शक्तिमान रामानुजम पहाड़गंज में
शक्तिमान रामानुजम पहाड़गंज में


कोरोनाकालीन दुनिया में महानगरों में लॉकडाउन शक्तिमान के लिये वरदान साबित हो सकता था। उसने अपनी सारी शक्तियाँ दिल्ली के पहाड़गंज के एक मुग़लकालीन खज़ाने तक पहुँचने में लगा दीं थीं। लेकिन अंतिम चरण तक पहुँचते ही उसे हार का सामना करना पड़ रहा था हर बार। इस अनमोल ख़ज़ाने में बहुत से राज़ छिपे हुए थे। ख़ज़ाना एक ऐसी सुरंग से होकर एक ऐसी गहराई पर गाढ़ा गया था, जहाँ उस ज़माने के मिस्त्रियों, कारीगरों के वास्तुशास्त्र, भौतिक विज्ञान और गणितीय सूत्रों का उपयोग किया गया था। अज़ीब सी भूलभुलैया भी क़ायम की गई थी। शक्तिमान हर बार भटक जाता था। लेकिन उसने हमेशा की तरह जीतने का ही दृढसंकल्प ले रखा था।
इस बार उसे इस ख़जाने से पहले किसी वैज्ञानिक या गणितज्ञ या वास्तु विशेषज्ञ के ज्ञान रूपी ख़ज़ाने की बहुत ज़रूरत महसूस हो रही थी। उसने विश्वविद्यालयों में सेंधमारी कर वहाँ के पुस्तकालयों तक अपनी पहुँँच बना ली थी। तहख़ानों, सुरंगों या पातालों के बारे में जानकारी जुटाने के लिये एक विशेष लेंस की सहायता से ढेर सारी कहानियों व उपन्यासों सहित फ़िल्मों की पटकथाएं उसने क्रमशः पढ़ डालीं, किंतु कोई राह न मिली। दूसरे चरण पर शक्तिमान को ज्योतिष, वास्तुशास्त्र, भौतिकी और गणित संबंधित ज्यामिति, त्रिकोणमिति आदि का अध्ययन भी करना पड़ा। लेकिन कुछ पल्ले नहीं पड़ा। ख़ज़ानों की चर्चा व ख़ोज़ केवल काल्पनिक कहानियों, उपन्यासों और फ़िल्मों में ही मिली। लेकिन पहाड़गंज के विवादित ख़ज़ाने जैसा कोई भी अड्डा और ख़ज़ाना, शक्तिमान को कहीं न मिला।
22 दिसम्बर की एक शाम को एक विशाल पुस्तकालय के विशिष्ट कक्ष में उसने दो व्यक्तियों को चर्चा करते हुए देखा। पहला व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की विद्वता और उपलब्धियों पर बधाई देते हुए उससे कह रहा था, "सुपर्ब रामानुजम!" यहीं शक्तिमान का माथा ठनका। उसे लॉकडाउन पीरियड में वह अभीष्ट ख़ज़ाना अनलॉक करने की मशीन मिल गई थी।
"इस विशेषज्ञ रामानुजम का अपहरण करने के अलावा मेरे पास अभी कोई विकल्प नहीं है। वह ख़ज़ाना न तो चोरों-डाकुओं के हाथ लगना चाहिए और न ही विदेशी ताक़तों के। उन पर सिर्फ़ हमारे देश के ग़रीब कलाकारों, मिस्त्रियों और कारीगरों का हक़ है !" यह सोच-विचार करते हुए वह रामानुजम को अपने साथ अभी ले जाने की युक्ति पर मंथन करने लगा।
पुस्तकालय में जब रामानुजम अकेले थे, शक्तिमान ने सर्वप्रथम वहाँ की बिज़ली गुल कर दी ओर तूफ़ानी गति से रामानुजम को अपनी दोनों बाहों में समेट कर पहाड़गंज की एक सुनसान सराय में ले गया।
"क्षमा करें श्रीमान! आप स्वयं को अपहृत क़तई न समझें। आप ज़िम्मेदार हाथों में यहाँ पूरी तरह सुरक्षित हैं। हम आपकी विद्वता का सम्मान करते हैं। हमारे देश के आज के और भविष्य के असली ज्ञानवान शक्तिमान तो आप ही हैं... आप ही जैसी हस्तियाँ हैं!" प्रणाम करते हुए शक्तिमान ने रामानुजम से कहा। फ़िर पहाड़गंज के विवादित छिपे ख़ज़ाने और उस तक पहुंचने में बाधक भयावह भूलभुलैया के बारे में सविस्तार उन्हें बताया गया।
रामानुजम सारी अप्रत्याशित घटना और शक्तिमान जैसे विचित्र चरित्र की गूढ़ बातें सुनकर हतप्रभ थे।
"तुम्हें क्यों रुचि है उस ख़ज़ाने में?" रामानुजम ने पूछा।
