Sameer Faridi

Horror

4.5  

Sameer Faridi

Horror

पुराना कुँआ

पुराना कुँआ

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"इतनी ज्यादा हालत खराब थी पर आपने बताना उचित नहीं समझा भाई साहब।"

"नीतू मैं तुम लोगों को फिर से उसी मुसीबत में नहीं घसीटना चाहता था।"

"अनीता मेरी बेटी है भाई साहब, आप ये बात हमसे कैसे छुपा सकते हैं ?" आपको किसने हक दिया उसकी जिंदगी के साथ खेलने का?"

नीतू ने एक दम चुभ जाने वाली बात अपने बड़े भाई साहब विनोद से कही तो उनके मुंह से फिर कोई जवाब न निकला।

"मैंने पहले ही कहा था आपसे कि उसे चंदनपुर बिना हम लोगों के मत जाने दो पर आपने उसकी ज़िद के आगे मेरी एक न सुनी।" नीतू ने अपने पति राजेश को ताना देते हुए कहा।

"उसकी छुट्टियां थीं इसलिए मैंने उसे मना नहीं किया था लेकिन मुझे क्या पता था कि ऐसा कुछ भी हो जायेगा।" राजेश ने जवाब दिया।

"तुम लोग परेशान ना हो, हमने बाबा जी को बुलवा भेजा है वो आते ही होंगे।" नीतू की भाभी ने नीतू को थोड़ी राहत दी तो वो पास की चारपाई पर बेहोश पड़ी अपनी बेटी अनीता के पास बैठ गई और उसके माथे को सहलाने लगी। 

अनीता एक दम सचेत चारपाई पर सीधी-सीधी पड़ी हुई थी उसकी माँ ने जैसे ही उसके माथे को सहलाना शुरू किया एक अलग प्रक्रिया अनीता के अंदर होने लगी। उसकी आँखें पूरी तरह से बंद थी, पर उसने धीरे-धीरे हंसना शुरू कर दिया। उसकी हंसी को देख कर सब भौचक्के रह गए। नीतू कुछ बोलती इससे पहले अनीता की हंसी और तेज हो गई और हंसते-हंसते कहने लगी- "कैसी हो नीतू ?" 

इतना सुनकर नीतू डर के मारे चारपाई से उठ खड़ी हुई। उसके पसीने छूट गए । पर अनीता अभी भी आंख बंद किए हुए हंस रही थी। अचानक हंसते-हंसते वो ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। नीतू हिम्मत करके फिर उसके पास बैठ गई और खुद भी रोने लगी। राजेश ने नीतू को चुप कराया मगर अनीता पर उसका कोई बस नहीं चला। सब सहमे और डरे हुए पास में खड़े थे कि तब तक नीतू के चाचा जी बाबा जी को लेकर आ गए। उन्होंने अनीता के पास खड़े सभी लोगों को दूर हटने को कहा और बिना कुछ बोले चुपचाप उसके सिराने बैठ गए। सूरज डूब चुका था रात की पहर शुरू हो चुकी थी। गाँव-पड़ोस में सन्नाटा हो चुका था । इक्का-दुक्का लोग अनीता की हालत देखने के लिए आए हुए थे। बाबा ने अपनी कमीज से एक ताबीज़ निकाला और अनीता के बाजू पर बांध दिया। चार-पांच नींबू लिए और एक अजीब सी धूंनी उसकी चारपाई के आस-पास सुलगाने लगे। सभी चुपचाप खड़े उनके इस कारनामे को देखे जा रहे थे। नीतू दूर खड़ी अपनी बेटी को देख कर सिसकियाँ भर रही थी। बाबा पुनः उसके सिराने बैठ गए । अनीता अभी भी आंख बंद किए हुए थी और पूरी तरह से पसीने में तरबतर थी पर होंठे चल रही थी जैसे वो कुछ कह रही हो। बाबा उसके पास अपना मुंह ले गए और कुछ पढ़ने लगे। बाबा जी कुछ पढ़ ही रहे थे कि अनीता की चलती होंठे रुक गई और एक अजीब सा चेहरा बना कर वो फिर जोर जोर से हंसने लगी। अजीबो-गरीबों हंसी देख कर कुछ लोग हैरान रह गए। हँसते-हँसते वह उठकर बैठ गई। घुटनों में उसने अपना चेहरा छुपा लिया और एक दम खामोश हो गई।

"बता क्यों इस बच्ची को परेशान कर रहा है, इससे क्या चाहता है?...बता..?

