पतंगबाजी

पतंगबाजी

5 mins
732


"आज हवा तेज़ है, पतंग सम्भल ही नहीं रही है। ज़ोर दे दें तो कन्नी टूट जाएगी।"

हवा के तेज़ वेग की वजह से अमन को पतंग के साथ संघर्ष करना पड़ रहा था।

"अबे छोटे तेरे बस की बात नहीं है, सद्दी लपेट ले।"

पास की कुर्सी पर बैठी अमन की बड़ी बहन आहना, उसका मज़ाक बनाते हुए बोली।

"हाँ होने दो, आप अपनी किताब पढ़िए।" अमन झल्लाते हुए बोला।

"मैं तो वही कर रही हूँ, पर तेरी पतंग आज पक्का कटेगी।" आहना ने फिर उसका मज़ाक बनाया।

"आप से क्या मतलब, कटती है कट जाने दो, आप अपना काम करिए।" अमन अब अपने पूरे गुस्से में था।

उसके गुस्से भरे अंदाज़ को ध्यान में रखते हुए आहना ने अपने मज़ाक की क्रिया को अपने पास ही रख लिया।


अमन पतंग उड़ाने का बहुत आदी था, स्कूल से वापस आकर अगर उसे कुछ करना अच्छा लगता था तो वो थी पतंगबाजी। वैसे ये शौक सिर्फ अमन का ही नहीं बल्कि लखनऊ के सारे ही बच्चों का है। ये लखनऊ का वो पसंदीदा खेल है जो नवाबों के समय से चला आ रहा है और आज भी इसकी छाप वैसी ही है। बढ़ती टेक्नोलॉजी के आधार पर अगर बात करें, तो हाँ, इस खेल में कुछ गिरावट हुई है पर लगाव और शौक अभी भी क़ायम है।


"अरे यार ! ये आज फिर मेरी पतंग के पीछे पड़ गया।"

अमन के चिंतायुक्त शब्द आहना के कानों तक पहुंचे लेकिन उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई।

आहना को ख़ामोश देख अमन से रहा न गया।

"आहना दी, इसी बन्दे ने कल मेरी पतंग काटी थी और आज फिर मेरी पतंग के पीछे पड़ा है।"

आहना भाव न देते हुए बोली।

"तो मैं क्या करूँ?"

"इसी ने मोहल्ले में ढिंढोरा पीट रखा है कि पतंगबाजी में कोई इससे पार नहीं पा सकता है।"

अमन ने अपनी पतंग बचाने के लिए एक तीखी चाल चली।

आहना भी आपने मोहल्ले की शान थी सभी अच्छे से जानते थे कि उसके जैसा पतंगबाज पूरे मोहल्ले में नहीं है। फिर वो इतना बड़ा सम्मान कैसे खो सकती थी। इस बात ने उसके अंदर ज्वालामुखी फोड़ दिया था, ना चाहते हुए भी उसे अपने सम्मान के लिए बोलना ही पड़ा।

 "कौन है बहन द टका ?"

किताब कुर्सी पर रख और खड़े होकर वो इधर-उधर देखने लगी। लहज़े में गुस्सा और ज़ुबान पर बेमतलब वाली गाली निकालते हुए उसने पतंग की डोर अमन से अपने हाथ में ले ली।

"ला दे मुझे, देखें मेरे होते हुए दूसरा जांबाज़ कौन पैदा हो गया।"अमन ने डोर आहना को थमा दी।


आहना ने अपने नाज़ुक हाथों में धारदार डोर पकड़ ली और शुरू हो गयी पेंच लड़ाने। पेंच लड़ाने का एक उसूल होता है कि दूसरा पतंगबाज भी आपको पतंग की तरह साफ दिखता रहे, भले ही हमारा पूरा ध्यान पतंग पर क्यों न हो। आहना इस उसूल से अच्छी तरह से वाकिफ़ थी।

पतंग उड़ाते-उड़ाते उसने लम्बी गर्दन करके उस पतंगबाज को देखने की कोशिश कि, लेकिन वो नज़र न आया।

"तू ढील देता रहे।" आहना ने अमन से कहा।

अमन थोड़ी दूरी बनाकर, हाथ में चर्खी लिए हुए खड़ा था।

"ठीक है।"