"वह हमारे मुल्क की बहुमूल्य सम्पत्ति है। हमारे देश के राजा-महाराजों, कारीगरों, कलाकारों और विद्वानों का परिश्रम है उनमें। हो सकता है कि वहाँ हमें कोहीनूर जैसे हीरे जवाहरात तो मिलें हीं, साथ में विद्वानों की ज्ञान-विज्ञान और गणितीय पाण्डुलिपियाँ भी मिलें। जब से उन पर विवाद और विदेशी विशेषज्ञों की रुचि के बारे में सुना है श्रीमान; मैंने अपनी सारी गतिविधियों पर विराम देकर पूरा ध्यान उस ख़ज़ाने में केन्द्रित कर लिया है।!" शक्तिमान ने बहुत ही विनम्रतापूर्वक कहा।
"तो मुझसे किस तरह का सहयोग चाहते हो तुम?" रामानुजम ने गंभीर होकर पूछा।
"आपके वैज्ञानिक और गणितीय सैद्धांतिक, प्रायोगिक और व्यवहारिक ज्ञान का इस्तेमाल करना चाहता हूंँ अंतिम हथियार के रूप में!" इतना कहकर उसने वहाँ सराय में छिपा कर रखे हुए कुछ नक्शे और तस्वीरें निकाल कर रामानुजम के ठीक सामने खोलकर, फैला कर रख दीं।
उनका अवलोकन रामानुजम ने बारी-बारी से किया। एक घंटे तक वहाँ सन्नाटा छाया रहा। शक्तिमान का विश्वास मज़बूत होने लगा।
तभी रामानुजम ने कहा, "बहुत कुछ समझ में आ गया है। ज्यामिति और त्रिकोणमिति से उस भूलभुलैया को और ख़ज़ाने के मुख्य द्वार खोलने की तकनीक को समझना होगा। मुझे दो दिन का समय दो। फ़िर मुझे उस भूलभुलैया वाली भयावह जगह पर ले चलना। उम्मीद है तुम्हारी समस्या मैं हल कर सकूंगा।"
बहुत दिनों बाद शक्तिमान के चेहरे पर मुस्कुराहट आई। उसने रामानुजम के लिए सराय के एक गुप्त कक्ष में सारी व्यवस्थायें कर दीं। उनके द्वारा मांगी गई लिखने-पढ़ने की सामग्री विश्वविद्यालय के विज्ञान और गणित विभाग से गोपनीय तरीक़े से लाकर दे दी गईं। रामानुजम ने अपने घर और कार्यस्थल पर एक 'विशेष यात्रा पर जाने की' झूठी सूचना की चिट्ठियाँ शक्तिमान से भिजवा दींं। दो दिन के बजाय एक सप्ताह लग गया।
आठवें दिन शक्तिमान रामानुजम को उस लोकेशन पर ले गया। कोरोना-वॉरियर्स की पीपीटी सुरक्षा किट जैसी पोशाक और मास्क धारण करने की वज़ह से कोई उन्हें पहचान न सका।
भूलभुलैया के संकट वाले पॉइंट पर पहुंच कर रामानुजम ने गणितीय माथापच्ची की। त्रिकोणमिति और ज्यामिति के अनुसार मापन किया। तद्नुसार शक्तिमान से मशीनरी मंगवा कर वे दोनों दसवें दिन ख़ज़ाने के मुख्य द्वार पर पहुंच ही गये। द्वार पर लगी विशालकाय चट्टान की लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई और गुणवत्ता का अध्ययन भी सफल रहा। अंततः. शक्तिमान ने अपनी सभी गूढ़ व रहस्यमयी ताक़तों का ज़ोरदार इस्तेमाल कर इस बार क़ामयाबी हासिल कर ही ली।
चौदहवें दिन की रात के समय वे दोनों उस अनमोल ख़ज़ाने के सामने थे। लालटेनें जलाने पर वहाँ अद्भुत नज़ारा था। रामानुजम पाण्डुलिपियों को समेट रहे थे और शक्तिमान हीरे-जवाहरातों को और अद्भुत आभूषणों को।
अगले दिन सारा मामला सरकार तक पहुँचा दिया गया। गुप्तचर विभाग और पुरातत्व विभाग अपने काम पर जुट गया। सारी दुनिया में शक्तिमान के कारनामे एक बार फ़िर विश्व रिकॉर्ड बन गये। रामानुजम एक बार फ़िर जीवित लीजैंड बन गये। सारे देश में ख़ुशियों का आलम था। प्राप्त सम्पत्ति का इस्तेमाल निर्धन-कल्याण और 'विज्ञान व गणित' के क्षेत्र में करने की घोषणा की गई।
शक्तिमान और रामानुजम अपने-अपने कार्यक्षेत्र में सामान्य रूप से जुट गये।