बाबा जी ने पूरी दृढ़ता से पूछा।

पर अनीता ने एक लफ्ज़ न बोला।

"चुप क्यों है, जवाब दे ? क्यों परेशान कर रहा है इस बच्ची को ?" बाबा के लहजे में गुस्सा था इस बार।

 इस बार बिना घुटनों से मुँह उठाए अनीता बोली।

 "आज सालों बाद मुझे इसमें अपनी नीतू नज़र आई थी, इसलिए मैं चला आया।"

 अनीता के अंदर बसे शैतान ने जवाब दिया।

 "वो नीतू तुम्हारी नीतू नहीं, अनीता है, तुम्हारी नीतू तुम्हारे साथ उसी कुँए में जान देकर मर गई थी।"

बाबा को उस शैतान के साथ हुए सारे हादसे के बारे में पता था इसलिए अपनी जानकारी के अनुसार उन्होंने सटीक जवाब दिया। पर शैतान ये सुनकर जोर जोर से हँसने लगा। उसकी हंसी इतनी डरावनी और इतनी निडर थी कि आस पास खड़े लोग भी डर गए। हँसते-हँसते उसने बाबा की बात का जवाब दिया- "ये मेरी नीतू है और मैं इसे अपने साथ ले जाऊँगा।"

इतना कहते ही चारों तरफ अंधेरा छा गया, घर की लाइट तो पहले से ही गई हुई थी चराग़ भी सारे एक-एक करके बुझ गए। सबके अंदर हलचल पैदा हो गई सब डर के मारे सहम गए। तभी दरवाजे के खट्ट से खुलने की आवाज सुनाई दी।

राजेश ने जल्दी-जल्दी अपना मोबाईल फोन निकला और टॉर्च जलाकर रौशनी कर दी। रौशनी की चमक में नीतू ने चारपाई पर नज़र दौड़ाई तो उसकी चीख निकल गई।

उसकी डरी हुई आवाज सुनकर सब उसकी तरफ देखने लगे। सबने चारपाई पर नज़र दौड़ाई तो सबके होश उड़ गए, चारपाई खाली पड़ी थी, चारपाई पर कुछ भी नहीं था।

"अनीता !...मेरी बच्ची, कहां गई मेरी बच्ची?" नीतू जोर जोर से चीखने चिल्लाने लगी।

"देखो किसी कमरे छुप गयी होगी जाकर।" 

बाबा ने बताया तो सब जल्दी-जल्दी कमरों की तलाशी करने के लिए चल दिए। 

पर सबकी जुबान पर एक ही जवाब था।

'कमरों में कोई नहीं है।'

ये सुनकर बाबा जी भी थोड़ा सहम गए। 

"बाबा मेरी बच्ची..., कहाँ गई मेरी बच्ची।"

नीतू रो-रोकर बाबा जी से पूछने लगी।

"वो उसे अपने साथ उसी पुराने कुँए पर ले गया होगा।"

बाबा ने जवाब दिया।

"क्या ?" राजेश ने आश्चर्यजनक शब्दों में कहा।

बाबा जी ने बिना कुछ बोले सिर हिला दिया।

"मुझे मेरी बेटी चाहिए, मुझे मेरी अनीता चाहिए।"

नीतू ज़ोर-ज़ोर से रोने चिल्लाने लगी।

"रोने-धोने से कुछ नहीं होगा, इससे पहले की कोई अनहोनी हो जाए, हमें जल्द से जल्द कुँए पर पहुंचना चाहिए।"

बाबा जी ने उचित राय दी।

रात काफी हो चुकी थी चाँद की रौशनी भी छुपकर बैठी हुई थी। हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा था। ऐसे में पुराने कुँए तक जाना मौत को दावत देने के बराबर था। वो इलाका इतना बीरान और सूनसान था कि दिन में भी उधर किसी की जाने की हिम्मत नहीं होती थी। पर अनीता की जिंदगी का सवाल था जिसे मद्देनजर रखते हुए राजेश, बड़े भाई साहब,चाचा जी और बाबा जी कुँए की तरफ चल दिए।

