशी।" रिहान ने दीप्ती की तरफ हाथ बढ़ा कर उससे हाथ मिलाया। "आप विशाल के दोस्त हैं?" दीप्ती, रिहान के और क़रीब आके पूँछने लगी। "आप जानती हैं विशाल को ?" "नहीं।...आय मीन ऐना ने मुझे उनके बारे में बताया था।" दीप्ती ने लड़खड़ाती हुई आवाज़ में जवाब दिया।

"हाँ हम दोस्त हैं । ...पर आप कौन हैं ? आपको हमने पहले कभी नही देखा ऐना के साथ।" रिहान उसकी बातें ज़्यादा सुनना चाह रहा था। "वो मेरे मामा की लड़की है। आज मामी की तबियत सही नहीं थी, तो मैं जॉगिंग पर चली आयी" दीप्ती ने जवाब के साथ कारण भी बताया। "बहुत अच्छा किया......।" रिहान के मुँह से फटाक से निकल गया। "मतलब..?" दीप्ती ने मुस्कराते हुए पूँछा। "मतलब...,मतलब नहीं बताऊंगा मैं।" "क्यों?" "क्योंकि इस मतलब में कोई और भी मतलब छुपा है ।" "अच्छा !" दोनों आपस में बातें करते रहे और मुस्कुराते रहे। जैसे कि एक दूसरे को बरसों से जानते हों। उनकी वार्तालाप होती रही तब तक विशाल भी ऐना के साथ वहाँ आ गया, इस बार अन्दाज़ कुछ खुशमिजाज से थे दोनों के। आते ही ऐना ने कहा-"चल दीप्ती।" ये सुनकर रिहान का चेहरा ही बदल गया। "ओक्के बाय रिहान, कल मिलते हैं।" दीप्ती ने रिहान से विदा ली और ऐना के साथ हो ली। "हे भगवान मैंने कौन से ऐसे पुण्य किए थे कि ऐना जैसी लड़की मुझे मिल गई, मेरे कुछ कहने से पहले ही उसने अपने दिल की बात कह दी। हे भगवान,..कैसे तेरा शुक्रिया अदा करूँगा?" विशाल ने अपने और ऐना के बीच हुए मिलाप के बारे में रिहान से बताया। लेकिन रिहान तो कहीं अपनी ही दुनिया में खोया था। उसे एक दम खामोश देखकर विशाल ने पूँछा-"अब तुझे क्या हुआ भाई?" "बोल बे क्या हुआ तुझे ?" पहली बार में जवाब न मिलने की वजह से विशाल ने फिर उससे पूँछा। "भाई मैं सिर्फ इतना ही कहुंगा....कल चाहे ठण्डी हो, चाहे साथ-साथ आँधी तूफान भी आ जाय, चाहे बर्फ ही क्यों न गिरनी शुरु हो जाय, तू मुझे उठा ज़रूर देना।" रिहान ने पूरे होश-ओ-हवाश में कहा, तो विशाल की आंखें खुली की खुली रह गयीं।






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