लेखक : अलेक्सांद्र पूश्किन अनुवाद : आ. चारुमति रामदास। लेखक : अलेक्सांद्र पूश्किन अनुवाद : आ. चारुमति रामदास।
"पर ये कौन थी बाबा ? मैंने वहाँ कई लोगों की लाशें देखी थी"लैबा ने रोते-रोते पूछा। "पर ये कौन थी बाबा ? मैंने वहाँ कई लोगों की लाशें देखी थी"लैबा ने रोते-रोते पूछा...
चौदहवें दिन की रात के समय वे दोनों उस अनमोल ख़ज़ाने के सामने थे। चौदहवें दिन की रात के समय वे दोनों उस अनमोल ख़ज़ाने के सामने थे।