कुँआ गाँव से दूर महुए वाली बाग में था, कोई रोशनी नहीं थी खेतों को पार करते हुए चारों लोग महुए वाली बाग तक तरफ बढ़ते चले जा रहे थे। राजेश ने हाथ में मोबाइल की टार्च थाम रखी थी और चाचा जी एक लालटेन लिए आगे आगे चल रहे थे। दूर कहीं कुत्तों के भौंकने की आवाजें आ रही थी पास के खेतों से सियारों की 'हुआ','हुआ'...जारी थी।

सब तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। बाबा जी कुछ पढ़ते हुए लम्बे-लम्बे क़दमो से बढ़ते चले जा रहे थे। बाग से थोड़ी दूर पहले बाबा जी के कदम अचानक रुक गए। 

"क्या हुआ बाबा?" राजेश ने पूछा।

"वो इतनी आसानी से हमें नही मिलेगी, कुछ बातें हैं जिन्हें आप लोग ध्यान कर ले।" बाबा जी सचेत करते हुए बोले।

"कैसी बातें?" भाई साहब ने पूछा।

"जुम्मन चाचा की लड़की के मरने के बाद वो कुँआ पिछले साल पूरी तरह से तन्त्र-मन्त्र से बंद कर दिया गया था। पर उस जालिम की रूंह यहीं बाग में रह गई थी। अनीता भूले भटके यहाँ महुआ लेने आ गयी थी जिसकी खुश्बू उसे उसकी नीतू जैसी लग गयी जिसका वो आशिक हो गया।....तो ध्यान रहे वो इधर-उधर बाग में ही होगा। हमें उसे पूरी बाग में ढूँढना है सिर्फ कुँए पर ही नहीं क्योंकि कुँए में एक जान या कोई एक मौत नहीं हुई है, ऐसी बहुत सी रूंहें उसमें रहती हैं, तो उस कुँए से थोड़ा दूर ही रहना।"

इतना कह कर बाबा जी बाग में प्रवेश कर गए उनके क़दमो के चिन्हों को पीछा करते-करते सभी चल दिए। 

थोड़ा ही बढ़ना हुआ था की किसी के रोने की आवाज सुनाई दी।

"कोई कुछ भी नहीं बोलेगा, सिर्फ सुनते और देखते जाना है।"

बाबा की बात का पालन हुआ सभी चुपचाप आवाज की तरफ चल दिए।

रोने की आवाज धीरे-धीरे नजदीक होती जा रही थी। कुँए के पास से गुजरने पर बाबा जी ने सबको इशारे से दूर बने उस कुँए का संकेत दिया और फिर चलने लगे। थोड़ा बढ़ना हुआ कि चाचा जी की लालटेन की लपटें कम पड़ने लगी थीं।

"अब इस लालटेन को क्या हुआ?" भाई साहब ने कहा।

"आप लोग टार्च के सहारे आगे बढिए मैं लालटेन को सही करता हूँ।"

चाचा जी की बात मान कर सब लोग आगे चल दिए।

दबे पांव वो लोग उस रोती हुई आवाज की तरफ चलते चले जा रहे थे। चाचा जी काफी पीछे छूट चुके थे। वो लालटेन को सही करने में लगे थे कि तभी उनको एक आवाज सुनाई दी।

" क्या हुआ चाचा जी ?" 

पीछे से आई किसी लड़की की आवाज सुनकर चाचा जी का गला सूख गया। उनके हाथ पैर कांपने लगे। पूरी हिम्मत करके वो पीछे मुड़े, तो देखा पीछे कोई नहीं है। गले में डर का पानी घूटते हुए वो उठ खड़े हुए। अंधेरा काफी था ज्यादा दूर देख पाना भी सम्भव ना था। लालटेन की रौशनी से सिर्फ खुद का चेहरा देखा जा सकता था। हिम्मत करके वो अपने चारों ओर देखने लगे की तभी फिर से वही आवाज आई-"क्या हुआ आमोद जी ?"

इस बार अपना नाम सुनकर उनके होश उड़ गए। डर के मारे उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। वो बिना कुछ बोले बाबा जी की तरफ चल दिए। तभी कोई ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा जैसे ठीक उनके क़दमो के पास। डर के मारे उनकी चीख निकल गई। उनकी चीख सुनकर तीनों लोग दौड़कर उनके पास आ पहुँचे। 

"क्या हुआ तुम इतने डरे हुए क्यों हो ?"

