अब तेरा क्या होगा, ग़ब्बर?
अब तेरा क्या होगा, ग़ब्बर?


■ पिछली कहानी (भाग-1- ग़ब्बर संग गड़बड़) में आपने अंत में यह पढ़ा था :
दोनों सवारियां नीचे उतरकर ठाकुर साहब के घर पर नज़र दौड़ाने लगीं। अभिजीत ने पीछे मुड़कर बसंती की ओर देखा ही था कि फ्रेडरिक बड़बड़ाया, "तेरा क्या होगा ...अभिजीत !"
बसंती ने उन दोनों को ठाकुर साहब के कमरे तक पहुंचा दिया, जहाँ पहले से ही बैठे एसीपी प्रद्युम्न और इंस्पेक्टर दयानंद (दया) को देखकर वे एकदम चौंक गये।
_______【अब पढ़ियेगा... आगे....】__________
अब तेरा क्या होगा, ग़ब्बर? (भाग-2/कहानी-2) :
इंस्पेक्टर दया ने इशारे से फ्रेडरिक से चुपचाप बैठ कर उनकी चर्चा सुनने को कहा।
"देखिए एसीपी साहिब... हम चाहते तो अपनी निगाहों में आये जेल से छूटे कुछ बहादुर शातिर बदमाशों का इस्तेमाल कर ग़ब्बर को मज़ा चखवा सकते थे या मरवा सकते थे। लेकिन मज़ा मुझे नहीं आयेगा.... अपने दुश्मन को तो मैं अपने तरीक़े से सबक़ सिखाना चाहता हूंँ! इन डाकुओं ने रामगढ़ के हालात बहुत ख़राब कर दिये हैं। महामारी की मार से लोग वैसे भी बेहाल हैं। बेरोज़गारी बढ़ गई है। किसान ख़ुदक़ुशी कर रहे हैं। डाकू पहले से ज़्यादा खूँखार हो चुके हैं। पिछली दफ़ा भयंकर तबाही कर चुकी है ग़ब्बर की टोली। बचाखुचा अनाज भी लूट कर ले गये।" ठाकुर बल्देव सिंह ने चहलक़दमी करते हुए कहा, "मुझे भरपूर प्यार करने वाले गांँववासियों के भूखे और मायूस चेहरे अब मुझसे नहीं देखे जाते! आपकी सीआइडी टीम के ताज़े सफल कारनामों से मुझे आपसे उम्मीद बढ़ गई है कि आप ग़ब्बर को ज़िंदा पकड़ने में ज़रूर क़ामयाब होंगे!"
यह सुनकर इंस्पेक्टर दया तुरंत बोल पड़े, "आपने सारे दस्तावेज़ और नक़्शे हमें दिखा और समझा दिये हैं। यहाँ आते वक़्त हमने भी गाँववालों से बहुत कुछ सुन लिया था। आप हम पर भरोसा रखिएगा। हमारी रणनीति तैयार है और आपसे इस चर्चा के बाद सर फ़ाइनल कर ही देंगे, ... है न एसीपी साहब!"
"मुझे दो-तीन दिन के अंदर ही ग़ब्बर ज़िंदा चाहिए!" ठाकुर साहब ने अपने कंधों पर निगाहें दौड़ा कर दाँत पीसते हुए कहा, "जिस तरह मेरे हाँथ उसने छीने... उसी तरह मैं उसके पैर छीनूंँगा या अपने पैरों से ही उसे कुचल-कुचल कर मारूंँगा!"
"ठाकुर साहिब! अब आपको परेशान होने की या भावावेश में क़ानून का उल्लंघन करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।" एसीपी प्रद्युम्न ने इंस्पेक्टर दया और अभिजीत को इशारे से अपने पास बैठने को बुलाते हुए कहा, "आप दोनों अपनी स्ट्रेट्जी बताइये रामगढ़ के आजकल के हालात मुताबिक़ ग़ब्बर को ज़िंदा पकड़ने के लिए!"
