दि वर्ल्ड ऑफ़ रंजन वागले (3)
दि वर्ल्ड ऑफ़ रंजन वागले (3)


■ प्रिय पाठकगण, आप कहानी "दि वर्ल्ड ऑफ़ रंजन वागले" के भाग (एपीसोड) - 1 और 2 पढ़ चुके हैं। दूसरे भाग के अंत में आपने यह पढ़ा और जाना था :
【कुछ घण्टों बाद रंजन वागले ने स्वयं को एक असेम्बली हॉल की दर्शक दीर्घा में पाया। वह स्वयं तो एक विचित्र पिरामिड आकार की चट्टान पर विराजमान था। बाकी सब तरफ़ सफ़ेद भूत से नज़र आ रहे थे। कुछ ज़मीन पर, तो कुछ हवा में।
तभी वहाँ मधुर संगीत सा सुनाई दिया। एक पंक्ति में ढेर सारे एलियंस आते हुए दिखाई दिये। रंजन वागले की आँखें मानो बाहर निकलने ही वाली थीं आश्चर्य से। दरअसल वे 'जादू' को पहचानने की कोशिश कर रहीं थीं।
लिलीपुट ने रंजन के नज़दीक आकर कहा, "अब जो भाषण देता दिखेगा, वही तुम्हारा 'जादू' है।"
कुछ मिनटों पश्चात भाषण शुरू हुआ। अब जादू कह रहा था, "हमें इस बात पर बड़ी ख़ुशी है कि एक 'वेल क़्वालिफ़ाइड धरतीवासी अधेड़' स्वेच्छा से हमारे ग्रह में माइग्रेट कर चुका है। हमें अपने जिन्न स्टाफ पर गर्व है। ....... 】
◆◆◆◆◆◆◆
■ अब प्रस्तुत है कहानी "दि वर्ल्ड ऑफ़ रंजन वागले" का भाग (एपीसोड) - 3 :
उस रहस्यमय ग्रह पर रंजन वागले पिरामिड आकार की चट्टान पर बैठा एलियन 'जादू' का भाषण अवश्य सुन रहा था, लेकिन उसके दिमाग़ में वे सब जानकारियाँ कई सवाल पैदा कर रहीं थीं, जो लिलीपुट जिन्न ने उसे अब तक दीं थीं। वह सोच रहा था कि जादू उसके पास या वह खुद उसके पास कैसे और कब जा सकेगा। वह यह भी सोच रहा था कि यदि इस ग्रह के लोगों का ज्ञान और तकनीक धरतीवासियों से बेहतर हैं और इनका कोई भाषा कोड है, तो ये मेरी भाषा कैसे समझ लेते हैं। ग्रह के अनुसार उसके शरीर में हो सकने वाले परिवर्तन की बात से भी बहुत परेशान था।
उधर जादू अब उसी के बारे में बोल रहा था :
"धरती से रंजन वागले नाम का जो अधेड़ विद्वान यहाँ लाया गया है, उसने यदि किसी तरह का विद्रोह किये बिना यहां की आचार संहिता का पालन किया, तो मैं उसे प्रमोट करते हुए एक इन्टरप्लेनेट्री डील्स के तहत दूसरे ग्रह भेजूँगा। अब चूंकि मुझे धरती के मानव संग रहने का अनुभव है, अतः मुझे रंजन वागले को स्वयं ही ट्रेनिंग देनी होगी।"
यह सुनते ही रंजन ख़ुश हो गया। उसने अपने हाथ-पैर हिलाकर उनकी वर्तमान स्थिति का जायज़ा लिया। सब कुछ ठीक-ठाक था।
तभी उसे लिलीपुट जिन्न नज़दीक़ दिखाई दिया। रंजन ने चौंक कर उससे पूछा, "मैंने तावीज़ तो घिसा नहीं, फ़िर तुम कैसे यहाँ आ गये?"
"आपके उस तावीज़ के फ़ीचर्स केवल धरती ग्रह पर काम करते हैं। यहाँ वह कोई फंक्शन नहीं करेगा। यहाँ हमारा अपना एडवांस सिस्टम है।" लिलीपुट थोड़ा और नज़दीक़ आकर बोला, "बेहतर है कि वह तावीज़ तुम मुझे दे दो या सम्मानपूर्वक किसी जगह यहाँ रखवा दो।"
"नहीं! हरगिज नहीं। यह तो वह निशानी है, जो मुझे यहाँ तक लायी है। धरती पर वापस जाने पर वहाँ इसका इस्तेमाल करूँगा न!" रंजन घबराता हुआ सा बोला।
"हा हा हा! जागते हुए बढ़िया सपने बुन लेते हो रंजन वागले! इस तावीज़ की एक्सपाइरी डेट भी तो मालूम होनी चाहिए तुम्हें या फ़िर इसके फंक्शन्स को अपग्रेड कराना होगा और यह काम मेरे ज़रिये ही होगा। ... वैसे अब तुम्हें धरती पर जाने कौन देगा और वहाँ की दुनिया से तो उकता कर ही तुम यहाँ आये हो, भूल गये क्या?"