बाबा ने आते ही पूछा। 

"मुझे किसी ने आवाज दी थी , मेरा नाम लिया और फिर रोने लगा।" 

चाचा जी ने लड़खड़ाती हुई आवाज में जवाब दिया।

कोई कुछ और पूछता वो रोने की आवाज फिर से गूँजने लगी। सब सहम गए। बाबा ने ध्यान दिया तो पता चला आवाज शायद कुँए से आ रही थी। सब जल्दी-जल्दी दौड़कर कुँए तक पहुँचे। सबने कुँए पर ध्यान लगाया तो पता चला कि ये तो अनीता की आवाज है।"कोई है ? पापा मुझे बाहर निकालो....कोई सुन रहा है।"

"ये मेरी बेटी है" राजेश ने जवाब दिया।

"बेटा मैं आ रहा हूँ तुम फ़िक्र मत करो।"

राजेश कुँए के अंदर आवाज पहुंचना चाह रहे थे।

"बाबा जी कैसे भी करके मेरी बेटी को बाहर निकालो।"

राजेश ने बाबा से कहा।

"ये कैसे हो सकता है, कुँआ तो पूरी तरह से बंद है, वो अंदर कैसे जा सकती है?"

बाबा ने जवाब दिया तो कुछ पल के लिए सब सोंच में पड़ गए।

"मैं कुछ नई जानता आप कैसे भी करके मेरी बेटी को बाहर निकालो।"

राजेश फरियाद करने लगा।

"पर ये कुँआ खुलेगा कैसे ?"

भाई साहब ने पूछा।

"पापा जल्दी करिए मुझे डर लग रहा है।"

अंदर से अनीता की फिर आवाज आई।

"बाबा जी मैं आपके हाथ जोड़ता हूँ, कैसे भी करके मेरी बेटी को बचा लो।"

राजेश विनती करने लगा था। 

" तुम कैसे भी करके इसे तोड़ने की कोशिश करो मैं मन्त्र जाप करता हूँ।"

बाबा जी ने उपाए बताया और कुँए के चारों तरफ मन्त्र जाप करने लगे।

राजेश ने इधर-उधर नज़र दौड़ाई एक लकड़ी का बड़ा सा लट्ठा ठीक उसके पीछे पड़ा हुआ था। चाचा जी ने लालटेन को एक तरफ रखा और भाई साहब के साथ मिलकर उस लठ्ठे को उठाया। बाबा जी जल्दी जल्दी मन्त्र पढ़ने में लगे हुए थे। तीनों मिलकर उस लठ्ठे से कुँए की दीवार पर चोट करने लगे। काफी देर तक प्रयास करने बाद कुँए की दीवार टूट गई। राजेश ने अंदर झाँक कर आवाज लगाई।

"अनीता बेटा तुम डरना नहीं मैं आ गया।"

अंदर से कोई पहल न हुई।

"अनीता ?"

राजेश ने फिर एक तेज आवाज लगाई। पहल फिर भी कोई नहीं हुई। जब कुछ पहल न हुई तो सबने एक साथ कुँए में आवाज लगाई पर इस बार भी कोई जवाब न आया। तभी अचानक किसी के तेज तेज हँसने की आवाज पूरी बाग में गूँजने लगी। सब डर के मारे काँप गए। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा था कि तभी राजेश का मोबाईल बजने लगा। उसने देखा तो नीतू ने उसे फोन किया था, उसने लपक कर फोन उठाया।

"हाँ हैल्लो जी आप लोग वापस घर आ जाइए अनीता मिल गई है पुराने वाले कमरे में छिपी बैठी थी। और अभी एक दम ठीक है।"

"ये क्या कह रही हो, ये कैसे हो सकता है।"

राजेश की आवाज में पूरी तरह से डर था। वो कुछ और बोलता इससे पहले फिर एक आवाज उनके पीछे से आई।

"पापा ने कुँआ खोल दिया।"

इतना कह कर कोई फिर जोर जोर से हँसने लगा। आवाज अनीता की ही थी जिसे सुनकर राजेश के होश उड़ गए उनके हाथ से मोबाइल छूट कर जमीन पर जा गिराअपनी जिंदगी में झांकने का और इन चोरों जैसे मौकोरस्तों को वारदात अंजाम देने का।।


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