अब तक चुप्पी साधे बैठा इंस्पेक्टर फ्रेडरिक एकदम बोल पड़ा, "मेरे पास एक आइडिया है!" फ़िर वह अभिजीत की ओर शरारती नज़रें डालकर बोला, "सुना है कि ग़ब्बर की गैंग का एक ख़ास आदमी बसंती तांँगेवाली पर फ़िदा है! बसंती जाल फैलाने में मदद कर सकती है!"
अब इंस्पेक्टर अभिजीत भी भला कैसे चुप रहता! वह बोला, "एसीपी साहब, सुनने में यह भी आया है कि ग़ब्बर ख़ुद तो औरतों से दूर रहकर औरतों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाता और न ही अपनी गैंग के किसी आदमी को ऐसा करने देता है!"
"तुम कहना क्या चाहते हो? साफ़-साफ़ कहो!" एसीपी प्रद्युम्न ने अपनी घड़ी पर दृष्टि डालते हुए कहा, "कल से हमें मिशन पर जुट जाना चाहिए, समझे न!"
"सर, बसंती का यूज़ करना तो बेकार है! सुना है कि ग़ब्बर सिंह को सुंदर नर्तकियों के बजाय घोड़ियों का डाँस देखना ज़्यादा पसंद है और उसे बसंती की घोड़ी धन्नो बहुत पसंद है!"
अभिजीत ने फ्रेडरिक की ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहा।
फ्रेडरिक तुरंत बोला, "जहाँ धन्नो नाचेगी, वहाँ बसंती का होना ज़रूरी रहेगा न!
"तो ठीक है धन्नो और बसंती का इस्तेमाल करके बढ़िया सा प्लान बनाओ तुम दोनों... और हम दया के साथ मिलकर अपनी रणनीति फाइनल करते हैं। दो दिन के अंदर ग़ब्बर हमारे क़ब्ज़े में होगा ठाकुर साहिब, आइ अम श्युअर!"
ठाकुर साहब से विदा लेकर वे सभी निर्धारित भिन्न जगहों पर आराम करने चले गये, जहाँ सभी व्यवस्थायें गोपनीय तरीक़े से विश्वसनीय गांँववासियों द्वारा की गई थीं।
अगले दिन शाम को रामगढ़ के बुधवारीय हाट बाज़ार में बसंती की धन्नो घोड़ी सहित चार-पांच नर्तकी घोड़ियों ने ग़ब्बर गैंग को भी आकर्षित कर लिया। एसीपी साहब ने बसंती को गाइडलाइंस देकर गाँँव के ही दो वफ़ादार गुप्तचरों हरिया और जुम्मन भाई को जाल फैलाने के काम पर लगा दिया। बसंती के दीवाने डाकू हीरा पर कड़ी नज़र रखी जाने लगी। ग़ब्बर सिंह के हाट बाज़ार तरफ़ आने के मार्ग और वापस लौटने के मार्ग पर चारों इंस्पेक्टरों ने सिविल ड्रेस में अपने मोर्चे सँभाल लिए।
किसी को पता ही न था कि बसंती पर और नर्तकी घोड़ियों के आसपास कड़ी नज़र रखने के लिए एसीपी प्रद्युम्न ने गोपनीय तरीक़े से इंस्पेक्टर श्रेया और इंस्पेक्टर पूर्वी को उसी दिन बुलवा कर पोजीशन पर तैनात करवा दिया था। उनकी मदद के लिए गाँव के सूरमा भोपाली और चर्चित मौसी को भी कुछ ज़िम्मेदारियाँ सौंप दी गईं थीं।
हाट बाज़ार में धन्नो और बाक़ी घोड़ियों के नृत्य की वज़ह से अप्रत्याशित मजमा था। ग़ब्बर गैंग के डाकू अपने बदले हुए वेश में नृत्य के मज़े ले रहे थे। एक ऊँचे से चबूतरे पर डाकुओं द्वारा माँगे गये अनाज के बोरे और ज़रूरत की चीज़ें जमा दी गईं थीं। सब कुछ सामान्य सा लग रहा था। इसलिए डाकू भी निश्चिंत थे।
