पिया मिलन की रुत आई! (लघुकथा)
पिया मिलन की रुत आई! (लघुकथा)


दोनों भक्त मंदिर प्रांगण में खड़े थे। पहला कुछ देर तक मंदिर की भव्यता और मूर्ति की सौम्यता को निहारने के बाद बोला, "इसके निर्माण में मैंने रात-दिन एक कर दिये। पिछले दिनों यह नगाड़ा सेट लाया हूं। बिजली से चलने वाला! अरे भाई, आज के जमाने में बजाने की झंझट कौन करे?" फिर स्विच ऑन करते हुए कहा, "लो सुनो! तबीयत बाग-बाग हो जायेगी।" बिजली दौड़ते ही नगाड़े, ताशे, घड़ियाल, शंख सभी अपना-अपना रोल अदा करने लगे। पहला हाथ जोड़कर झूमने लगा। दूसरा मंद-मंद मुस्कुरा रहा था। जब पहले के भक्ति भाव में कुछ कमी आई तो दूसरे ने बताया, "उधर मैंने भी एक मंदिर बनाया है। आज अवसर है, चलो दिखाता हूँ।"
कृत्रिम सी संतुष्टि लिए पहला, दूसरे के पीछे-पीछे चल पड़ा। देवी-देवताओं की मूर्तियों से सज़े, 'वास्तुकला' आधारित भव्य द्वार वाले मंदिर के भीतर प्रवेश करते ही साधना में लीन पंडित और मधुर गुंजन करता बड़ा सा घंटा बीचों-बीच झूमता दिखा। अंदर थोड़ा और आगे चलने पर एक और भव्य द्वार मिला। लेकिन उसे देख कर पहले भक्त की आंखें फटी की फटी रह गईं। 'अरबी कैलीग्राफ़ी में आयतों' और 'मुग़लकालीन शिल्पकलाओं' से सज़े द्वार से होते हुए वे दोनों अंदर पहुंचे। एक मुअ़ज्जिन मधुर स्वर में अज़ान दे रहा था।
तेज़ क़दमों से जिज्ञासावश पहला, दूसरे के पीछे-पीछे चलता गया। अब एक तीसरा द्वार सामने था 'अंग्रेज़ी शिल्पकलायुक्त चर्चनुमा'। अंदर बेंच पर फादर बाइबल पढ़ रहे थे। पहले ने दूसरे को घूर कर देखा! जवाब में वह पिछली बार की तरह मुस्कुराया। कुछ ही पलों में वे दोनों अगले द्वार पर थे। ऐसा द्वार तो 'मिली-जुली वास्तुकला' युक्त गुरुद्वारे का ही होता है। अंदर जाने पर इसकी पुष्टि भी हो गई, जब वहां गुरुग्रंथ साहिब का मधुर पाठ सुनाई दिया। पहला काफ़ी बेचैन हो रहा था। दूसरा बड़ी संतुष्टि से पिछली बार की तरह मुस्कुरा रहा था। अंत में वे दोनों एक ऐसे द्वार पर पहुंचे, जहां 'गंगा-जमुनी शिल्पकलायुक्त' दीवारों पर महापुरुषों-संतों-सूफियों के चित्रों के साथ 'वसुधैव कुटुंबकम्' और 'सर्वधर्म समभाव' और संविधान का पहला पृष्ठ लिखा हुआ था। थोड़ा अंदर जाने पर दूसरा दीवार पर उकेरे गए भारत के नक्शे के सामने लहराते राष्ट्रीय धवज के नीचे बाक़ी भक्तों के साथ खड़ा हो गया। पहला भी मुस्कुराता हुआ उनके साथ शामिल होकर मधुर स्वर में देशभक्ति गीत गाने लगा। सब के मन-मंदिर में एक ही भाव संचारित हो रहे थे।