ज़रूरत है सही मति की
ज़रूरत है सही मति की


दोनों भक्त मंदिर प्रांगण में खड़े थे। पहला कुछ देर तक मंदिर की भव्यता और मूर्ति की सौम्यता को निहारने के बाद बोला, "इसके निर्माण में मैंने रात-दिन एक कर दिये। पिछले दिनों यह नगाड़ा सेट लाया हूं। बिजली से चलने वाला। अरे भाई, आज के जमाने में बजाने की झंझट कौन करे?" फिर स्विच ऑन करते हुए कहा, "लो सुनो ! तबीयत बाग-बाग हो जायेगी। " बिजली दौड़ते ही नगाड़े, ताशे, घड़ियाल, शंख सभी अपना-अपना रोल अदा करने लगे। पहला हाथ जोड़कर झूमने लगा। दूसरा मंद-मंद मुस्कुरा रहा था।
जब पहले के भक्ति भाव में कुछ कमी आई तो दूसरे ने बताया, "उधर मैंने भी एक मंदिर बनाया है। आज अवसर है, चलो दिखाता हूँ। "
"बिल्कुल चलेंगे ! पहले ये तो बताओ कि तुम मुस्करा क्यों रहे थे?" पहले के इस सवाल पर दूसरा फ़िर से मुस्कुरा दिया।
"इसलिए मुस्कुरा रहे थे न कि तकनीकी विकास के साथ मैंने मंदिर-विकास की मिसाल क़ायम की !"
"नहीं !"
"इसलिए मुस्कुराये क्योंकि तुम हमारी विरोधी पार्टी के नेता हो?"
"नहीं !"
"तो क्या वहां तुम्हें असीम शांति, संतुष्टि हासिल हुई, इसलिए !"
"नहीं न !"
दूसरे ने फ़िर मुस्कुराकर कहा - "मेरे द्वारा बनवाए गए मंदिर के दर्शन कर लो, जवाब मिल जाएगा तुम्हें !"
पहला, दूसरे के पीछे-पीछे चलता हुआ उसके मंदिर के अंदर पहुंचा। अंदर पहुंचते ही डोरियों से लटकी हुई कठपुतलियों को देख कर और उन पर लिखे नामों, नारों और जुमलों को पढ़कर पहला, पहले मुस्कुराया और फिर ज़ोर से हंसता हुआ बोला - "वाह गुरु !"
"यहां आने वालों को नवजागृति मिलेगी 'नागरिक-कर्तव्यों और आत्म-अनुशासन' की, 'सही उम्मीदवार चुनकर सही मतदान करने की', 'अनेकता में एकता क़ायम कर सही लोकतंत्र क़ायम रखने की' और 'लोकतंत्र-द्रोहियों को परखने की' !" दूसरे ने कठपुतलियों को नचाती शक्ति-रूपी आकृतियों की ओर इशारे करते हुए कहा - "इस सदी में अपने देश को ऐसे नवजागरण कराने वाले धार्मिक-स्थानों की ज़रूरत है, मेरे भाई !"