उसने चर्खी घुमानी शुरू कर दी।

हवा का वेग कुछ ज्यादा ही था, पतंग जितनी ऊपर जा रही थी, पतंग का भार भी उतना ही बढ़ता चला जा रहा था। अब पतंग को सम्भालने के लिए दिमाग के साथ-साथ उसे बल का भी प्रयोग करना पड़ रहा था।

"थोड़ी चर्खी और खाली कर।" आहना ने बिना अमन को देखे कहा।

"ढील कैसे दूँ...! पूरी चर्खी तो खाली हो गई है।" अमन ने तेज़ आवाज़ में जवाब दिया।

"क्या दी ? अभी तक एक पेंच नहीं लड़ा पाई हो और पतंग आसमान में पहुंचा दी है।" अमन आहना को ललकारने की फ़िराक में था।

"अरे छोटे उस्ताद, पतंग काटने का मज़ा तभी आता है जब अपनी पतंग आसमान पर हो और दूसरा कोई उसका पीछा करता हुआ तुम्हारे पीछे आ जाए, समझे।" आहना नसीहत देते हुए बोली।

"और अगर उसने ही हमारी पतंग काट दी तो ?"अमन सवाल करते हुए बोला।

"जो आसमान में उड़ते हैं, उन्हें गिराने के लिए उनके बराबर उड़ना पड़ता है।"

अब आहना का पूरा ध्यान पतंग पर था।

" वैसे ये है कौन ?"आहना ने दूसरे पतंगबाज के बारे में पूछा।

"वही नेपाली, जिसने कल पतंग काट दी थी।"

अमन सरक कर मुँडेर तक गया ताकि उसे देख सके।

"अच्छा वो चिन्दी आंखों वाला....इसकी तो....।"

"ओ हो...यहाँ तो पेंच लड़ाए जा रहे हैं!"

आहना की सबसे खास मित्र निगार, उसकी बात कटते हुए आ पहुंची।

"तू कब आई ?"आहना ने एक नज़र निगार पर डाली।

"बस अभी.....और छोटे ?" निगार जवाब देते हुए अमन के पास गई।

"यार निगार थोड़ी हेल्प कर ना?"आहना पतंग उड़ाते हुए बोली।

"हाँ बोल।"

"यार इस नेपाली की पतंग काटनी है, साला बड़ा तीसमारखाँ समझता है अपने आपको....मेरा मांझा कम है इसलिए तेरी हेल्प चाहिए।"

आहना ने कारण बताया।

"अच्छा मैं समझ गई....बता किधर है वो ?"

निगार भी मुँडेर के पास उसे ढूंढने पहुँच गई।

निगार को पता था की ऐसे हालात में उसे नेपाली का बस थोड़ा सा ध्यान काटना है, पतंग अपने आप कट जायेगी।

मुँडेर पर पहुंच कर निगार उस नेपाली से आँख लड़ाने लगी। उसका घर पास में ही था। इसलिए निगार की जाल में वो जल्दी फँसने लगा। उस नेपाली कि नज़रे बार-बार निगार की तरफ आने-जाने लगी थीं।

"शाबास मेरी जान ! एक-दो जलवे और दिखा।

नेपाली की डगमगाती पतंग को देख कर आहना ने निगार की तारीफ की।

अमन चुपचाप वहीं खड़ा, कभी आहना को देखता, कभी पतंग को, तो कभी निगार की तरफ आँखें जमाए रखता, लेकिन कुछ समझ पाना उसके लिए मुश्किल था।

निगार ने अपने सर का दुपट्टा उतार कर मुँडेर पर रखा और आहना से बोली-"इस बार छोड़ना नहीं है...।"

निगार की अदाओं का जादू उस नेपाली पर चल गया था वो निगार को देखकर मुस्कुराने लगा था, बस इतने में पीछे से आहना की एक तेज़ आवाज़ आई ...."काय....पो....चे...!"

निगार और अमन दोनों ख़ुशी से उछलने लगे थे नेपाली की पतंग उसके हाथ की डोर से टूट कर, लहराती, बलखाती हुई उससे दूर जा रही थी। निगार ने अपना दुपट्टा उठाया और उस नेपाली को हाथ के इशारे से बताया कि उसकी पतंग उससे दूर जा रही है।

"ये आपने कैसे किया दीदी ?" अमन ने पूछा।

"सिम्पल है यार.. जो अपने लक्ष्य से डगमगाता है, हवा उसे अपने संग बहुत दूर बहा ले जाती है, समझे बेटा।"

आहना ने आखरी सबक उसे सिखाया और निगार के साथ नीचे चली गयी।

 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational