सुकून की नींद

सुकून की नींद

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"अबे इतनी टाइम कहाँ जा रहा बन-ठन के ?" रोहन ईवनिंग वॉक से लौटा तो उसने देखा अमित सजने-सँवरने में लगा है। "कहीं नहीं...., बस थोड़ा काम से जा रहा हूँ।" अमित बाल बनाते हुए कहने लगा। "यार कल तू इतनी देर से आया था और आज फिर इतनी टाइम कहीं जा रहा है?" रोहन को शायद उचित उत्तर नहीं मिला था इसलिए वो फिर पूँछने लगा। "यार ऑफिस के आलावा और भी तेरा कोई काम है क्या ?" "है एक काम ।" अमित उसकी तरफ़ देखते हुए बोला। "यार दिन में ऑफिस जायेगा, रात में कोई दूसरा काम करेगा, तो फिर सोयेगा कब ?

शरीर को आराम भी तो चाहिए।" टेबल पर रखी बोतल को वो मुँह से लगाते हुए बोला। "शरीर को जितना आराम दो ना, ये उतना ही आलसी होने लगता है, और वैसे भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, तीन घण्टे में भी मुझे शुकून की नींद आ जाती है।" अमित जैकेट पहनते हुए बोला। "चल बकवास मत कर, सच बता कहाँ जा रहा है तू?" रोहन उसके नजदीक आकर पूँछने लगा। "अरे यार कहीं नहीं....तू टेंशन मत ले ,आज जल्दी वापस आ जाऊंगा।" अमित उससे बचकर निकलना चाह रहा था। "बात सिर्फ टेंशन लेने की नहीं है, दोस्त है तू मेरा, मेरा हक़ बनता है कि तुझपर नज़र रखूँ।" रोहन बोतल वापस टेबल पर रखते हुए बोला। "नज़र क्यों रखता है, चलना हो तो बता?" अमित उसकी अंतरात्मा में झांकने की कोशिश कर रहा था। "यार तू देर से लौटता है, इस चिंता में मुझे नींद नहीं आती है, तेरी फिक्र लगी रहती है।" रोहन, अमित की आंखों में आंखे डाल कर कहने लगा। "तू सो नहीं पाता है..! चल, आज तू मेरे साथ चल, ऐसी शुकून की नींद दिलाऊंगा तुझे तू सारी उम्र याद रखेगा।" अमित के शब्दों में आशचर्य और प्रस्ताव का मिश्रण था। "पर कहाँ मेरे भाई ?" रोहन अंदर ही अंदर खुश हो गया था। "अब सवाल नहीं, बस फटाक से तैयार हो जा।" अमित उसे कमरे की तरफ धक्का देते हुए बोला। अमित जल्दी से अंदर गया और कुछ देर बाद बाहर आया।

बाहर अमित गाड़ी लिए उसका इन्तिज़ार कर रहा था। शाम अब रात में ढलने लगी थी जिसकी वजह से ठण्ड भी बढ़ने लगी थी। "आ बैठ जल्दी।" अमित ने गाड़ी शुरू की। दोनों की गाड़ी हाईवे पर तेजी से दौड़ी चली जा रही थी। सारे वाहनों को पीछे खदेड़ते हुए अमित की गाड़ी एक छोटे से ढाबे पर जाकर रुकी। वहाँ उसके कुछ मित्र पहले से ही उसका इन्तिज़ार कर रहे थे। अमित ने पहुँच कर रोहन का अपने सभी मित्रों से परिचय कराया और पास में खड़ी एक बडी सी कार में सब फिर बैठ गए। रोहन की समझ में बिल्कुल नहीं आ रहा था कि आखिर ये हो क्या रहा है। वह अगले आने वाले सभी पलों से बिल्कुल अपरिचित था। आधे घण्टे का सफर तय करने के बाद कार एक सूनसान इलाके में शहर के बाहर जाकर रुकी। सभी एक-एक करके कार से बाहर निकले, ठण्ड इतनी थी कि मुँह खोलना भी दुसवार हो रहा था। रोहन अभी भी चल रही प्रक्रिया से अपरिचित था। "अबे इतनी ठण्ड में यहाँ क्यों लाया है ?"

रोहन अमित के कान में फुसफुसाते हुए बोला। "दो मिनट रुक अभी समझ जाएगा।" अमित ने उसकी जिज्ञासा शांत करने की कोशिश की। अमित का एक दोस्त फरहान, जो शायद उनके ग्रुप का मुखिया था आकर सबके सामने खड़ा हुआ। "आज की शुरुआत हम यहाँ शहर के बाहर से करेंगे और जब तक हमारे पास चीजें रहेंगी हम धीरे-धीरे शहर की और वापस होते रहेंगे। ठीक है, चलो अभी सामान निकाल लेते हैं।" इतना कह कर फरहान कार की डिग्गी(लगेज़ ट्रंक) की तरफ चल दिया। अमित भी अपने बाकी कई दोस्तों के साथ फरहान संग आगे बढ़ा। फरहान ने डिग्गी ऊपर उठाई और उसमें से एक-एक कर कुछ चीजें सभी साथियों को पकड़ाने लगा। चीजें ऐसी थी जिन्हें छूते ही रोहन समझ गया कि उसे क्या थमाया जा रहा है।

