निशानी
निशानी


"मम्मी जल्दी ढूंढिए ना, आप कितना टाइम लगा रहीं हैं। मेरी बस आने वाली ही होगी।" "बस मेरा बच्चा एक मिनट।" "मैंने कहा था न आपसे रिपोर्ट कार्ड मेरा सही से रखना, अभी खो दिया ना?" "बेटा मैंने यहीं पर रखा था, इसी आलमारी में। जाने कहां चला गया।" बाहर गेट पर बस के हार्न की आवाज़ सुनाई दी तो मिन्नी दौड़ती हुई बाहर निकल गई। उसे बाहर जाता देख नीता ने वहीं कमरे से तेज आवाज़ में कहा। "मिन्नी बस एक मिनट रुक मैं आई।" नीता जल्दी-जल्दी आलमारी की सारी चीजें उथल-पुथल करने लगी, पर रिपोर्ट कार्ड उसे कहीं नहीं दिखा वो काफी परेशान होने लगी। एक बार फिर से बस का हार्न उसके कान तक शोर मचाता हुआ पहुँचा तो छटपटा कर एक फाइल उसके हाथ से छूट कर नीचे फ़र्श पर गिर गई जिसमें रखे कई सारे कागज़ात फ़र्श पर बिखर गए, कागज़ातों के साथ मिन्नी का रिपोर्ट कार्ड भी उछल कर सामने आ गया। नीता ने लपक कर कार्ड को उठाया और दौड़ते-हाँफते गेट के बाहर खड़ी मिन्नी की स्कूल बस तक जा पहुँची। मिन्नी बस की खिड़की के पास ही बैठ हुई थी इसलिए नीता ने बाहर से ही रिपोर्ट कार्ड पकड़ाते हुए कहा-"ये ले, पुरानी वाली फाइल में रख दिया था इसीलिए नहीं मिल रहा था, और आज लंच वापस मत लाना,... बस चल दी थी। ....."तेरी मनपसन्द चीज़ है आज।" जब तक मिन्नी की बस नज़रों से ओझल ना हो गई, नीता वहीं खड़ी रही। नीता वापस कमरे में लौटी तो देखा सारी चीजें तितर-बितर हैं रिपोर्ट कार्ड ढूँढने के दौरान तो उसे बिल्कुल भी होश न था कि उसने घर की ये हालत कर दी है, पर जब होश में आई तो बिखरे हुए सामान को देख कर उसके फिर से होश उड़ गए।
"हे भगवान,ये क्या बना दिया मैंने......!" खुद से सवाल करते-करते वो बिखरी हुई चीज़ों को बटोरने लगी। हताश और परेशानी में गुम होकर वो चीज़ो को समेट कर आलमारी में फिर से वापस उचित स्थान पर रख रही थी कि तभी उसकी नज़र आलमारी के छोटे से लॉकर पर गयी जिसमे उसकी कुछ क़ीमती चीजें रखी हुयी थी। सारे कागज़ और फाइलों को एक तरफ रख उसने, चाबी उठाई और लॉकर को खोला। अपनी ज़िन्दगी की जो सबसे क़ीमती चीजें थीं उन्हें बहुत प्यार से वो एक-एक करके बाहर निकालने लगी। उन क़ीमती चीजों में उसका मंगलसूत्र, घर के कागज़ात और एक छोटा-सा गिफ्ट बॉक्स रखा हुआ था। कागजातों को वहीं लॉकर में छोड़, उसने मंगलसूत्र और गिफ्ट बॉक्स को उठाया और ले जाकर बेड पर बैठ गई। मंगलसूत्र को उसने बड़े स्नेह के साथ अपने हाथ में उठाया अपनी पलकों पर छुआया और फूट-फूट कर रोने लगी। उसके विलाप से स्पष्ट था कि उसके ह्रदय में एक ऐसे ज़ख्म ने जगह बना रखी है जो एक स्त्री के लिए श्राप होता है। दो साल पहले यही मंगलसूत्र उसके गले की शोभा बना हुआ था जो आज उसके दुख का कारण है। दो साल पहले नीता ने एक सड़क दुर्घटना में अपने पति विशाल को हमेशा के लिए खो दिया था। सबसे कीमती और अमूल्य चीज़ उसके लिए कुछ थी तो वो था विशाल, पर अफसोस इस कीमती चीज को वो सहेज कर लॉकर में नहीं रख सकती थी, अगर रख सकती तो आज शायद विशाल उसके साथ होता, पर जीवन एक चक्र है जिसे चलने की आदत है, इसे रोका या सहेजा नहीं जा सकता और करोड़ो जिन्दगियां इसी मन्त्र के सहारे चलती चली जा रही हैं। उसके दुःख का भागीदार तो कोई नहीं था पर इक्का-दुक्का लोग अक्सर आकर उसे नए जीवन और नए भविष्य को जीने की सलाह दे जाते थे जिसे वो बड़े प्यार से एक कान से सुनती और दूसरे कान से निकाल देती थी।
अपने भविष्य को उजागर करने के चक्कर में वो मिन्नी के भविष्य से खेलना नहीं चाहती थी। वो नहीं चाहती थी कि वो कोई ऐसी राह अपनाए जो उसकी मिन्नी को अंधकार की तरफ खींच ले जाए, ऊपर से विशाल अभी भी उसकी नस-नस में बसा था और एक ह्रदय में दो रक्तो का दौड़ना भी असम्भव था। मंगलसूत्र को एक तरफ रख कर उसने छोटे से गिफ्ट बॉक्स को उठाया, उसको खोला तो आँखों में ठहरे आँसू फिर से छलक गए। विशाल की सबसे प्यारी निशानी और नीता की सबसे पसंदीदा अंगूठी आज भी वैसी की वैसी ही है जैसी विशाल ने उसे अपनी पहली सालगिरह पर दी थी। विशाल के गुजर जाने के बाद वो एक दम जिंदा लाश हो गई थी किसी को नहीं लगता था की वो कभी इस ग़म से उभर पाएगी यहाँ तक कि नीता भी इस ग़म से उभर पाने में असक्षम थी वह कभी विशाल की फोटो देखती तो कभी उसकी चीजें और घण्टों आँसू बहाती। कई हफ्ते उसके इसी कलह में गुजरते रहे लेकिन जब मिन्नी के आँसू भूख बनकर उसके सामने आए तो वह हक्का-बक्का रह गई, कुछ दिनों तक तो मिन्नी को पास-पड़ोस के लोग खिलाते-पिलाते रहे पर बिना मतलब संसार में कोई किसी का नहीं होता। मिन्नी के आँसू ने उसे एहसास दिलाया कि अब उससे ज़्यादा मिन्नी के आँसू कीमती हैं। मिन्नी के आँसू उसके ह्रदय में उस दिन यूँ बैठे कि उसने विशाल की सारी चीजों को आग लगा दी और कसम खा ली कि उसे अब रोज-रोज याद करके नहीं रोएगी। निशानी के तौर पर गर उसने कुछ बचा कर रखा था तो एक था मंगलसूत्र और दूसरी उसकी पसंदीदा अंगूठी।
जब तक विशाल था तब तक तो उसे कभी कोई नौकरी और ना ही कोई काम करने की ज़रूरत पड़ी पर उसके गुजर जाने के बाद आए हालातों ने उसे पैसे कमाने के लिए मजबूर कर दिया। ख़ुद के पेट के लिए तो वो कुछ भी कर सकती थी पर बात मिन्नी के परवरिश की थी जिसमे वो कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती थी। पढ़ी-लिखी होने के साथ नीता सिलाई-बुनाई भी अच्छी कर लेती थी इसलिए घर पर ही उसने बुटिक का काम शुरू किया और धीरे-धीरे उससे उसकी वो सारी ज़रूरतें पूरी होने लगीं जो उसे और मिन्नी को चाहिए होती थीं। धीरे-धीरे वक़्त भी गुजरता चला गया और यादें भी धुँधली होने लगी थीं। पर आज भी जब कभी विशाल की ज़्यादा याद आ जाती है तो वो इन निशानियों को देख लेती है और ह्रदय में पनप रहे ज़ख्म को कम कर लेती है पर इन चीजों से भी उसका मन सिर्फ उदास ही होता है इसलिए इन चीजों के बजाय वो विशाल की सबसे अच्छी निशान को देखती है और उसे गले लगाकर हँस-रो लेती है और वो निशानी है 'मिन्नी', विशाल सबसे खूबसूरत निशानी।