लिलीपुट जिन्न की यह बात सुनकर दूसरी बार रंजन की आँखों से आँसू छलक पड़े। फ़िर एकदम से संयमित होकर उसने जिन्न से पूछा, "क्या जादू हमारी भाषा में भाषण दे रहे थे? मुझे तो मेरी ही भाषा में सुनाई दे रहा था सब! तुम लोग मेरी भाषा कैसे समझ लेते हो?"
"वेल! मिस्टर रंजन, वैसे तो हम लोग धरती की अधिकतर भाषायें सीख चुके हैं। लेकिन हमारे आपस की बातचीत हमारे कोड में ही होती है और वह तुम्हें सिखा दी जायेगी या उसका सॉफ्टवेयर तुम में समय आने पर इंस्टॉल कर दिया जायेगा तुम्हारे अपडेशन प्रोसीजर के अंतर्गत।" लिलीपुट ने विनम्रतापूर्वक समझाते हुए कहा, "जादू का भाषण हमारे कोड में ही था, जो ट्रांसलेटिड होकर तुम्हारे कानों तक पहुंच रहा था यहाँ के स्वचालित वाइफाई से। मतलब तुम मेंटली यहाँ के अनुसार अपडेटिड होते जा रहे हो, जस्ट कीप पेशंस!"
"ओके। अब यह बताओ कि जादू के कहे मुताबिक़ मैं कब जादू के नज़दीक पहुंचूंगा?"
"मिस्टर रंजन, दरअसल मैं तुम्हें लेने ही आया था। चलिए अपने जादू के पास!" इतना कहकर लिलीपुट रंजन वागले को जादू के अजीबोगरीब केबिन में छोड़ कर चला गया। रंजन के चेहरे पर ख़ुशी के भाव थे।
"वेलकम, मिस्टर रंजन वागले। घबराइए मत। अब मैं आपके साथ हूँ। आपके शरीर में चौबीस घंटे के अंदर हम कुछ परिवर्तन करवा देंगे, क्योंकि एक ज़रूरी मिशन में हमें आपको एक दूसरे ग्रह में माइग्रेट करवाना है यथाशीघ्र। मैं ही जाऊँगा आपको वहाँ सेटल करने। लेकिन लौट कर आप यहीं आयेंगे। धरती पर लौटने का कोई ऑप्शन नहीं बचा है। इसके लिये ज़िम्मेदार हैं आपका हाईलि क्वालिफाइड होना और धरती की दुनिया से नफ़रत होना। यह सब आपकी यहाँ की प्रोफाइल में दर्ज है, जो अभी नहीं बदला जा सकेगा।" जादू ने समझाया।
जादू में ग़ज़ब का सम्मोहन पाया रंजन वागले ने। उसे उसके केबिन में धरती के समय अनुसार दो दिन रहना पड़ा। जादू आदेश देता था और लिलीपुट आदेशों का पालन करता था। रंजन केवल इतना समझ पा रहा था कि उसमें कुछ बदलाव किये जा रहे हैं। मतलब वह अब धरती जैसा मानव नहीं रहा। न ही इस ग्रह के जिन्नों और न ही जादू जैसा। दरअसल वह बहुत उलझ गया था।
अबकी बार जब जादू से उसका वार्तालाप हुआ, तो उसने फ़िर अपने सवाल पूछे। सभी सवालों के जवाब में जादू ने केवल यह कहा :
"तुम सिर्फ़ यह समझ लो कि जिस तरह तुम्हारे पृथ्वी ग्रह से सेटेलाइट या मिसाइल छोड़े जाते हैं, उसी तरह हम तुम्हें आवश्यकता अनुसार दूसरे ग्रहों में छोड़ेंगे। हमें भी छोड़ा जाता है रिसर्च वर्क के लिए।"
"अच्छा! वैसे ही न, जैसे तुम पृथ्वी पर गये थे और पीके भी!" रंजन वागले तपाक से बोला।
"मतलब तुम सब समझ रहे हो। फाइन। अच्छा, सुनो, अब तुम्हारा शरीर आकार बदलने लगेगा... घबराना मत। कुछ दिनों बाद मैं तुम्हें दूर के एक ग्रह पर छोड़ने चलूँगा। वहाँ हम दोनों का शरीर फ़िर बदल जायेगा। यह प्रक्रिया चलती रहेगी ग्रहों के राज़ छिपाने के लिए ओर रिसर्च वर्क में एडजस्टमेंट करने के लिए।"