बसंती की धन्नो ऐसे नाच रही थी, जैसे कि फ़िल्मों की गरमागरम डांसिंग स्टार। बसंती ख़ुशी से फूल के कुप्पा हो रही थी। पैर तो उसके भी थिरक रहे थे। लेकिन उसे अपनी ड्यूटीज़ का पूरा ख़्याल था। अभिजीत भी लगन से अपनी ड्यूटी निभा रहा था बसंती के युवा सौन्दर्य की तरफ़ से ध्यान हटाकर। लाई गई बाक़ी सजीधजी घोड़ियाँ भी ग़जब का डांस कर रही थीं। ग्रामीण दर्शक महामारी का दर्द भूल से गये थे। लेकिन डाकुओं के अज्ञात भय से सतर्क भी थे।
तभी गुप्तचरों ने इंस्पेक्टर दया को सूचित किया कि ग़ब्बर वेश बदल कर वहाँ आ चुका है। धन्नो का नृत्य वह पहले देखेगा। हरिया और जुम्मन भाई ने एसीपी साहब को बताया कि ग़ब्बर सिंह के डाकू साथी साँभा और कालिया के नेतृत्व में अपने घोड़ों पर अनाज आदि के बोरे लादकर रवाना होने ही वाले हैं।
एसीपी प्रद्युम्न और इंस्पेक्टर दया सूरमा भोपाली की दी हुई जानकारी अनुसार ग़ब्बर सिंह के नज़दीक़ पहुंच चुके थे। तभी चारों तरफ़ से सीआइडी टीम की गोली दागी गईं। एसीपी प्रद्युम्न की गोली सीधे ग़ब्बर के पैर पर लगी। वह लड़खड़ा कर भागने लगा ... और पेड़ के पास खड़े अपने घोड़े पर बैठा ही था कि इंस्पेक्टर दया ने उसके घोड़े के पैरों पर गोलियाँ बरसा दीं। सारे गांँववासियों ने ग़ब्बर सिंह और उसके आदमियों को योजना अनुसार घेर लिया।
अब ग़ब्बर सिंह एसीपी साहब और इंस्पेक्टर दया के क़ब़्ज़े में था। तभी वहां बड़ी दाढ़ी-मूछों के नकली वेश में ठाकुर बल्देव सिंह प्रकट हुए। अपनी नकली दाढ़ी-मूछें और कंधे पर से शॉल हटाकर ठाकुर ने ठहाका लगाते हुए ग़ब्बर सिंह के पेट पर ज़ोरदार लात मारी। नुकीली कीलों वाले जूतों के सोल से पेट ज़ख़्मी हो गया ग़ब्बर का। लेकिन ठाकुर ने तुरंत दूसरी लात उसके पेट और छाती पर दे मारी और ग़ब्बर ज़मीन पर गिर गया। योजना और ठाकुर की शर्त अनुसार ज़मीन पर पड़े ग़ब्बर की छाती पर ठाकुर जूतों से लगातार वार करता रहा। उसके बाद एसीपी प्रद्युम्न ने ठाकुर को रोकते हुए ग़ब्बर से कहा, "अब तुम्हारा खेल ख़त्म ग़ब्बर सिंह! यहां पचास-पचास कोस नहीं... सैंकड़ों किलोमीटर तक जिसके नाम से अपराधी डरते हैं ...मैं वही सीआइडी का एसीपी प्रद्युम्न हूंँ और ये रही हमारी टीम! अब तुम पुलिस की गिरफ़्त में हो!"
ग़ब्बर सिंह जंज़ीरों और हथकड़ी से जकड़ा हुआ था। उसके खूँखार साथी साँभा, कालिया और हीरा वग़ैरह की बचकर भागने की तमाम कोशिशें इस बार नाकाम साबित हुईं। पुलिस वाहनों पर आ चुकी टीम सक्रीय थी। वे सभी डाकू गिरफ़्तार कर लिए गये। ... ग़ब्बर की जेलयात्रा शुरू हो चुकी थी।
ठाकुर बल्देव सिंह ने राहत की साँस लेकर सीआइडी टीम को धन्यवाद दिया। रामगढ़ धन्य हुआ।