निभाना ही हमें आता
निभाना ही हमें आता
'विकासशील' और 'विकसित' दोनों तरह के दो देश एक नई सुखद सुबह की उम्मीद लिए गुफ़्तगू कर रहे थे।
"उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है। वैक्सीनकाल आया है, कोरोनाकाल जाने वाला है, है न!" एक वैक्सीन कम्पनी के सफलता के दावों से प्रफुल्लित विकसित देश ने विकासशील को दोस्ताना तरीक़े से बाहों में लपेटकर कहा।
"कोरोना पीड़ित आँकड़ों में तुम नंबर वन पर और मैं टू पर हूंँ, तो आशा की किरण का नंबर तुम्हारे बाद मुझ पर ही आयेगा न! वैक्सीन हम तक पहुँचाओगे न, पहुंचने दोगे न!" विकासशील ने विनम्रतापूर्वक विस्मय से कहा।
"डील्स ! .... डील्स निभाओगे न, निभने दोगे न!" विकासशील की बात पर विकसित ने वक्रोक्ति की।
"ट्रायल... टेस्टिंग की ..प्रोडक्शन्स की...और... व्यापार की डील्स निभा तो
रहे हैं न, निभने तो दे रहे हैं न !" प्रतिक्रिया में विस्मय, भरोसा और कुशंका का सम्मिश्रण था।
"सो तो है... लेकिन मत भूलो कि तुम विकासशील हो; हम विकसित हैं! तुम से पहले हमें विकसितों से डील्स निभानी होती है और अपने नागरिकों और राष्ट्रहितों से!" विकसित ने ताक़ीद किया।
"वो तुम नहीं... वो भी तो हम ही करते हैं या हमारे माध्यम से ही निभायी जाती हैं न!"
"जब सब कुछ समझते हो, तो अपने नागरिकों को समझाओ न, कोरोना-गाइडलाइंस पर चलवाते रहो न ... अपनी बारी की प्रतीक्षा करो न! हम तुम्हारे दोस्त हैं डील्स और गाइडलाइंस देते रहेंगे, है न!" विकासशील की बात पर विकसित ने कहा और उससे वार्म-हैंडशेक करने ही वाला था कि डिस्टेंसिंग निभाते हुए उसने हाथों से अभिवादन कर विदा ले ली।