इसके बाद जादू वहाँ से चला गया और तुरंत ही लिलीपुट जिन्न आया और रंजन वागले को एक विशेष सुरंग में ले जाकर एक प्रयोगशाला में छोड़ गया। जहाँ रंजन वागले कुछ घंटों बेसुध पड़ा रहा।
कुछ घंटों बाद जब उसे होश आया तो वह एक उड़नतश्तरी जैसे यान में जादू के साथ अंतरिक्ष यात्रा पर था। रंजन वागले का शरीर बिलकुल जादू जैसा हो चुका था। कुछ घंटों के बाद ही वह यान एक अजीब से ग्रह पर उतरने लगा। यहाँ भी एक सुरंग थी। उस अद्भुत सुरंग से होकर वह यान एक खुले मैदान पर पहुँचा।
यहाँ मानव जैसी शारीरिक रचना वाले प्राणी दिखे, लेकिन कुछ विविधता लिये हुए। यान से उतरकर जादू ने कोडवर्ड में अपना परिचय वहाँ खड़े गार्ड्स को दिया। यह ग्रह जादू के लिये भी नया था।
रंजन वागले का उस समय ठिकाना न रहा जब पीके वहाँ प्रकट हुआ। पीके ने स्वागत करते हुए जैसे ही रंजन वागले को छुआ, वापस उसका शरीर पृथ्वी वाले मानव जैसा हो गया। तुरंत ही पीके ने 'वेलकम' कहते हुए जादू को छुआ, तो जादू भी पृथ्वी वाले मानव आकार में परिवर्तित हो गया।
तभी पीके आँखें फाड़कर जादू को देखने लगा और जादू पीके को। दोनों ने अपने दोनों हाथ एक-दूसरे के हाथों से मिलाये ही थे कि उस ग्रह की संचार प्रणाली से उन्हें पता चला कि वे दोनों जुड़वाँ भाई हैं।
रंजन वागले दोनों हमशक्लों को आँखें फाड़कर देखने लगा।
"मुझे यकीन था जादू... कि तुम्हारा मुझसे कोई नाता है... पहली मुलाक़ात में ही इसके सिग्नल मुझे मिलने लगे थे। मैंने तुम्हारे ग्रह के एडमिनिस्ट्रेशन से विशेष निवेदन इसीलिए किया था कि अबकी बार मेरे ग्रह पर इसे ही भेजना।" पीके ने कहा।
यहाँ भी भाषाओं का तकनीकी अनुवाद और सम्प्रेषण अद्भुत अज्ञात तरीक़े से हो रहा था। रंजन वागले भौचक्का खड़ा सब देख रहा था। अब उसे पढ़े हुए वे सब ग्रंथ और रिसर्च वर्क याद आ रहे थे, जिनमें कहा गया था कि ब्रह्मांड में पृथ्वी से भी बड़े ग्रह हैं, जहाँ जीवन है। लेकिन यहाँ जीवन ही नहीं विज्ञान और तकनीक भी पृथ्वी से कहीं कई गुना ज़्यादा विकसित समझ में आ रही थी।
"तो तुम 'जादू' नहीं, मेरे जुड़वाँ भाई हो 'जेके'।" पीके ने जादू को गले लगाते हुए कहा।
"लेकिन 'जेके' को मैं तो 'जादू' नाम से ही पुकारूंगा, पीके!" रंजन वागले ने अपने और उन दोनों के मानव जैसे किंतु कुछ विविधता लिये शरीर निहारते हुए कहा।
लेकिन रंजन वागले के दिमाग़ में फ़िर कुछ सवाल उठने लगे :
"जिस तरह मैं पृथ्वी की दुनिया से उकता कर उस तावीज़ के माध्यम से ग्रहों में भटक रहा हूँ, क्या पीके और जेके भी इसी तरह भटक रहे हैं? क्या मेरे हाल भी इन दोनों जुड़वाँ भाइयों की तरह होने वाले हैं? पीके और जेके जुड़वाँ भाई एक-दूसरे से कैसे बिछुड़े होंगे?"