खादी कम्बल, गर्म कपड़े और कुछ खाने-पीने की चीजें, जिन्हें उसने अपने दोनों हाथों में पकड़ रखा था। "साला तू इधर पार्टी करने आया है, इतनी दूर!" रोहन फिर उसके कान में बुदबुदाया। "हाँ मेरे भाई।....अब ऐसा कर मोबाइल की लाइट जला।" फरहान आगे-आगे चल रहा था अमित, रोहन और बाकी दोस्तों के साथ उसके पीछे चल रहा था। ठण्ड का समय था धुंध भी हल्की-हल्की पड़ रही थी जिसके वजह से मोबाईल की रोशनी से काफी दूर तक देखना असम्भव था इसी वजह से रोहन बिल्कुल भी समझ नहीं पा रहा था की वह कहाँ और किस रास्ते पर चल रहा है। कुछ क़दमों का रास्ता तय करने के बाद रोहन को सामने हल्की सी रोशनी के प्रकाश का आभाव हुआ पर बिना कुछ बोले वह सिर्फ धीरे-धीरे चलता रहा। थोड़ा और चलने पर उसे एक दम साफ नज़र आ गया कि सामने घास-फूस से बना एक कच्चा मकान है जिसके अंदर एक छोटा-सा मिट्टी का दिया जल रहा है। सभी जाकर उस झोपड़ी के मुख पर खड़े हो गए, दरवाजे की जगह पतली-पतली लकड़ियों से बनी एक टटिया खड़ी है जो शायद दरवाजे का दर्ज़ा लिए हुई थी। रोहन बाकियों की तरह वहीं खड़ा था, अचानक कुत्ते के भौंकने की आवाज हुई तो वह डर गया।

"कोई शरारत नहीं, वर्ना काट लेगा।"

फरहान सबको सचेत करते हुए बोला। कुत्ता उनके एक दम नज़दीक आ चुका था, फरहान ने बिस्किट का एक पैकेट निकाला और उसके टुकड़े करके कुत्ते के सामने रख दिए कुत्ता बिना किसी भेदभाव से उन्हें बड़ी चाव से, पूँछ हिला-हिला कर खाने लगा। तभी अंदर से आवाज आई। "को हे बाहर ?" आवाज किसी बुजुर्ग औरत की थी। जिसे सुनकर फरहान और अमित एक साथ अंदर गए और बाकी साथियों को वहीं रुकने के लिए कहा। मगर रोहन बिना किसी हिचक के साथ उनके पीछे हो लिया। अंदर का नज़ारा बहुत अजीब-सा था ऐसा, जैसा उसने कभी सोचा भी नहीं था।

घर में किसी प्रकार का कोई सामान नहीं था सिवाय चन्द बर्तनों के, जो कि वो भी इधर-उधर बिखरे हुए पड़े थे। "हम हैं अम्मा।" फरहान उस बुजुर्ग महिला को अपना परिचय देना चाह रहा था। वह बिना किसी डर के साथ उठ कर बैठ गई। दो बच्चों के साथ वह ज़मीन पर घास से बने विस्तर पर सोई हुई थी। "वो हम कुछ सामान लाए हैं आपके लिए।" फरहान ने कम्बल और गर्म कपडों के साथ खाने का एक डिब्बा उसे पकड़ा दिया। भूखे को खाने की और प्यासे को पानी की जो ज़रूरत होती है उसी तरह की सारी ज़रूरतें उसके लिए लाज़मी थीं। एहसान का बोझ भारी तो बहुत होता है पर वक़्त पर मिले तो हल्का ही लगता है। अपने हाथों में ज़रूरत की चीजें देख कर उस बुजुर्ग महिला की आँखों में कृतज्ञता के आँसू आ गए उसने दोनों बच्चों को उठाया और खाने की चीजें उन्हें पकड़ा दी।

बच्चे शायद भूखे ही सोए हुए थे हाथ में जैसे ही खाना आया वो बिना कुछ सोंचे समझे खाने लगे। पास में खड़ा रोहन ये सब एक टक देखता रहा, उसकी भी आँखों में आँसू आ चुके थे शायद वो सब समझ गया था। उसने बच्चों को पानी की बोतल पकड़ाई और फरहान-अमित के साथ झोपड़ी से बाहर आ गया। "क्या हुआ बे ?" रोहन को खामोश देख अमित ने पूँछा। "कुछ नहीं यार.....अब समझ गया मैं कि आखिर तुझे शुकून की नींद कैसे आ जाती है। ये सामाजिक कार्य और ज़रूरतमंदों की मदद वो शुकून देता हैं जो शायद कभी किसी विस्तर में नहीं मिलता।" रोहन ने बड़े ज्ञानी अंदाज़ में कहा। "तू तो बड़ा समझदार है यार।" अमित मुस्कुराते हुए कहने लगा। "नहीं रोहन। ये आप ग़लत कह रहे हैं।" फरहान ने रोहन की बात को सुन लिया था। "क्या भाई ?" रोहन ने अपनी गलती जानने की कोशिश की।

"रोहन ये हमारा सामाजिक कार्य नहीं है, ऐसा सोंचना गलत है।...बल्कि ये तो हमारा सामाजिक कर्तव्य है जिसे हम अपने तरीके से निभा रहे हैं, और मुझे लगता है कि ये कर्तव्य हम सभी को निभाना चाहिए।" "समाज और देश अपना है और इसकी सेवा करना हमारा कार्य नहीं बल्कि ये तो हमारा कर्तव्य है।" फरहान की आधी-अधूरी बात को अमित ने पूरा किया। "भाई मान गया आप लोगों को और सुलूट करता हूँ आपके सामाजिक कर्तव्य को।" अमित ने बड़े जोश के साथ कहा। "चल आगे चलते हैं, अगली बारी तेरी है ये कर्तव्य पूरा करने की।" अमित, रोहन के कांधे पर हाथ रखते हुए बोला। सब हंसे और आगे बढ़ गए।


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